अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राजनीतिक पार्टियां अभी से ही अपनी तैयारियों में लग गई है। प्रदेश की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी करने की बात कहते दिख रही है तो वहीं, समाजवादी पार्टी के नेता इस चुनाव में 300 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। जानिए मायावती के वो 5 कारनामें जिसने BSP को हमेशा के लिए खत्म कर दिया!
राज्य में बीएसपी, कांग्रेस समेत अन्य कई पार्टियां इस चुनाव में बीजेपी और सपा का खेल बिगाड़ सकती है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि कथित तौर पर यूपी में कांग्रेस और बीएसपी अब विश्वासपात्र राजनीतिक पार्टियों की कतार के अंतिम लाइनों में खड़ी है। क्योंकि अब ये पार्टियां चुनावों में लोगों का विश्वास जीतने में कामयाब नहीं हो पा रही।
बीएसपी सुप्रिमो मायावती 4 बार यूपी की सीएम रह चुकी है लेकिन राज्य में उनकी पार्टी का क्रेज लगभग खत्म सा हो गया है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि यूपी की जनता ने बीएसपी को नकार दिया और उसके बाद मायावती के नेतृत्व में पार्टी यूपी की सत्ता में वापसी करने में कामयाब नहीं हो पाई….आज इस आर्टिकल में हम उन बिंदुओं पर गौर करेंगे जिसने यूपी की सबसे भरोसेमंद पार्टी को अब लगभग पूरा नकार ही दिया है। तो आईए जानते हैं…
मायावती का कार्यकाल
मायावती पहली बार जून 1995 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ तक बीजेपी और अन्य दलों के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी थी। तब उनका कार्यकाल सिर्फ 4 महीनें में ही खत्म हो गया था। वह दूसरी बार 1997 और तीसरी बार 2002 में मुख्यमंत्री बनी। उस समय बीएसपी और बीजेपी गठबंधन में एक साथ थी।
जिसके बाद साल 2007 में वह चौथी बार प्रदेश की सीएम बनी। लेकिन 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में यूपी की जनता ने सपा पर भरोसा जताया और यहीं से बीएसपी का पतन शुरु हो गया। लोकसभा चुनाव 2014 में बीएसपी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।
यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी ने जीत हासिल कर सरकार बनाई, सपा दूसरे नंबर की पार्टी रही। अब यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी, सपा और बीएसपी तीनों पार्टियां सरकार बनाने का दावा कर रही है।
आखिर क्यों पिछड़ने लगी बीएसपी?
- यूपी विधानसभा चुनाव 2007 मे जीत हासिल कर मायावती के नेतृत्व में बीएसपी ने सरकार बनाई। इस चुनाव में बीएसपी को पिछले समुदाय के साथ-साथ सवर्ण और मुस्लिमों के भी वोट मिले थे। जीत हासिल करने के बाद मायावती ने सवर्ण और मुस्लिमों को धन्यवाद किया तो कथित तौर पर कैडर नाराज हो गए।
उससे पहले बीजेपी और बीएसपी गठबंधन में सरकार चलाती थी तब मायावती कहती थी कि सहयोगी पार्टी काम नहीं करने दे रही है। लेकिन 2007 में जब बीएसपी को पूर्ण बहुमत मिला तो राज्य में करप्शन चरम पर पहुंच गया। जिसके कारण 2012 में पार्टी फ्लॉप साबित हुई।
- लगातार बीएसपी के नेता पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हो रहे हैं। जो लगातार मायावती की चिंता बढ़ा रहे हैं। पार्टी छोड़ कर जाने वाले नेता कथित तौर पर मायावती पर वसूली करने का आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में वोटर को भी अब लगने लगा है कि मायावती उन्हें इस्तेमाल कर रही हैं। इसीलिए अब बसपा का क्रेज खत्म होता दिख रहा है।
- बसपा पिछड़े और दलित लोगों की परेशानियों के लिए लड़ने के लिए जानी जाती थी। लेकिन समय दर समय इसमें गिरावट देखी गई। पार्टी अब दलितों की ही नहीं, ब्राह्मणों और सवर्णों की भी पार्टी हो गई है। जिसे लेकर राजनीतिक पार्टियों की ओर से भी लगातार बयानबाजियां की जाती रही है।
- इससे इतर उत्तर प्रदेश की जनता मायावती को कठोर शाक के रुप में याद करती थी। तो दूसरी ओर उनके शासनकाल को भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान कायम करने के लिए भी याद किया जाता है। जहां एक तरफ कानून व्यवस्था पर उनकी पकड़ मजबूत होती थी तो दूसरी ओर विकास पूरे प्रदेश के एजेंडे से गायब हो जाता था। जिसके कारण पार्टी लोगों की नजरों से गिरने लगी।
- यूपी विधानसभा चुनाव 2012 में मिली हार के बाद बीएसपी गायब सी हो गई। समाजवादी पार्टी के शासनकाल में विपक्ष के रुप में बीएसपी अपनी भूमिका निभाने में नाकाम रही। बताया जाता है कि तब उनकी पार्टी के ज्यादातर नेताओं को बोलने की आजादी नहीं होती थी। कई बड़े मामलों पर बीएसपी की चुप्पी ने उसे प्रदेश की सियासत में काफी नीचे गिरा दिया।