‘देश का राजा डरता है…डरपोक है…राजा आंदोलनों से डरता है…उसे डर लगता है अपनी कुर्सी के खिसकने का…उसे डर लगता है जब कोई उसके खिलाफ बोलता है…उसे डर लगता है जब कोई उसकी नीतियों पर सवाल उठाता है…उसे डर लगता है जब उसके नाम देश के मशहूर उद्योगपतियों के साथ जोड़े जाते हैं….उसे डर लगता है जब देश में लोग अपने अधिकारों की मांग करते हैं…हर तानाशाह डरता है लोगों की आवाज से…डर का आलम ऐसा होता है कि लोगों को कुचलने का काम शुरू हो जाता है.’ सभी तानाशाहों ने ऐसा ही किया है…हम यहां किसी को तानाशाह नहीं बता रहे लेकिन पैटर्न देखें तो काफी हद तक चीजें स्पष्ट हो जाती है.
किसान आंदोलन के समय किसानों को रोकने के लिए रोड पर कील की दीवार खड़ी करना हो…आंदोलनकारी किसानों पर लाठीचार्ज करा कर उनकी आवाज दबानी हो या फिर शांतिपूर्ण मार्च निकाल कर अपने अधिकारों की मांग करने वाले सोनम वांगचुक और लद्दाखियों की गिरफ्तारी का मामला हो…मोदी सरकार डरी है…हर बार डरी है…जब किसी ने अपने हक की मांग की है तब मोदी सरकार डरी है…सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी क्यों हुई है, अगर इसकी पड़ताल करें तो मोदी सरकार का घिनौना चेहरा निकल कर सामने आता है. मोदी सरकार लद्दाख पर अपने फैसले से कैसे पलटी मार गई, जिसके कारण यह सब शुरु हुआ? सोनम वांगचुक की मांगें क्या हैं ? छठी अनुसूची क्या है? षड्यंत्र के तहत वांगचुक की गिरफ्तारी कैसे हुई? इन सारे सवालों के जवाब इस लेख के जरिए हम ढूंढने का प्रयास करेंगे.
लद्दाख पर पलटी क्यों मार गई मोदी सरकार
दरअसल, 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार संसद में एक बिल लेकर आई…370 को निरस्त कर दिया गया…जम्मू कश्मीर और लद्दाख को 2 हिस्सों में बांट दिया गया…इसके 1 महीने बाद ही सितंबर 2019 में सरकार के अंतर्गत आने वाली संस्था राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की सिफारिश कर दी…इस आयोग का मानना था कि नया केंद्रशासित प्रदेश मुख्य रूप से आदिवासी बहुल है और इसकी विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता है. आपको बता दें कि लद्दाख में 97 फीसदी आदिवासी हैं.
लेकिन साल 2023 आते आते सरकार अपने इस फैसले से पलट गई.. गृह मंत्रालय ने लद्दाख के लोगों के लिये “भूमि और रोज़गार की सुरक्षा सुनिश्चित करने” हेतु केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के लिये एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया..साथ ही गृह मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांगों पर विचार-विमर्श भी नहीं किया जाएगा…सरकार के इस फैसले के बाद पूरे लद्दाख में लोग सड़कों पर उतर आए थे…उसके बाद फिर से गृह मंत्रालय और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस और लेह एपेक्स बॉडी के प्रतिनिधियों के बीच मांगों के समाधान के लिए बातचीत शुरु हुई लेकिन फरवरी 2024 में यह बातचीत फेल गई और लद्दाख में विरोध प्रदर्शन तेज हो गया.
और पढ़ें: Jammu & Kashmir: अपने फैसलों के ‘गुलाम’ हो गए गुलाम नबी आजाद, न घर के रहे न घाट के!
सोनम वांगचुक का अनशन
अगले ही महीने पेश से इंजीनियर और पर्यावरण एक्टिवस्ट सोनम वांगचुक ने 6 मार्च 2024 से लद्दाख की मांगों को लेकर शून्य से नीचे के तापमान पर भूख हड़ताल शुरु कर दिया. उनके साथ-साथ उनके कई साथियों ने भी लद्दाख की मांगों को लेकर भूख हड़ताल शुरु किया था. 26 मार्च 2024 को इन्होंने अपना भूख हड़ताल खत्म किया…इतने दिनों तक वे सिर्फ नमक और पानी के सहारे जिंदा रहे…सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल को लद्दाख में काफी जनसमर्थन मिला था. इसके बाद उनकी हड़ताल ने सभी का ध्यान खींचा था. हालांकि, सरकार ने तब भी इनकी बातें नहीं सुनी.
उसके बाद सरकार को नींद से जगाने के लिए लद्दाखियों ने दिल्ली आने का फैसला किया…1 सितंबर 2024 को लेह के एनडीएस मेमोरियल पार्क से सोनम वांगचुक और लेह एपेक्स बॉडी के पदाधिकारियों के नेतृत्व में 100 से अधिक लद्दाखी पैदल ही दिल्ली के लिए निकल गए…लेह से दिल्ली की दूरी करीब 930 किलो मीटर के आस पास है…ऐसे में लद्दाख से निकले लोग हर दिन 25-30 किमी पैदल और शांतिपूर्ण यात्रा करते हुए दिल्ली की ओर बढ़ते रहे…30 सितंबर को लद्दाख से निकले लोग जैसे ही अपनी 1 महीने की पदयात्रा के बाद दिल्ली बॉर्डर पर पहुंचते हैं…दिल्ली पुलिस उन्हें उठा लेती है.
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी कैसे हुई
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी को देखें तो यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार को उनके पग-पग की खबर थी…कब और कितने बजे तक लद्दाखी दिल्ली पहुंचेंगे..उन्हें पता था…यही कारण था कि 30 सितंबर को दिन में ही यह खबर आती है कि दिल्ली में बीएनएस की धारा 163 लागू कर दी गई (यह वही धारा है, जिसे पहले 144 के नाम से जाना जाता था…) इसे लागू करने के बाद राज्य में कहीं भी किसी भी जगह पर 5 से अधिक लोग एक साथ इकठ्ठा नहीं हो सकते…ऐसे में जैसे ही शाम तक सोनम वांगचुक के साथ लद्दाख से निकले लोग दिल्ली बॉर्डर पहुंचते हैं…इसी धारा के तहत पुलिस उन्हें उठा लेती है…तय तय कार्यक्रम के अनुसार, उन्हें दो अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन महात्मा गांधी की समाधि पर पहुंचना था और सरकार को अपने मांगों के बारे में बताना था..
सोमवार की रात ख़ुद सोनम वांगचुक ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर हिरासत में लिए जाने की बात कही. उन्होंने खुद की एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, “दिल्ली बॉर्डर पर 150 पदयात्रियों के साथ मुझे हिरासत में लिया जा रहा है. इसके लिए 100 पुलिस वाले हैं. कुछ का कहना है कि ये 1000 हैं.”
I AM BEING DETAINED…
along with 150 padyatris
at Delhi Border, by a police force of 100s some say 1,000.
Many elderly men & women in their 80s and few dozen Army veterans…
Our fate is unknown.
We were on a most peaceful march to Bapu’s Samadhi… in the largest democracy… pic.twitter.com/iPZOJE5uuM— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) September 30, 2024
उन्होंने बताया, ”उनके साथ पदयात्रियों में 80 साल से ज़्यादा उम्र के बुज़ुर्ग भी हैं. इसमें महिलाएं भी शामिल हैं. इसके साथ कुछ दर्जन सेना से रिटायर्ड लोग भी हैं. आगे क्या होगा, कुछ पता नहीं है. हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में बापू की समाधि तक सबसे शांतिपूर्ण मार्च पर थे.” अब पुलिस की हिरासत में ही सोनम वांगचुक ने अनिश्चितकालीन अनशन शुरु कर दिया है. उधर वांगचुक और अन्य को हिरासत में लेने के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है. मंगलवार को इस मामले का उल्लेख मुख्य न्यायाधीश मनमोहन व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ में किया गया. इस पर कल यानी 3 अक्टूबर को सुनवाई होगी.
आप समझिए कि लद्दाखियों के दिल्ली पहुंचने वाले दिन ही दिल्ली में 163 लागू किया जाता है…बॉर्डर पर पहुंचते ही उनकी गिरफ्तारी होती है और उन्हें दिल्ली पहुंचने से रोक दिया जाता है. मामला कोर्ट में जाता है लेकिन डेट उस दिन का नहीं मिलता…अगले दिन 2 अक्टूबर की छुट्टी होती है और सुनवाई 3 अक्टूबर तक खींच जाती है…इसे ही बोलचाल की भाषा में षड्यंत्र कहा जाता है…बाकी आप खुद समझदार हैं!
सोनम वांगचुक की मांगें और छठी अनुसूची
अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद लद्दाख को एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था. जबकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी यह सुनिश्चित किय गया. साथ ही यह स्पष्ट हुआ कि लद्दाख में कोई परिषद नहीं होगी. लेकिन छठी अनुसूची में शामिल किए जाने के बाद लद्दाख के लोग स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषद बना सकेंगे. इसके अलावा उनकी मांगों में दो लोकसभा की सीटें और एक राज्यसभा की सीट भी शामिल है.
सोनम वांगचुक की ये हैं मांगें…
- लद्दाख के लिए एक लोक सेवा आयोग की मांग
- लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीट बनाने की मांग
- साथ ही जल्द भर्ती प्रक्रिया और इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है
अब समझते हैं कि लद्दाख के लिए छठी अनुसूची जरुरी क्यों है…ध्यान देने वाली बात है कि छठी अनुसूची संविधान के अनुच्छेद 244 के अंतर्गत आता है, जिसके तहत स्वायत्त ज़िला परिषदों का गठन किया जाता है. छठी अनुसूची में पूर्वोत्तर के चार राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित विशेष प्रावधान हैं. इन चार राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है. राज्यपाल के पास स्वायत्त ज़िलों के गठन और पुनर्गठन से संबंधित अधिकार है. संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों पर लागू नहीं होते हैं अथवा विशिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं. इस संबंध में निर्देशन की शक्ति या तो राष्ट्रपति या फिर राज्यपाल के पास होती है… प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में एक ज़िला परिषद होती है और इसमें सदस्यों की संख्या 30 होती हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा मनोनीत किये जाते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं.
स्वायत्त परिषद के अधिकार क्षेत्र में तमाम चीजें आती हैं…
- वे भूमि, जंगल, नहर का पानी, झूम खेती, ग्राम प्रशासन, संपत्ति की विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाज़ों आदि जैसे कुछ विशिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं. लेकिन ऐसे सभी कानूनों हेतु राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है.
- वे जनजातियों के बीच मुकदमों और मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम सभाओं या न्यायालयों का गठन कर सकती हैं. वे उनकी अपील सुनती हैं. इन मुकदमों एवं मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है.
- ज़िला परिषद ज़िले में प्राथमिक विद्यालयों, औषधालयों, बाज़ारों, घाटों, मत्स्य पालन, सड़कों आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है.
- उन्हें भू-राजस्व का आकलन करने और एकत्र करने एवं कुछ निर्दिष्ट कर लगाने का अधिकार है.
लद्दाख में मौजूदा समय में कोई परिषद नहीं है…साथ ही लद्दाख में आदिवासियों की जनसंख्या 97 फीसदी के करीब है…इसके अलावा पर्यावरणीय स्थिति को देखते हुए भी इसे छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की जा रही है..लेकिन दूसरी ओर गृह मंत्रालय की ओर से स्पष्ट तौर पर कहा जा रहा है कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करना मुश्किल होगा..संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर के लिये है तथा पाँचवीं अनुसूची देश के बाकी हिस्सों के आदिवासी क्षेत्रों के लिये है…यहां भी एक पेंच ये फंसता है कि अगर सारे नियम कायदों के मुताबिक लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया जा सकता तो सरकार के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की सिफारिश कैसे कर दी.
लद्दाख में तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर
आपको बता दें कि लद्दाखियों की लड़ाई इस बात के लिए भी है कि लद्दाख में ग्लेशियर पिघल रहे हैं…दुनिया के हर 4 में से 1 एक इंसान ऐसे इलाके में रहता है जो पानी के लिए ग्लेशियर या मौसमी बर्फ पर निर्भर है..ग्लेशियर एक सुरक्षा कवच की तरह हैं…ये सैकड़ों हजारों सालों की जमापूंजी हैं लेकिन ये अब नाटकीय रुप से तेजी से पिघल रहे हैं..शोधकर्ताओं का कहना है कि पूर्व हिमालयी क्षेत्र के अधिकतर ग्लेशियर अगले एक दशक में पिछल जाएंगे…इसे लेकर सोनम वांगचुक कहते हैं कि “लद्दाख और आसपास के हिमालय के ग्लेशियर ग्रह का तीसरा ध्रुव हैं. इसमें ताजे पानी का सबसे बड़ा भंडार है और दो अरब लोगों को भोजन मिलता है, जो ग्रह की कुल आबादी का एक-चौथाई है. जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ इंसानी गतिविधि और कार्बन उत्सर्जन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं.”
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर लद्दाख के नाजुक ईकोसिस्टम में खनन और उद्योगों की अनुमति दी गई, तो “कुछ ही समय में ग्लेशियर पिघल जाएंगे. गाड़ियों से निकलने वाला धुआं सफेद चमचमाती बर्फ पर बैठ जाता है और इसे बहुत तेजी से पिघला देता है. यदि यह जारी रहा तो हम जलवायु शरणार्थी बन सकते हैं. इसका मतलब यह भी है कि पूरे उत्तर भारत में सर्दियों के महीनों से लेकर वसंत तक पानी के भंडार नहीं होंगे.”
और पढ़ें: कलयुगी ‘भरत’ को कुर्सी देकर फंस गए ‘राम’ ? थाली में सजाकर नहीं मिलेगी केजरीवाल को सीएम की कुर्सी
छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया तो क्या होगा
ऐसे में अगर लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया जाता है तो वहा पूर्ण रूप से चीजें उपराज्यपाल के हाथों में होंगी…कोई रोक टोक नहीं होगा…विकास के नाम पर वहां फैक्ट्रियां लगाई जाएंगी…अपने करीबियों को जमीन दिया जाएगा….जमकर प्रदूषण होगा…फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं ग्लेशियर को पिघलाते रहेंगे और देखते ही देखते हमारी सैकड़ों हजारों साल से संरक्षित की गई पूंजी स्वाहा हो जाएगी…और आने वाले वर्षों में हमें इसके भयानक परिणाम देखने को मिल सकते हैं….सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी काफी सोच समझ कर की गई है, जिसे कोई भी सपोर्ट नहीं कर सकता…लद्दाख का विकास जरुरी है लेकिन सरकार को इन षड्यंत्र और गिरफ्तारियों से ऊपर उठकर कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए और लद्दाख की संस्कृति और अपनी प्राकृतिक धरोहरों को बचाते हुए विकास पर जोर देना चाहिए.