संघ का कार्य-भार संभाल सकती है महिलाएं
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के नागपुर (Nagpur) हेडक्वॉर्टर में विजयादशमी (Vijayadashami) के अवसर पर एक समारोह का आयोजन हुआ। पहली बार इस दशहरा समारोह में एक महिला को आयोजन में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया। RSS प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने विजयादशमी पर कहा कि शक्ति हर बात का आधार है. शक्ति शांति और शुभ का भी आधार है। शुभ काम करने के लिए भी शक्ति की जरूरत होती है। संतोष यादव (Santosh Yadav) दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली दुनिया की एक मात्र महिला हैं। RSS के दशहरा समारोह में संतोष यादव के साथ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) और महाराष्ट्र के डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) भी मौजुद थे।
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सरसंघचालक डा. मोहन भागवत स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में जल्द ही सह-कार्यवाह और सह-सरकार्यवाह पद की जिम्मेदारी महिलाओं को सौंपी जा सकती है। संघ की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ (2025) तक राष्ट्र सेविका समिति में शामिल महिलाओं को संघ में लाया जा सकता है। संघ के 97 साल के इतिहास में कोई महिला इस पद पर नहीं रही है।
मातृ शक्ति की उपेक्षा असंभव
मोहन भागवत ने महिलाओं को लेकर आगे कहा कि मातृ शक्ति की उपेक्षा असंभव है। महिलाओं को हम जगत जननी मानते हैं लेकिन उनको पूजा घर या घरों तक सिमित कर दिया है। संघ प्रमुख ने कहा कि विदेशी हमलों के कारण इसे एक वैधता मिली थी, मगर विदेशी हमलों के खत्म होने के बाद भी उनको प्रतिबंधों से आज तक आजादी नहीं मिली। जो काम पुरुष कर सकते हैं, उससे ज्यादा काम महिलाएं कर सकती हैं। मातृ शक्ति की शुरुआत अपने परिवार से करके समाज में ले जाना चाहिए।
जनसंख्या देश का बड़ा मुद्दा
भागवत ने जनसंख्या को देश का बड़ा मुद्दा बताया।उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण पर कहा कि जनसंख्या जितनी अधिक होगी देश पर उतना ही ज्यादा बोझ होगा। उन्होंने आगे कहा कि हमको यह देखना होगा कि हमारा देश आने वाले 50 साल में कितने लोगों को खिला और झेल सकता है। इसलिए जनसंख्या की एक पॉलिसी बने और कानून भी लाया जाए। यह कानून सब पर समान रूप से लागू होना चाहिए।
बदलाव के चक्कर में अपनी परम्पराओं को भूल जाना जायज बात नहीं
मोहन भागवत ने अपने सम्बोधन में अपनी परंपराओं को संभाल कर रखने की भी सलाह दी। उन्होंने कहा कि बदलाव भी देश को आगे बढ़ाने के लिए बहुत जरुरी है, लेकिन बदलाव के चक्कर में अपनी परम्पराओं को भूल जाना जायज बात नहीं है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन के साथ सनातन का होना जरुरी है। कुछ शक्तियां भारत की प्रगति नहीं होने देना चाहते हैं। वे हमारे देश में कलह, अराजकता, आतंकवाद को बढ़ाते हैं।
मातृभाषा को शिक्षा में सम्मानित जगह दिलवाने में असमर्थ
साथ ही संघ प्रमुख ने अपने भाषण में महात्मा गांधी और डॉ. भीमरॉव आंबेडकर का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि देश में बदलाव के लिए शिक्षा पद्यति बदलने के साथ-साथ सामाजिक बदलाव करना होगा। गांधी गुरुकुल में नहीं पढ़े थे,अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा लेने के बाद भी गांधी, तिलक और हेडगेवार जैसे लोग देशभक्त बने। इसके पीछे देश प्रेम और समाज को सुधारने की मंशा मुख्य वजह थी। मोहन भागवत ने कहा कि मातृभाषा को बढ़ने से रोकने के लिए ये झूठ फैलाया जाता है कि करियर के लिए अंग्रेजी जरूरी है, लेकिन हम नै शिक्षा निति की तो बात करते है पर अपने मातृभाषा को शिक्षा में सम्मानित जगह दिलवाने में अभी तक असमर्थ हैं।
अंबेडकर ने दी थी चेतवानी
जबकि उन्होंने अंबेडकर के बारे में कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हमें चेताया था कि संविधान से समानता का मार्ग प्रशस्त होगा लेकिन असल बदलाव समाज और हमारे भीतर बदलाव से भी संभव होगा। इसलिए समाज को आगे बढ़ने के लिए सामजिक रूप से मानसिकता में बदलाव बहुत जरुरी है।
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