Lucknow News: लखनऊ के रहमानखेड़ा इलाके में बीते 92 दिनों से घूम रहे बाघ को आखिरकार वन विभाग की टीम ने पकड़ लिया। इस दौरान बाघ ने 25 शिकार किए, जिनमें ज्यादातर गाय, नीलगाय और अन्य छोटे जानवर शामिल थे। रहमानखेड़ा के आम के बागों और आसपास के गांवों में इस बाघ की सक्रियता लगातार बढ़ रही थी, जिससे ग्रामीणों में भय बना हुआ था। लेकिन बुधवार को इस खूंखार शिकारी को आखिरकार ट्रैंकुलाइज़र गन की मदद से काबू कर लिया गया।
कैसे पकड़ा गया बाघ? ऑपरेशन का रोमांचक अंत (Lucknow News)
बुधवार सुबह जब मीठेनगर गांव के खेत में बाघ ने एक गाय का शिकार किया, तो वन विभाग की टीम को बाघ की लोकेशन का सुराग मिला। ग्रामीणों की सूचना मिलते ही वन विभाग ने तुरंत अलर्ट जारी किया और ट्रैकिंग शुरू कर दी। सुबह 5 बजे से ऑपरेशन शुरू हुआ और शाम 6 बजे तक लगातार कोशिशों के बाद बाघ को बेहोश कर काबू कर लिया गया।
डीएफओ डॉ. सितांशु, डॉ. दक्ष, डॉ. नासिर और आरके सिंह के नेतृत्व में टीम ने बाघ को घेरने की रणनीति तैयार की। वाहनों और वन अधिकारियों की टीम ने मीठेनगर गांव की घेराबंदी की, ताकि बाघ को जंगल से बाहर भागने से रोका जा सके।
हथिनी डायना और सुलोचना पर सवार वन विभाग के विशेषज्ञों ने बाघ पर ट्रैंकुलाइज़र डार्ट से हमला किया। पहला डार्ट शाम 6:09 बजे मारा गया, जिससे बाघ भागते हुए रेलवे लाइन पार कर दुगौली के जंगल की ओर चला गया। इसके बाद 6:35 बजे दूसरा डार्ट मारा गया, जिससे वह पूरी तरह बेहोश हो गया और फिर उसे पिंजरे में डाल लिया गया।
पिछली नाकाम कोशिशों के बाद मिली सफलता
वन विभाग की टीम इस बाघ को पकड़ने के लिए कई महीनों से संघर्ष कर रही थी, लेकिन हर बार वह चकमा देकर निकल जाता था। विभाग ने ट्रैप कैमरे, पिंजरे और गड्ढों का इस्तेमाल किया, लेकिन वह किसी भी योजना में नहीं फंसा। बाघ को पकड़ने के लिए रहमानखेड़ा संस्थान में तीन जोन बनाए गए, लेकिन वह संस्थान के आसपास के गांवों में लगातार शिकार करता रहा और ट्रैप से बचता रहा।
रहमानखेड़ा क्यों बना बाघ का ठिकाना?
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र शुक्ला के अनुसार, रहमानखेड़ा में नीलगाय और छोटे जानवरों की बड़ी संख्या थी, जिससे बाघ को आसानी से शिकार मिलता रहा। साथ ही, बेहता नाले से पानी की भी उपलब्धता थी। यही कारण था कि यह बाघ लगभग तीन महीने तक इसी क्षेत्र में डटा रहा। विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि इस क्षेत्र में 2013 में भी एक बाघ तीन महीने तक रहा था, जो बाद में पकड़ा गया था।
बाघ को पकड़ने में खर्च हुए 80 लाख रुपये
वन विभाग ने इस ऑपरेशन में करीब 80 लाख रुपये खर्च किए। इस रकम में दुधवा नेशनल पार्क से बुलाई गई हथनियां (डायना और सुलोचना), हाईटेक सर्विलांस, ड्रोन कैमरे, पिंजरे, और ऑपरेशन से जुड़ी टीम का खर्च शामिल था।
100 से अधिक कर्मचारी और 3 डीएफओ तैनात
इस रेस्क्यू ऑपरेशन में लखनऊ, हरदोई, सीतापुर और पीलीभीत के डीएफओ शामिल थे। इसके अलावा, 100 से अधिक वनकर्मी और अधिकारी लगातार इस बाघ की तलाश में जुटे रहे। दो विशेषज्ञ डॉक्टरों को 3 जनवरी से लगातार हथनियों पर बैठाकर कॉम्बिंग करवाई जा रही थी, ताकि बाघ की सही लोकेशन का पता लगाया जा सके।
बाघ आया कहां से? अभी भी सवाल बना हुआ
अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यह बाघ सीतापुर, पीलीभीत या लखीमपुर में से किस इलाके से भटककर आया था। वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक, युवा बाघ अक्सर अपने कुनबे से अलग होकर नई टेरिटरी बनाने के लिए निकलते हैं और कई बार शहरी क्षेत्रों में भटक जाते हैं। इससे पहले भी पीलीभीत के जंगलों से भटके बाघों को लखनऊ में पकड़ा गया था।
संस्थान को हुआ करोड़ों का नुकसान
रहमानखेड़ा इलाके में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान स्थित है, जहां बाघ की दहशत के चलते 18 दिसंबर से कई काम बंद कर दिए गए थे। वैज्ञानिकों और कर्मचारियों को फार्म में जाने की अनुमति नहीं थी, जिससे संस्थान में अमरूद, बेल और अन्य फलों की फसल की देखभाल नहीं हो पाई। अनुमान है कि इस वजह से संस्थान को करीब 1 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
20 किलोमीटर के दायरे में फैली दहशत
बाघ की मौजूदगी से मीठेनगर, दुगौली, उलरापुर, रसूलपुर, अल्लूपुर, सहिलामऊ, मोहम्मदनगर, बनियाखेड़ा, हलवापुर, मौरवा और अन्य 20 गांवों में दहशत थी।
बाघ की गतिविधियों का पूरा रिकॉर्ड
- 2 दिसंबर: रहमानखेड़ा में पहली बार बाघ के पगमार्क मिले।
- 8 दिसंबर: काकोरी के मंडलौली गांव में दिखा।
- 12 दिसंबर: पिंजरे के पास नीलगाय के अवशेष मिले।
- 21 दिसंबर: मीठेनगर में सांड़ का शिकार किया।
- 10 जनवरी: फिर से मीठेनगर में नीलगाय को मारा।
- 4 मार्च: गेहूं के खेत में गाय का शिकार किया।
- 5 मार्च: वन विभाग की टीम ने बाघ को सफलतापूर्वक रेस्क्यू किया।
अब क्या होगा बाघ का?
वन विभाग ने बाघ को सुरक्षित रिहैबिलिटेशन सेंटर में भेजने की योजना बनाई है। विशेषज्ञ यह तय करेंगे कि उसे किसी नेशनल पार्क में छोड़ा जाए या किसी सुरक्षित वन क्षेत्र में।
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