इन दिनों देश में एक के बाद एक डिजिटल अरेस्ट के कई मामले सामने आए हैं। खासकर यह मामला उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रहा है। हाल ही में मेरठ में एक रिटायर्ड बैंक कर्मचारी से 1.73 करोड़ रुपये की ठगी की गई है। ठगों ने बैंक कर्मचारी को करीब 4 दिन तक डिजिटल अरेस्ट में रखा। इसी तरह मेरठ के सिविल लाइंस इलाके में रहने वाले बुजुर्ग सूरज प्रकाश से भी ठगी की जाती है। एक दिन उनके पास फोन आता है। उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया जाता है और उन्हें चार दिन तक घर में डिजिटल अरेस्ट में रखा जाता है। इस दौरान उनसे 1 करोड़ 73 लाख रुपये की ठगी की जाती है। इससे पहले डिजिटल अरेस्ट का मामला तब लाइमलाइट में आया था जब पीजीआई की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रुचिका टंडन को मनी लॉन्ड्रिंग का डर दिखाकर डिजिटल गिरफ्तारी में रखा गया था और उनसे 2.81 करोड़ रुपये की ठगी की गई थी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि आखिर लोग डिजिटली अरेस्ट कैसे हो जाते हैं और जालसाजों की कॉल क्यों नहीं काट पाते। आइए इस लेख में आपको इसके पीछे की वजह बताते हैं।
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क्या है डिजिटल अरेस्ट?
सबसे पहले जानते हैं कि डिजिटल अरेस्ट क्या है। इस तरह की धोखाधड़ी दरअसल काफी नई है। सबसे पहले पीड़ित को वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए बुलाया जाता है और कैमरे के सामने घंटों या दिन बिताने के लिए मजबूर किया जाता है या बहकाया जाता है। जब कोई आम आदमी ऐसी चालों में फंस जाता है, तो उसे डिजिटल रूप से कैद कर लिया जाता है। इस दौरान स्कैमर्स पीड़ित से कई तरह की निजी जानकारी ले लेते हैं ताकि उनका बैंक अकाउंट खाली किया जा सके।
इस वजह से नहीं काट पाते फोन
इस मामले में सवाल यह है कि ठगी का शिकार व्यक्ति अपना फोन क्यों नहीं काटता, जबकि ठगी करने वाले उसे ठग रहे होते हैं। इसके अलावा, यह भी गौर करने वाली बात होती है कि कैसे कोई व्यक्ति कई दिनों तक डिजिटल अरेस्ट में रह सकता है। असल में ठगी करने वालों का जाल शिकार को डरा देता है। सरल शब्दों में कहें तो, कल्पना करें कि ठगी करने वाला व्यक्ति किसी को फोन करता है और खुद को आयकर एजेंसी या पुलिस स्टेशन से होने का दावा करता है, और उन्हें बताता है कि उनके नाम पर ठगी की जा रही है।
इसके बाद ठगी करने वाला व्यक्ति उन्हें बताता है कि जब तक हमारी टीम आपसे पूछताछ करने के लिए नहीं आती, तब तक आप हमारे अधिकारियों के सामने बैठे रहेंगे और हम आपको वीडियो कॉल कर रहे हैं।
सब कुछ सच लगता है
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि वीडियो कॉल के दौरान ही व्यक्ति को पुलिस स्टेशन से कॉल आती है। साथ ही व्यक्ति को आश्चर्य होता है कि आखिर मामला क्या है, क्योंकि उसने कुछ गलत नहीं किया है और अधिकारी उसे केवल कैमरे के सामने रहने के लिए कह रहे हैं। इसके अलावा, कुछ लोग पुलिस के डर से कैमरे से दूर जाने से इनकार कर देते हैं। इस कारण से लोग डिजिटल गिरफ्तारी का शिकार हो जाते हैं। भारत में हाल ही में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं। इसने बड़े शहरों में खास तौर पर पढ़े-लिखे लोगों को निशाना बनाया है, अपराधियों ने पीड़ितों को डिजिटल तरीके से हिरासत में लिया है और उनके खातों से लाखों रुपये उड़ा लिए हैं।
ऐसे होता है डिजिटल अरेस्ट
-आपके फोन पर एक व्हाट्सएप कॉल आएगा।
– कॉल का बैकग्राउंड पुलिस स्टेशन जैसा दिखेगा।
– फिर आपको मनी लॉन्ड्रिंग, परिवार के किसी सदस्य के बलात्कार में शामिल होने आदि की धमकी दी जाएगी।
-वे आधार कार्ड सहित बैंक खाते का विवरण मांगेंगे।
– आपको बताया जाएगा कि आप डिजिटल अरेस्ट हैं और आपको अपने घर में ही रहना होगा।
– आपको गिरफ्तार करने और बैंक खाता जब्त करने की धमकी दी जाएगी।
– आपसे एक फर्जी ऐप डाउनलोड करवाया जाएगा और एक फॉर्म भरा जाएगा।
– जुर्माने के नाम पर डमी अकाउंट में पैसे ट्रांसफर किए जाएंगे।
कॉल आने पर क्या करें
– अनजान नंबर से आने वाली व्हाट्सएप कॉल को न उठाएं।
– अगर आप कॉल उठा भी लें तो अपनी निजी जानकारी शेयर न करें।
– अगर कोई आपको या आपके परिवार के सदस्यों को धमका रहा है कि आप मुसीबत में फंस जाएंगे तो साइबर हेल्पलाइन 1930 पर सूचना दें।
– अगर कोई आपसे डिजिटल गिरफ्तारी की बात करता है तो तुरंत साइबर हेल्पलाइन से मदद लें।
– किसी के झांसे में आकर पैसे ट्रांसफर न करें। साइबर अपराधियों का यही मकसद होता है।
– ध्यान रखें कि पुलिस, ईडी या कोई भी सरकारी एजेंसी ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करती।
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