पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव आज यानी 7 मार्च को खत्म होने जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में सांतवें चरण के लिए वोटिंग हो रही हैं। फरवरी से लेकर मार्च तक पांच राज्यों जिनमें यूपी के साथ साथ उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर शामिल थे, वहां विधानसभा चुनाव के वोट डाले गए। यूपी में सात चरणों में मतदान हुए। तो वहीं मणिपुर में दो फेज में वोट डाले गए। इसके अलावा बाकी राज्यों में एक-एक चरण में मतदान हुए।
चुनाव खत्म होने के बाद अब हर किसी को इंतेजार 10 मार्च का है, जब इन पांचों राज्यों के चुनावों की काउंटिंग होगीं। हालांकि नतीजों के सामने आने से पहले आज यानी 7 मार्च को वोटिंग खत्म होते ही अलग अलग एजेंसियों के एग्जिट पोल भी आना शुरू हो जाएंगे। जिससे अंदाजा लगाया जा सकेगा कि किस राज्य में आखिर किसकी सरकार बनने वाली है?
दरअसल, चुनाव आयोग ने कुछ नियम बना रखे हैं जिसके मुताबिक ये एजेंसियां आखिरी चरण की वोटिंग से पहले एग्जिट पोल के जरिए अनुमानित नतीजों का ट्रेंड नहीं बता सकती। अब जब यूपी में आखिरी चरण का मतदान हो रहा है, तो इसके खत्म होने के बाद टीवी चैनल्स और कुछ समाजार साइट्स अपने अपने एग्जिट पोल के नतीजे जारी करेंगे, जिसे उन्होंने खुद या एजेंसियों के जरिए करा रखे हैं।
होते क्या हैं ये एग्जिट पोल?
चुनावों के दौरान जब वोटिंग के बाद पोलिंग बूथ के बाहर लोग आते हैं, तो उनसे बातचीत और उनके रुझाने के जरिए एग्जिट पोल्स के नतीजे जारी किए जाते हैं। इससे ये अनुमान लगाया जाता है कि नतीजों का झुकाव किस तरफ होगा। बड़े पैमाने पर वोटरों से इसमें बात की जाती है। उनकी राय जानने के बाद एजेंसिया इसके आधार पर ही अपना डेटा करती हैं औऱ फिर एग्जिट पोल जारी किए जाते हैं।
सही होते हैं एग्जिट पोल के नतीजे?
एग्जिट पोल कितने सटीक होते हैं, इसको लेकर भी कई तरह के सवाल उठते रहते हैं। बात इन एग्जिट पोल की सटीकता की करें तो ऐसा नहीं है कि ये बिल्कुल सही ही होते हो। ऐसा कई बार हुआ है जब एग्जिट पोल्स में जो अनुमान लगाए गए, वो गलत भी साबित हुए। भारत में एग्जिट पोल का इतिहास ज्यादा सटीक नहीं रहा। कई बार ऐसा हुआ जब एग्जिट पोल नतीजों के बिल्कुल उलट रहे।
पिछले 5 चुनावों में कितने सही साबित हुए एग्जिट पोल?
एग्जिट पोल के नतीजे कितने सही, कितने गलत होते हैं, इसके बारे में जानने के लिए पिछले पांच बड़े और चर्चित एग्जिट पोल और चुनाव के असल रिजल्ट पर गौर कर लेते हैं। जिससे आपको मालूम हो जाएगा कि एग्जिट पोल के नतीजों पर कितना भरोसा करना चाहिए।
– साल 2021 में भी कई जगहों पर चुनाव हुए थे। इस दौरान सबसे ज्यादा चर्चाओं में रहे वेस्ट बंगाल के इलेक्शन। यहां ममता बनर्जी की TMC को विधानसभा चुनावों में बीजेपी कड़ी टक्कर देने की कोशिश कर रही थीं। इस दौरान एग्जिट पोल ये दिखा रहे थे कि बंगाल में बीजेपी 100 से ज्यादा सीटों पर चुनाव जीतेंगे, लेकिन असल में पार्टी के खाते में महज 77 सीटें ही गई और TMC ने यहां पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई।
– 2020 में चुनावों की बात करें तो यहां बिहार में विधानसभा इलेक्शन थे, जिसमें एग्जिट पोल के नतीजे फेल साबित होते हुए दिखाई दिए थे। दरअसल, कई एजेंसियों के एग्जिट पोल ने ये दावा किया था कि बिहार में RJD और कांग्रेस का गठबंधन सरकार बनाएगा और सत्ता से NDA गठबंधन बेदखल हो जाएगा। लेकिन जब चुनाव के असल रिजल्ट सामने आए तो ये एग्जिट पोल से एकदम अलग थे। BJP और JDU के गठबंधन की सरकार में वापसी हुई थी।
– 2020 में ही दिल्ली के भी विधानसभा चुनाव हुए थे। इन चुनावों के दौरान एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित होते दिखाई दिए थे। ज्यादातर एग्जिट पोल ने उस दौरान दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार की सत्ता में ही वापसी की बात कही थी और हुआ भी वैसा ही। पूर्ण बहुमत के साथ AAP दिल्ली की सत्ता में लौटी।
– 2019 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए। इन चुनावों में एग्जिट पोल में ये तो सही बताया गया कि राज्य में शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन पूर्ण बहुमत हासिल करेगा। लेकिन सीटों का अनुमान लगाने में ये एग्जिट पोल फेल हो गए थे। तमाम एग्जिट पोल दावा कर रहे थे कि बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन 200 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
– 2019 हरियाणा विधानसभा चुनावों में एग्जिट पोल फेल साबित हुए थे। अधिकतर एग्जिट पोल में बीजेपी को 70 से ज्यादा सीटें चुनाव में मिलने का दावा किया गया था, जबकि पार्टी महज 40 सीटों पर ही सिमटकर रह गई थीं। हालांकि बाद में दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर बीजेपी ने हरियाणा में सरकार जरूर बना ली थी।
ओपिनियन पोल से कैसे अलग होते हैं एग्जिट पोल?
एग्जिट पोल्स के अलावा तमाम न्यूज चैनल और एजेंसियां ओपनियन पोल्स भी जारी करती हैं। इस दोनों में अंतर क्या है, उस पर भी बात कर लेते हैं। ओपनियन पोल्स चुनाव से काफी पहले कराए जाते हैं। इस दौरान मतदाताओं से पूछा जाता है कि वो चुनाव में किस पार्टी को वोट देने वाले हैं और उन्हें कौन सा उम्मीदवार या नेता पसंद है। वहीं एग्जिट पोल्स वोटिंग के बाद होता है।
एग्जिट पोल को लेकर नियम क्या है?
एग्जिट पोल को लेकर कई नियम बने हुए हैं। इसको लेकर पहली बार गाइडलाइन साल 1998 में जारी की गई थी। जब चुनाव आयोग ने आर्टिकल 324 के तहत 14 फरवरी 1998 शाम 5 बजे से लेकर 7 मार्च 1998 शाम 5 बजे तक एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल के नतीजों को टीवी-अखबारों में छापने या दिखाने पर रोक लगा दी। उस दौरान 1998 में आम चुनाव 16 फरवरी से लेकर 7 मार्च तक हुए थे।
इसके बाद चुनाव आयोग एग्जिट और ओपिनियन पोल को लेकर अपनी गाइडलाइंस में कई बदलाव करता आया है। रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट 1951 के मुताबिक चुनाव में जब तक सारे फेज की वोटिंग खत्म नहीं होती, तब तक एग्जिट पोल जारी नहीं किए जा सकते। आखिरी चरण की वोटिंग खत्म होने के आधे घंटे बाद एग्जिट पोल के नतीजे दिखाए जा सकते हैं। अगर कोई चुनाव प्रक्रिया के दौरान एग्जिट पोल या चुनाव से जुड़ा सर्वे दिखाता है, तो उसे 2 साल की सजा, जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं।
इनकी शुरूआत कब हुई?
भारत में चुनावी सर्वे और एग्जिट पोल की शुरुआत 1980 के दशक से हुई जब प्रणय रॉय ने वोटरों को मूड जानने के लिए ओपिनियन पोल किया। शुरू में तो एग्जिट पोल मैगजीन में छपा करते थे। एग्जिट पोल के लिए 1996 के लोकसभा इलेक्शन काफी अहम रहे। ये वो समय था, जब एग्जिट पोल दूरदर्शन पर दिखाए गए थे। ऐसा पहली बार हुआ जब टीवी पर एग्जिट पोल के नतीजे दिखाए गए हो। ये सर्वे सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) ने किया था।