उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से बीते दिन आई एक खबर ने देशभर में हलचल मचा दी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। उनका शव सोमवार शाम को पंखे से झूलता हुआ मिला। साथ ही एक सुसाइड नोट भी बरामद किया गया।
सुसाइड नोट को लेकर घिरा शिष्य?
बताया जा रहा है कि इस कथित सुसाइड नोट में महंत नरेंद्र गिरी ने अपना वसीयतनामा लिखा है। साथ ही उन्होंने अपने एक शिष्य आनंद गिरी पर कई गंभीर आरोप भी लगाए। शिष्य आनंद गिरी पर महंत को मानसिक रूप से परेशान करने के आरोप लगे।
वहीं मामला सामने आने के बाद आनंद गिरी को हिरासत में लिया गया, जिसमें वो अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से नकारते हुए फंसाने की बात कही। शिष्य आनंद गिरी ने महंत की मौत को हत्या करार देते हुए इसे एक बड़ी साजिश बताया। शिष्य ने कहा कि उनको प्रताड़ित कर मरने और मेरा नाम सुसाइड नोट में लिखने को मजबूर किया गया। इसकी जांच की जानी चाहिए।
रहस्मयी बनी मौत!
जिन परिस्थितियों में महंत की मौत हुई, वो फिलहाल रहस्यमयी बनी हुई है। उनकी मौत एक सुसाइड का मामला है या फिर उनकी हत्या की गई, ये जांच का विषय है। हालांकि महंत की मौत के मामले में अभी कुछ एंगल निकलकर सामने आ रहे हैं, जो उनकी मौत का कारण माने जा रहे हैं। उनका बाघंबरी गद्दी के उत्तराधिकारी और संपत्तियों को लेकर शिष्य आनंद गिरि से विवाद चल रहा था। वहीं पहले महंत नरेंद्र गिरी के शिष्य रहे आशीष गिरि ने भी संपत्ति को लेकर आरोप लगाए थे और बाद में उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।
इस पूरे मामले में शक की सूई शिष्य आनंद गिरि पर जा रही है, क्योंकि उनका नरेंद्र गिरि के साथ काफी पुराना विवाद था। दोनों के बीच विवाद बाघंबरी की गद्दी की वसीयत को लेकर था। जिसको फिलहाल नरेंद्र गिरी संभाल रहे थे। दोनों के बीच जो विवाद था, उसको नाम तो संपत्तियों का दिया जा रहा था।
संपत्तियों को लेकर चल रहा था विवाद
दरअसल, बाघंबरी मठ की प्रयागराज के साथ नोएडा में भी कई एकड़ जमीन है। इसके अलावा मठ और संगम स्थित बड़े हनुमान मंदिर से भी करोड़ों रुपये की आमदनी होती है। शिष्य आनंद गिरि से महंत नरेंद्र गिरि का इसको लेकर ही विवाद चल रहा था। आनंद गिरि ने नरेंद्र गिरी पर कई बीघा जमीन बेचने का आरोप लगाया था।
कभी आनंद गिरि को माना जाता था उत्तराधिकारी
हालांकि महंत और उनके शिष्य आनंद गिरि के बीच उत्तराधिकारी का भी एक विवाद माना जाता है। दरअसल, एक वक्त ऐसा था जब आनंद गिरि को महंत नरेंद्र गिरी का उत्तराधिकारी माना जाता था। आनंद गिरि ने ये दावा भी किया था कि 2005 में उसे उत्तराधिकारी बनाया गयाऔर 2012 में वसीयत की गई। फिर उसे निरस्त कर दिया गया था। हालांकि वसीयत की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई। इसके बावजूद ये माना जाता है कि दोनों के बीच उत्तराधिकार ही वह मसला था, जिसको लेकर विवाद शुरू हुआ। हालांकि खुल तौर पर लड़ाई को उत्तराधिकार की जगह संपत्तियों को नाम दिया गया।
हो गया था समझौता, लेकिन…
हालांकि एक समय ऐसा भी था जब गुरु-शिष्य के बीच समझौता हो गया था। तब आनंद गिरी ने नरेंद्र गिरि के पैरों में गिरकर उनसे माफी मांगी थीं। साथ ही उन्होंने अपने बयानों को वापस लिया था। लेकिन ऐसा माना जाता है कि भले ही सार्वजनिक तौर पर गुरु और शिष्य के बीच चल रही लड़ाई को खत्म करने की कोशिश की गई हो, लेकिन अंदर ही अंदर ये लड़ाई जारी थी। इस वजह से ही गुरु पूर्णिमा पर आनंद गिरि ने अपने गुरु नरेंद्र गिरि के लिए पूजा नहीं की थी।