कनाडा सिर्फ एक शब्द नहीं बल्कि उन भारतीय छात्रों की आशा की किरण है जो गरीबी से मुक्ति पाकर अपने परिवार का नाम रोशन करना चाहते हैं और बेहतर जिंदगी की तलाश में अपना देश छोड़कर उम्मीद की किरण लेकर विदेश जाना चाहते हैं। लेकिन इस कहानी का दूसरा मोड़ भी है। दरअसल अब कनाडा गए भारतीय छात्र अपने देश लौट रहे हैं। अपने देश लौटने वालों में बड़ी संख्या में भारतीय, खासकर पंजाबी शामिल हैं।
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कनाडा एक सपना या संघर्ष?
कनाडा जाकर कुछ बड़ा करने का सपना अब ज़्यादातर अप्रवासियों के लिए रोज़ी-रोटी और अस्तित्व का संघर्ष बनता जा रहा है। एक तरफ़ कनाडा के बड़े शहरों में गैंगस्टरों का दबदबा बढ़ रहा है। बैंक की ब्याज दरें और घरों की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। इसके चलते वहाँ रिवर्स इमिग्रेशन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस साल के पहले 6 महीनों में 42 हज़ार लोगों ने कनाडा की स्थायी नागरिकता (PR) छोड़ी है। 2022 में यह संख्या 93,818 थी। कनाडा सरकार के इमिग्रेशन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक़ 2021 की शुरुआत में 85,927 लोग कनाडा छोड़ चुके थे, जिनमें बड़ी संख्या में पंजाबी थे।
कनाडा और महंगाई
बढ़ती महंगाई, बढ़ते किराए और कई अन्य समस्याओं के कारण लोगों के लिए वहां रहना और अपना खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। पिछले कुछ सालों में घरों का किराया 22% तक बढ़ गया है। जिसकी वजह से स्टूडेंट्स को बेसमेंट में रहकर गुजारा करना पड़ता है। ओटावा के रहने वाले जसविंदर सिंह जस्सा कहते हैं कि ट्रूडो सरकार में कई चीजें महंगी हो गई हैं। पहले बैंक ब्याज दर 1.5 प्रतिशत सालाना थी, जो आज 7.5 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
स्टूडेंट्स ने बताई सच्चाई
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कनाडा में रहने वाली भारतीय छात्रा अर्पण कहती हैं कि जब वो 2021 में पहली बार कनाडा पहुंचीं तो उनका अनुभव बहुत बुरा रहा। उन्हें लगा कि वो किसी दूसरी दुनिया में आ गई हैं। अर्पण ने बताया, “एजेंट का एक परिचित मुझे एयरपोर्ट से लेने आया और उसने मुझे एक घर के बेसमेंट में किराए पर बिस्तर दिलवाया, जहां मैं सात महीने तक रही। कनाडा का मेरा अनुभव पहले सात महीने बहुत बुरा रहा।”
एजेंट उन्हें यह नहीं बताते कि उन्हें बेसमेंट में रहना होगा। पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें कैसे काम करना होगा। छात्रों को कितना शोषण सहना होगा। इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती। कनाडा के बारे में सिर्फ़ अच्छी बातें ही कही जाती हैं।अर्पण का कहना है कि भारतीय बच्चों को कनाडा के बारे में जो सपने दिखाए जाते हैं, वे वास्तविकता से बिल्कुल अलग हैं।
अकरम के मुताबिक, “अभी हम यहां मशीन की तरह हैं. हम सुबह से शाम तक काम करते हैं, ये मकड़ी के जाल की तरह है जिससे हम बाहर नहीं निकल सकते।” जब अकरम से पूछा गया कि अगर यहां जिंदगी इतनी मुश्किल है तो वे भारत क्यों नहीं लौट जाते, तो उनका जवाब था, “गांव वाले क्या कहेंगे? रिश्तेदार क्या कहेंगे।” उन्होंने कहा, “हम चाहकर भी अपने देश नहीं लौट सकते। रिश्तेदारों और समाज के दबाव के कारण हम ऐसा नहीं कर सकते।”