आज देश के 13वे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का दोपहर में अंतिम संस्कार होगा. उन्हें आखिरी विदाई दिल्ली के लोधी रोड स्थित शमशान घाट पर दी जायेगी. इस पूरी प्रक्रिया में कोविड 19 प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा. बता दें कि मुखर्जी कोरोना से संक्रमित थे. कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रणब एक क्लीन चिट और पढ़े लिखे शख्सियत थे. उनके पास ज्ञान का भंडार था कि गूगल भी उनके आगे फेल हो जाए. संस्कृत के महारथी होने के साथ साथ उन्हें कई श्लोकों का ज्ञान था. उनके किस्सों और दावों के आगे विपक्ष भी चुप्पी साध लेता था. आइये जानें मुखर्जी के जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से जिससे उनकी विद्यानता और बुद्धिमता का अंदाजा आप आसानी से लगा सकेंगे.
किस्से सुनाने में फरवट
प्रणब की यादाश्त इतनी तेज थी कि उन्हें पुराने से पुराने किस्सों की बारीकियां तक याद रहती थी. राष्ट्रपति पद का कार्यकाल हाल ही में प्रणब ने पूरा किया था लेकिन इस बावजूद उन्हें अपने पहले लोकसभा चुनाव (1952) की छोटी से छोटी बातें याद थी. वो बताते थे कि पश्चिम बंगाल में वोट टाई होने पर एक बार उम्मीदवार ने बैलेट पेपर ही निगल लिया था. चुटीले किस्से सुनाते समय उन्होंने एक बार ये भी बताया था कि एक वोटर उस उम्मेदवार को सपोर्ट करता था जिसका बरगद का पेड़ चुनावी निशान था. उसने बैलट पर ठप्पा लगाया था और उसे पेड़ के नीचे रख आया था.
हमेशा रखते थे संविधान की कॉपी
मुखर्जी श्लोकों में तो ज्ञानी थे ही, साथ ही उनके पास हमेशा एक संविधान की कॉपी रहती थी. एक बार बीजेपी ने उनके एक बयान ‘ग्रंथों में लिखा है कि देवता भी नशीले पेयों का सेवन करते थे’ पर बेहद बवाल मचा दिया था. जिसके बाद लोकसभा में बहस के दौरान मुखर्जी ने वो श्लोक पढ़कर सुना दिया जिसे सुनकर विपक्ष की बोलती बंद हो गई थी. उनके तीखे तेवर से सब डरते थे. एक बार सवाल पूछने पर उन्होंने पत्रकार को भी लताड़ लगा दी थी. गुस्से में प्रणब ने पत्रकार से कहा था “आप अपना होमवर्क क्यों नहीं करते, क्या मैं यहां आपको पढ़ाने आया हूं? पहले अपने तथ्य जानिए, थोड़ा होमवर्क कीजिए.
शेख हसीना को माना था पुत्री
उनके सौम्य व्यक्तित्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रणब ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपनी पुत्री का दर्जा दिया था. 15 अगस्त 1975 को शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बंगबंधु शेख मुजीब-उर-रहमान और उनके परिवार के बाकी सदस्यों का जब कत्लेआम हुआ था, तो उनको भारत में शरण देने वाले मुखर्जी ही थे. बताया जाता है कि तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को उस दौरान ये काम करने की प्रणब ने ही नसीहत दी. जिसके बाद 1975 से 1981 तक शेख हसीना दिल्ली में रही थी. प्रणब दा और उनकी पत्नी शुभ्रा मुखर्जी दिल्ली में एक तरह से हसीना और उनके परिवार की संरक्षक की भूमिका में रहते थे. शेख हसीना का परिवार हफ्ते में कम से दो दिन- तीन बार प्रणब दा के तालकटोरा स्थित सरकारी आवास में ही वक्त बिताया करता था.
आज प्रणब दा हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी यादों और वाकयों को पूरा देश याद कर रहा है.