कांवड़ यात्रा को लेकर नोएडा प्रशासन ने तैयारियां शुरु कर दी है। ऐसे में जिला प्रशासन ने कांवड़ यात्रा के रूट पर मीट की शॉप और शराब की दुकानों को बंद करने के आदेश जारी किए है। इसके अलावा पुलिस इसका निरीक्षण भी करेगी।
दरअसल, कांवड़ यात्रा को लेकर जिला प्रशासन सुहास एलवाई ने अधिकारियों को 14-26 जुलाई तक कांवड़ यात्रा के रास्तों में आने वाली सभी मीट शॉप और शराब की दुकानों को बंद करने के आदेश दिए है। कांवड़ यात्रा को अंतिम रूप दिए जाने पर ये फैसला लिया गया है। जिसके बाद पुलिस निरीक्षण कर देखेगी कि आदेश का पालन किया गया है या नहीं।
कांवड़ यात्रा के दौरान पुलिस की होगी पैनी नजर
वहीं कांवड़ यात्रा की तैयारियों के मद्देनजर अधिकारियों ने बैठक की। इस दौरान त्यौहारों के समय शरारती तत्वों पर नजर बनाए रखने का फैसला भी किया गया। साथ ही बिना किसी नागरिक को परेशान किए चेकिंग अभियान पर ध्यान देने की बात भी जिला मजिस्ट्रेट ने पुलिस को सुनिश्चित की।
डीएम ने कांवड़ यात्रा के तहत हुई बैठक की दी जानकारी
पुलिस की जिला मजिस्ट्रेट के साथ हुआ बैठक के बाद डीएम ने बताया कि ‘पुलिस अधिकारियों और अन्य विभाग प्रमुखों के साथ हुई बैठक के दौरान, उन्हें जिले में परेशानी मुक्त कांवड़ यात्रा सुनिश्चित करने के लिए एक विस्तृत योजना तैयार करने को कहा गया है. मार्गों को अंतिम रूप दिए जाने के बाद, अधिकारी क्षेत्रों का दौरा करेंगे और यात्रा के दौरान जिन मांस और शराब की दुकानों को बंद रखना है उनकी पहचान करेंगे।’
गौरतलब है कि देशभर में कोरोना महामारी के चलते कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी गई थी। जिसके बाद इसे एक बार फिर पूरी निगरानी और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए शुरु किया जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवजी के प्रति आस्था और भक्तों के प्रेम का प्रतीक यह कांवड़ यात्रा कब से शुरू हुई? क्यों इसकी शुरुआत हुई और इस कांवड़ यात्रा का महत्व और इतिहास क्या है? तो आइए बताते है…
कांवड़ यात्रा की मान्यता
कांवड़ यात्रा को लेकर अलग-अलग मान्यताएं है। जिनमें से कुछ पश्चिम यूपी से भी जुड़ी हुई हैं। मान्यता ये है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने बागपत के पास स्थित पुरा महादेव मंदिर में कांवड़ से गंगाजल लाकर जल अभिषेक किया था। और जल अभिषेक करने के लिए भगवान परशुराम गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लेकर आए थे।
ये है कांवड़ यात्रा की दूसरी मान्यता
वहीं दूसरी मान्यता ये भी है कि सबसे पहले मर्यादा पुरुषोत्म श्रीराम ने शिव जी का जल अभिषेक किया। कथा मिलती है कि श्रीराम ने बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबाधाम में शिवलिंग का जल अभिषेक किया था।
विद्वानों का मानना है
वहीं कुछ विद्वानों का तो ये भी मानना है कि त्रेतायुग में श्रवण कुमार हिमाचल के उना क्षेत्र से अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया था। वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए और इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
पुराणों में ये है मान्यता
पुराणों के मुताबिक, समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ के नाम से जानें जाने लगे। विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए लंका के राजा रावण ने कांवड़ में जल भरकर बागपत स्थित पुरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। जिसकी वजह से यहां से कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई थी।
वहीं कुछ ऐसी भी मान्यता है कि विष के प्रभावों को खत्म करने के लिए देवताओं ने सावन में शिव पर मां गंगा का जल चढ़ाया था और तभी से कांवड़ यात्रा का आगाज हुआ।
कांवड़ यात्रा का ये है महत्व
कांवड़ यात्रा को सावन में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान श्रद्धालु अपनी इच्छाओं और मनोकामनाओं को पूरी करने के लिए कांवड़ यात्रा पर जाते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान शिव जी को जल अर्पित भी किया जाता हैं। ये माना जाता है कि इस सावन के महीने में भगवान शिव अपने ससुराल राजा दक्ष की नगरी कनखल, हरिद्वार में निवास करते हैं। श्रीहरविष्णु के शयन में जाने के कारण तीनों लोक की देखभाल भोलेनाथ खुद करते हैं। और यही कारण है कि सावन के महीने में कांवड़िए गंगाजल लेने के लिए हरिद्वार पहुंचते हैं। तो कांवड़ यात्रा को लेकर ये सभी मान्यता बेहद ही प्रचलित है।
कोरोना के बाद फिर शुरु होगी कांवड़ यात्रा
बता दें कि 2 साल बाद कोरोना के चलते कांवड़ यात्रा नहीं हो पाई थी। जिसके बाद कांवड़ यात्रा को एक बार फिर से शुरु किया जा रहा है। हालांकि इस दौरान सुरक्षा के लिहाज से पूरा ध्यान रखा जाएगा। जिसकी तैयारियां भी नोएडा पुलिस ने शुरु करने की ठान ली है।