राम मंदिर-बाबरी मस्जिद पर 9 नवंबर 2019 को ऐतिहासिक फैसले सुनाया गया था। जिसके बाद अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण का कार्य जारी है। लेकिन इसी बीच वाराणसी के पुराने विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चर्चाएं तेज हो गई। दरअसल, गुरुवार को फास्ट ट्रैक कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में पुरातत्व विभाग की टीम ने सर्वे कराने के आदेश दिए, जिसके बाद इस मामले को लेकर राजनीति शुरू हो गई।
कोर्ट ने दिया बड़ा आदेश
कोर्ट के आदेश के मुताबिक पुरातत्व विभाग की 5 सदस्यों वाली टीम परिसर की खुदाकर कर मिले साक्ष्यों का अध्ययन करेगी। टीम ये पता लगाने की कोशिश करेगी कि ज्ञानवापी परिसर के नीचे जमीन में मंदिर के अवशेष हैं या नहीं? यूपी सरकार अपने खर्च पर सर्वेक्षण का खर्च उठाएगी।
खुश नहीं मुस्लिम पक्ष
कोर्ट के इस आदेश को लेकर एक तबका खुश नजर आ रहा है, तो दूसरा इससे नाखुश। कोर्ट के इस आदेश के बाद अयोध्या में साधु-संतों ने मिठाई बांटकर खुशी जाहिर की। वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी ने आदेश को 1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ बताया। उन्होनें ये भी कहा कि वो इस फैसले को चुनौती देंगे।
जिलानी ने कहा कि एक्ट में ये साफ है कि बाबरी मस्जिद और दूसरे इबादतगाह पर 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बदलाव नहीं किया जाएगा। 15 अगस्त 1947 को वहां पर मस्जिद थी, ये अदालत पहले ही मान चुकी है।
ओवैसी भी कोर्ट के आदेश पर भड़के
वहीं इस विवाद पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी रिएक्ट किया। उन्होनें कोर्ट के इस आदेश पर ट्वीट करते हुए कहा कि इतिहास फिर से दोहराया जाएगा।
ओवैसी ट्वीट कर बोले- ‘इस आदेश की वैधता संदिग्ध है। बाबरी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून में किसी टाइटल की फाइंडिंग ASI द्वारा पुरातात्विक निष्कर्षों पर आधारित नहीं हो सकती। साथ में ओवैसी ने ASI पर आरोप लगाते हुए कहा कि वो हिंदुत्व के हर तरह के झूठ के लिए मिडवाइफ की तरह काम कर रही है। इससे निष्पक्षता की उम्मीद नहीं की जा सकती।’
ओवैसी बोले कि इस आदेश के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मस्जिद कमेटी को तुरंत अपील करनी चाहिए और सुधार करवाना चाहिए। ASI सिर्फ धोखाधड़ी का पाप करेगी और इतिहास दोहराया जाएगा, जैसा बाबरी मामले में हुआ। किसी भी व्यक्ति को मस्जिद की प्रकृति बदलने का हक नहीं।
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद आसपास है। मंदिर पक्ष ये दावा करता है कि औरंगजेब के शासनकाल के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा गया था और उसी परिसर के उस हिस्से ज्ञानवापी मस्जिद बनाया गया। पक्ष की ओर से ये दावा किया जाता है कि मंदिर के अवशेष अभी भी पूरे परिसर में मौजूद हैं। वहीं अंजुमन इंतजामियां मस्जिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने जो प्रतिवाद दाखिल किया, उसमें ये दावा किया गया कि वहां पर मस्जिद अनंत काल से कायम है।