अयोध्या में राम मंदिर का विवाद तो खत्म हो गया, लेकिन राम के नाम पर एक और विवाद अपनी जमीन तैयार करने लगा है। मंदिर के लिए जमीन खरीद घोटाला मामले ने फिर से सुर्खिया बटोरनी शुरू कर दी है और विपक्ष ने इस मामले को तूल देना शुरू कर दिया। जहां एक तरफ तो अयोध्या में योगी सरकार ने जमीन खरीद मामले की जांच के आदेश दिए तो दूसरी ओर विपक्ष के लिए खासकर कांग्रेस के लिए रामबाण की तरह ये मुद्दा नजर आ रहा है जिसे भूनना और जिसे लेकर बीजेपी पर हमलावर होना तो शुरू भी कर दिया है उसने।
क्या है जमीन खरीद का पूरा केस जिसने बीजेपी को बैकफूट पर कर दिया है?
दरअसल अब आरोप लगते हैं कि राम मंदिर बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सुनाए फैसले के बाद कई बड़े अधिकारियों ने जमीन खरीदी औने-पौने दाम पर की थी। कई बड़े अधिकारी, नेता और विधायकों के, विधायकों के संबंधियों के नाम शामिल हैं। हांलाकि सभी पर आरोप ही लगाए गए है, पुख्ता तौर पर हम कुछ नहीं कह रहे हैं।
वैसे आगे गौर करें तो इनमें से कुछ ने तो जमीन खरीदने की बात मानी पर कुछ ने साफ मना कर रहे हैं। फिलहाल सच्चाई जानने के लिए जांच के आदेश दिए गए हैं।
ट्रस्ट पर लगे क्या आरोप?
इस पूरे मामले में जिक्र महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट का होता है। आरोप है कि ट्रस्ट ने अपने विश्वसनीय दलित को दलित की जमीन दिलाई और फिर उसे महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट को दान किया और बाद में जमीन नेताओं और अधिकारियों ने खरीदी वो भी अपने रिश्तेदारों के नाम पर। हुआ ये कि बरहटा मांझा और आस-पास के एरिया में काफी सारी जमीन साल 1990 से 1996 के बीच महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने खरीदीं। कई जमीनों की खरीद में नियम ताख पर रखने के आरोप लगते हैं।
आरोप लगते हैं कि पहले अपने भरोसे के दलित शख्स के नाम से ट्रस्ट ने दलितों से जमीन खरीदी और उसी जमीन को दान पत्र के जरिए ट्रस्ट के नाम पर साल 1996 में करा दिया गया। इसी तरीके से पूरी जमीन ट्रस्ट के नाम हो गई। ऐसे नियम है उत्तर प्रदेश भू-राजस्व संहिता में कि दलित से जमीन खरीदने के लिए गैर दलित को जिला मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी या तो उस जमीन को दलित आबादी की भूमि में बदल दें। परिवर्तित कराना होता है।
आरोप है कि महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने भी इसका जुगाड़ निकाल लिया था। जिन दलितों की जमीन खरीदकर ली गई, उसमें में से एक दलित ने शिकायत कर दी। महादेव नाम के दलित ने शिकायत बोर्ड ऑफ रेवेन्यू यानी राजस्व बोर्ड लखनऊ में जाकर अपनी शिकायत करते हुए आरोप ये भी लगाया कि उसकी जमीन महर्षि विद्यापीठ ट्रस्ट के नाम अवैध तरीके से स्थानांतरित की। बस फिर क्या था इसी के बाद फैजाबाद के अतिरिक्त आयुक्त और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने निर्देश दिए जिसके बाद एक जांच कमेटी बनी जिसको मंजूरी मिल गई है अयोध्या के कमिश्नर एमपी अग्रवाल की तरफ से वो भी साल 2021 में। इसके बाद अब जो आरोप लगते हैं उसके मुताबिक अफसरों के रिलेटिव्स ने ट्रस्ट से जमीन की खरीदी की। खैर, मामला कहां जाएगा आगे और जांच का क्या होगा ये आगे पता चलेगा।
चुनाव से पहले विपक्ष को मिला मुद्दा
लेकिन एक बात बिल्कुल भी नजर अंदाज नहीं की जा सकती है कि चुनावी बेला में विपक्ष को एक हाई प्रोफाइल मामला मिल चुका है। ताकि वो सत्ताधारी बीजेपी को निशाने पर ले सके। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की तरफ से हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया गया जिसमें घोटाले को लेकर खूब आरोप लगाए गए। आरोप लगाया गया कि राम मंदिर के चंदे में पहले घोटाला हुआ और अब दलितों की भूमि हड़पी जा रही है। प्रियंका ने डिस्ट्रिक्ट लेवल के ऑफिसर को जांच दिए जाने पर भी क्वेश्चन किया है और कहा कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मामले की जांच होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बेस पर ही राम मंदिर ट्रस्ट बना तो फिर जांच भी सुप्रीम कोर्ट के द्वारा ही होनी चाहिए। ऐसा इस वजह से क्योंकि डिस्ट्रिक्ट लेवल का अधिकारी मेयर को नहीं डांट सकता। प्रियंका ने ये भी कहा कि राम मंदिर के आसपास वाली जमीनों पर लूट लगी है। लूट में बीजेपी के नेता, पदाधिकारी और योगी सरकार के अधिकारी सब मिले हुए हैं। प्रियंका गांधी कुछ ऐसे तीखे आरोप लगाती हैं।
फिलहाल, जमीन खरोद-फरोख्त केस में शासन की तरफ से जांच के आदेश दे दिए गए है जिसके बाद तो जैसे खलबली मच गई है। कोई भी मुंह खोलने को तैयार नहीं है। सब एक ही बात बोल रहे हैं कि उनका मामले से या जमीन से कोई लेना देना नहीं जो जमीनें उनके रिश्तेदारों ने खरीदी वो उनका निजी मामला है।