महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को लेकर तो अक्सर ही बहस होती रहती है, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि नाथूराम के साथ एक और शख्स को गांधी जी हत्या के मामले में दोषी पाते हुए फांसी की सजा दी गई थी? 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में उस शख्स को गोडसे के साथ ही फांसी दी गई थी। उस शख्स का नाम है नारायण दत्तात्रेय आप्टे। बाद के वक्त में आप्टे के बारे में ये तक कहा जाने लगा कि वो शायद ब्रिटिश जासूस के तौर पर भी काम भी करता था।
गोडसे और आप्टे को हुई थी फांसी
10 फरवरी 1949 का दिन था जब गांधीजी की हत्या के केस में स्पेशल कोर्ट ने सजा सुनाई थी। इस दौरान 9 आरोपियों में से एक विनायक दामोदर सावरकर को बरी किया गया। बाकी आठ को हत्या, साजिश रचने और हिंसा के केस में सजा दी गई, जिनमें दो लोगों को नाथूराम गोडसे और नारायण दत्तात्रेय आप्टे को फांसी की सजा दे दी गई और बाकी के छह लोगों को उम्रकैद। इसमें गोपाल गोडसे भी शामिल था जो कि नाथूराम गोडसे का भाई था।
1966 में जब सरकार ने फिर से गांधी हत्या केस खोल दिया तो जस्टिस जेएल कपूर की अगुवाई में जांच कमीशन बना दी गई जिसकी रिपोर्ट में आप्टे को लेकर कहा गया कि उसकी सही पहचान पर शक है। इस रिपोर्ट में उसे भारतीय वायुसेना का पूर्व कर्मी कहा गया। फिर इसी जानकारी के बेस पर अभिनव भारत मुंबई नाम की संस्था ने तब के रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर से कुछ जानकारी जुटाई तो पाया कि आप्टे कभी एयरफोर्स में नहीं रहा और फिर इसी संस्था के प्रमुख डॉक्टर पंकज फडनिस की तरफ से कहा गया कि उनकी रिसर्च में पाया गया कि ब्रिटिश खुफिया एजेंसी फोर्स 136 का आप्टे मेंमबर था।
कौन था नारायण आप्टे?
जब गांधी जी की हत्या हुई तो गांधीजी पर तीन गोली तो गोडसे ने दागी और चौथी गोली आप्टे ने दागी थी। आप्टे की जिंदगी पर अगर गौर करें तो उसने साइंस में यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और फिर कई तरह के कामों में लग गया, जैसे कि उसने टीचिंग भी की। वो पुणे में संस्कृत विद्वानों के ब्राह्मण फैमिली से आता था, जिसकी तब धाक हुआ करती थी। हिंदू महासभा के लोगों से सावरकर ने अंग्रेजों की हेल्प करने की अपील की जब दूसरे विश्व युद्ध के वक्त चल रहा था तो वहीं आप्टे पुणे क्षेत्र में सेना का रिक्रूटर बना और टेंप्ररी फ्लाइट लेफ्टिनेंट भी बनाया गया।
अहमदनगर में नारायण आप्टे ने 1939 में टीचर की नौकरी की और इसी वक्त हिंदू महासभा के साथ वो जुड़ गया। लेकिन फैमिली के हालात बिगड़े तो वो पुणे के अपने पुश्तैनी घर में परिवार के पास लौट गया। बाद के वक्त में वो गोडसे से मिला और उसी के साथ अग्रणी के नाम से एक न्यूज पेपर निकालने लगा जो कि हिंदू विचारधारा को स्थान देता था और इसमें कांग्रेस पर निशाने साधे जाते थे। ये अखबार घाटे में तो था पर सावरकर की तरफ से इसे आर्थिक मदद दिया जाता रहा था। बाद में इसे बंद कर दिया गया क्योंकि आजादी के बाद सरकार ने उस अखबार को आपत्तिजनक पाया और क्लोज कर दिया जिस पर आप्टे ने “हिंदू राष्ट्र” के नाम से एक और नया नवेला अखबार निकाला।
…जब दी गई फांसी तो
रॉबर्ट पेन की बुक द लाइफ एंड डेथ ऑफ महात्मा गांधी में कहा गया कि जेल में आदर्श कैदी की तरह था आप्टे जिसने भारतीय चिंतन पर एक बुक लिखी और फिर 15 नवंबर को जब अंबाला जेल में फांसी दे दी गई उससे पहले आप्टे शांत था और खुद में मगन था। अखंड भारत के नारे गोडसे लगा रहा था तो वहीं आप्टे और मजबूत आवाज में कह रहा था अमर रहे।