जनसंख्या (Population) शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले एक सवाल आता है कि हमारे देश की जनसंख्या लगातार इतनी बढ़ (Increase India Population) क्यों रहीं हैं? जनसंख्या तो मुसलमानों के कारण ही बढ़ रहीं हैं, क्या ही किया जा सकता है, देश में कोई कानून ही नहीं हैं इसके लिए। ये वो पहले ख़याल होते है , जो हमारे जहन में सबसे पहले आते हैं , देश में जनसंख्या बढ़ने को लेकर। बीते 11 जुलाई को दुनिया ने विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाया और इसी विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर बोलते हुए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने एक बड़ा बयान दे डाला। बस क्या था, उनके बयान पर देश की राजनीति गरमा गई।
विपक्ष के बड़े नेता जैसे ओवैसी, अखिलेश यादव और शफीकुर्रहमान ने योगी और केंद्र सरकार को आड़े हाथ लेने लगें और योगी और केंद्र सरकार पर मुसलमानों से नफरत करने वाले तीर छोड़ने लगें। जिसके साथ ही जनसंख्या नियंत्रण करने वाली सोच का फिर एक बार तेजी से राजनीतीकरण कर दिया गया। जिसका जवाब देते हुए मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रहें मुख़्तार अब्बास नकवी ने कहा – ”बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट किसी मजहब की नहीं मुल्क की मुसीबत है , इसे जाति , धर्म से जोड़ना जायज नहीं हैं”। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की वकालत कई बार कर चुके हैं। उन्होनें विश्व जनसंख्या दिवस के दिन भी जनसंख्या नियंत्रण पर काम करने की बात कही।
योगी का जनसंख्या बढ़ने पर बयान
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने देश में जनसंख्या लगातार बढ़ने को लेकर कहा था – ऐसा नहीं हो कि एक वर्ग की आबादी फुल स्पीड से बढ़े और जो मूल निवासी हैं उनकी आबादी कम हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो फिर अराजकता फैलने का खतरा रहता है। जिन देशों की आबादी ज्यादा होती है वहां असंतुलन चिंता का विषय है, क्योंकि इससे (Religious Demography) पर उल्टा असर पड़ता है। ऐसी स्थिति होने पर एक वक्त के बाद अराजकता और अव्यवस्था जन्म लेने लगती है। हमने जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने पर जोर दिया ताकि जनसंख्या असंतुलन न पैदा हो। मुख्यमंत्री योगी के इस बयान में कुछ ऐसे शब्द थे,, जैसे मूल निवासी, अराजकता और असंतुलन इन शब्दों को विपक्षी नेताओं ने झट से एक समुदाय विषय से जोड़ लिया और देश में अलग ही बहस शुरू कर वादी, कि योगी और मोदी सरकार सिर्फ मुसलमानों को टारगेट करने का एक भी कसर नहीं छोड़ती। खैर ये तो इन नेताओं का अलग ही विषय हैं। इन्हें जनसंख्या नियंत्रण से कोई लेना देना नहीं हैं।
WHO की हालिया रिपोर्ट
WHO की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत 2023 तक आते-आते चीन को जनसंख्या में पीछे छोड़ देगा। UN की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में भारत की आबादी 1.412 अरब होगी, जबकि चीन की आबादी 1.426 अरब हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2050 में भारत की आबादी 1.668 अरब होगी और तब चीन की जनसंख्या 1.317 अरब रहेगी। कहीं न कहीं ये रिपोर्ट भारत को जनसंख्या विस्फोट का डरावना सपना दे रहीं हैं। जिससे बचने के लिए भारत को कानून बनाने के साथ-साथ जागरूक भी होना ज़रूरी हैं। लेकिन हमारे देश के नेता WHO की इस रिपोर्ट को चर्चा का विषय नहीं मानते और नाही इस मुद्दे पर बहस करना चाहते हैं कि देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को कैसे काबू में लाया जाएं? क्यूंकि जब देश की जनसंख्या बढ़ेगी तब हमारे देश को महंगाई , बेरोजगारी , भूखमरी जैसी तमाम समयस्यों का सामना करना पड़ेगा , जो आज भी हमारे देश में लोग कर ही रहें हैं लेकिन आने वाले सालों में ये सभी समस्याएँ अपने चरम सिमा पर होगी।
भारत सरकार के NHFS के आकड़ें
अगर बात बीते दो दशक या उससे कुछ साल पहले की करें तो के भारत सरकार के NHFS यानि राष्ट्रिय परिवार स्वाथ्य सर्वेक्षण के आकड़ें कहते हैं कि ”भारत में प्रजनन दर (Fertility Rate) 1998 – 99 में हिन्दू महिला की 2.8 % थी, जबकि मुस्लिम महिला की 3.6 % थी। 2005 -2006 की करें तो हिन्दू महिला की 2. 59 % और मुस्लिम महिला की 3. 4 % थी। 2015 – 2016 में हिन्दू महिला की 2. 13 % थी, तो मुस्लिम महिला की 2. 61 % थी। वहीं 2019 – 2021 में हिन्दू महिला की 1.94 और मुस्लिम महिला की 2.36 % थी। इस आकड़ें से यह क्लियर होता है कि भारत में जनसंख्या मुस्लिम वर्ग के कारण बढ़ रहीं हैं। लेकिन इस आकड़ों से एक बात यह भी पता चलती है कि बीतें इन देशों में मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर (Fertility Rate) हिन्दू महिलाओं के प्रजनन दर की तुलना में साल दर साल घटी है।
जिससे यह पता चलता है कि अब भारत की मुस्लिम महिलाएं भी एक पॉजिटिव स्टेप के लिए अग्रसर हो रहीं हैं। आपको बता दें , देश की आजादी के बाद 1951 में हुई पहली जनगणना में मुस्लिमों की आबादी केवल 9.8 फीसदी थी, जो अब बढ़कर 14.23 फीसदी हो गई है। हिंदुओं की आबादी 1951 में 84.1 फीसदी से घटकर अब 79.80 रह गई है। इस आकड़ें से भी यह पता चल रहा है कि भारत में आजादी के बाद मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ी हैं।
NHFS के फर्टिलिटी रेट का विश्लेषण
2019 से 2021 के बीच किए गए NHFS के सर्वे के अनुसार भारत का टोटल फर्टिलिटी रेट हैं, 2. 0 %हैं, यानी भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या काबू में आई हैं , लेकिन जनसंख्या विस्फोट नहीं। फर्टिलिटी रेट का मतलब अर्थात एक महिला अपने जीवन काल में जितने बचें पैदा करती हैं, उसे कहा जाता हैं फर्टिलिटी रेट। ये फर्टिलिटी रेट अगर 2. 1 % से ज्यादा है, तो माना जाता हैं आबादी बढ़ रहीं हैं और अगर ये फर्टिलिटी रेट 2. 1 %से कम होती है,तो माना जायेगा आबादी घट रहीं हैं। मतलब साफ़ है , अगर 10 महिलाओं पर 21 बच्चें पैदा हो तो आबादी पीढ़ी दर पीढ़ी न बढ़ेगी न घटेगी। यानि स्थिर रहेगी।
जनसंख्या बढ़ने में कम मृत्यु दर भी जिम्मेदार
किसी भी देश में जनसंख्या सिर्फ फर्टिलिटी दर के कारण नहीं बढ़ती, बल्कि उस देश की मृत्यु दर (Death Rate) पर भी निभर करती है। हम ऐसा इसलिए कह रहें हैं कि अब भारत में मृत्यु दर (Death Rate) में काफी कमी आने लगी है। क्यूंकि जब देश में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होंगी तो जाहिर सी बात हैं लोग ज्यादा दिन तक जियेंगे। WHO ने 2022 में एक एक (World population prospects) जारी किया है ,जिसका एक अनुमान है कि ”भारत में 2030 तक लोग 73 . 7 साल , 2050 तक 77. 9 साल और 2064 में 80 . 4 साल औसतन जीने लगेंगे”। भारत में 2015 -2019 वर्षों के बीच लोग औसतन 69 . 7 साल जीएं हैं। जहां 1970 से 1975 के बीच लोग औसतन 48 .7 साल जीए थे। इन सब पहलुओं के देखने के बाद एक बात तो साफ़ होती हैं कि देश की जनसंख्या बढ़ने का एक कारण सिर्फ मुसलमानों को घोषित करना सही नहीं हैं। हां, लेकिन आज भी देश के अधिकतर मुसलमानों में एजुकेशन नहीं जो देश के अन्य धर्मों में हैं और यहीं सबसे बड़ा कारण हैं, मुसलामनों की बढ़ती जनसंख्या का। साथ ही इसमें एक बड़ा हाथ मुसलमानों का नेतृत्व करने वाले उन नेताओं का भी हैं , जो सिर्फ इन्हें धार्मिक चीजों पर ज्ञान देते हैं। लेकिन कभी इनके सामाजिक विकास पर जोड़ नहीं डालते कि कैसे गरीबी से निकले , जीवन में आगे बढ़ें , शिक्षित हो आदि।
जनसंख्या नियंत्रण कानून पर केंद्र सरकार का रुख
देश में जनसंख्या बढ़ने को लेकर हमेशा जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने और दो बच्चें की नीति लाने की बात समय समय पर उठती रहीं हैं। लेकिन इन दोनों विषयों पर केंद्र सरकार का कहना हैं – जबरदस्ती आबादी नियंत्रित करने की कोशिश से गर्भपात यानि एबोरशन , भ्रूण हत्या जैसे अपराध समाज में तेजी से जन्म लेने लगते हैं। देश में दो बच्चों की नीति लाने का हमारा कोई विचार नहीं हैं। क्यूंकि कई राज्यों ने बिना किसी सख्त कानून , प्रावधान के प्रजनन दर कम की है।
जनसंख्या बढ़ने में निरोध का न प्रयोग अहम कारण
बात अगर बढ़ती हुई जनसंख्या (Population) की हो और निरोध (Condom) की बात न की जाएं ऐसा तो हो ही नहीं सकता। क्यूंकि हमेशा से जनसंख्या बढ़ने का एक कारण सेक्सुअल रिलेशनशिप बनाते समय निरोध का प्रयोग नहीं करने को माना गया है। हालांकि सरकार गर्व निरोधक गोली या निरोध का विज्ञापन करती रहती हैं। लेकिन इसका कोई आज तक फ़ायदा नज़र नहीं आया है। क्यूंकि हमारे समाज में किसी दूकान से निरोध खरीदना या किसी हॉस्पिटल से निरोध लेना मानों एक विश्व युद्ध जीतने जितना कठिन माना जाता है। आज भी हमारे समाज के ज्यादातर लोग चाहे वो कोई भी धर्म के हो वो निरोध का प्रयोग नहीं करते , जिसका कारण अनचाही (Pregnancy) के रूप में सामने आता हैं और फिर ये बाद में जनसंख्या बढ़ने में (Increase India Population) सहयोग करता हैं।