जैसे ही चुनाव आयोग ने 15 जून को राष्ट्रपति चुनाव (President Election) का नोटिफिकेशन जारी किया गया, उसके बाद से ही दिल्ली से लेकर बिहार की राजनीति तक में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई। सब लोग इस बात की जद्दोजहद में लग गए कि रामनाथ कोविद के बाद भारत का 15 वां राष्ट्रपति (President) कौन होगा ? आपको बता दें , NDA ने अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार ST समुदाय से आने वाली झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को बनाया है तो वहीं विपक्ष ने अपना उम्मीदवार भारत के पूर्व वित् मंत्री और TMC के उपाध्यक्ष रहें यशवंत सिन्हा को बनाया है। खैर इनदोनों में से कौन भारत का राष्ट्रपति बनेगा , ये तो 21 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव (President Election) के नतीजे आने के बाद पता चल जाएगा। वैसे यहां हम आपको एक बात बता दें, कि हमारे देश का राष्ट्रपति चुनाव हमारे देश के आम चुनावों से बिलकुल अलग होता है। तो चलिए जानते है , राष्ट्रपति चुनाव की पूरी प्रक्रिया।
जनता की भागीदारी नहीं होती
भारत के राष्ट्रपति चुनाव (President Election) में भारत की आम जनता की सीधे तौर पर भागीदारी नहीं होती है। लेकिन इनके द्वारा चुने हुए लोकसभा और विधानसभा के सदस्य इस चुनाव में भाग लेते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि राष्ट्रपति को परोक्ष रूप से जनता द्वारा चुना जाता है। भारत में राष्ट्रपति यानि भारत के प्रथम नागरिक को एलेक्टोरल कॉलेज चुनता है। इस बार इलेक्टोरल कॉलेज में 4809 सदस्य होंगे। इनमें राज्य सभा के 233, लोकसभा के 543 और विधानसभाओं के 4033 सदस्य होंगे। इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों का प्रतिनिधित्व आनुपातित आधार पर होता है। जिसमें सदस्यों का सिंगल वोट ट्रांसफर होता है, लेकिन सदस्यों की दूसरी पसंद की भी गिनती की जाती है। राष्ट्रपति चुनाव में राज्यों की लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं में चुनकर आए सदस्य वोट करते हैं। लेकिन अपनी संवैधानिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति जिन दो सदस्यों को सांसद के तौर पर नॉमिनेट करते हैं, उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में वोट देने का अधिकार नहीं होता। विधान परिषद के सदस्यों को भी राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने का अधिकार नहीं होता है।
राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग की प्रक्रिया
भारत में राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक खास तरीके की वोटिंग प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया को सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहा जाता है। इसमें वोटर का एक ही वोट गिना जाता है, लेकिन वह कई अन्य उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता के क्रम में चुनता है। मतलब वोटर राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपने बैलेट पेपर में अपनी प्राथमिकता के अनुसार अपनी पहली, दूसरी, तीसरी पसंद का नाम लिखते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में हर वोटर के वोटों की वैल्यू एक जैसी नहीं होती, बल्कि विधायकों और सांसदों के वोटों की वैल्यू अलग-अलग होती है। यही नहीं अलग-अलग राज्यों के विधायकों के वोटों का भी वेटेज अलग-अलग होती है। चलिए आपको बताते हैं, राष्ट्रपति चुनाव में सांसदों और विधायकों के वोटों की वैल्यू कितनी है?
इस बार हर संसद सदस्य के वोट की कीमत 700 तय की गई है। इसके अलावा राज्यों के विधायकों के वोट की वैल्यू उस राज्य की जनसंख्या के हिसाब से एक मानक फॉमूले से निकाली जाती है। यह राज्य की जनसंख्या को चुने हुए विधायक की संख्या से बांटा जाता है और फिर उसे 1000 से भाग दिया जाता है। इसके बाद जो अंक मिलता है, वह उस राज्य के विधायक वोट की वैल्यू होती है। इस राष्ट्रपति चुनाव में बार यूपी के विधायकों के वोट की वैल्यू सबसे ज्यादा 208 तय की गई है। जबकि सबसे कम सिक्किम राज्य के विधायक की वैल्यू 7 तय की गई है। बता दें , इस बार राष्ट्रपति चुनाव में संसद के सदस्यों के वोटों की वैल्यू 543,200 है जबकि विधायकों के वोटों का कुल वैल्यू 5,43,231 है।
राष्ट्रपति चुनाव कौन जीतता है
लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तरह राष्ट्रपति चुनाव में सबसे ज्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार विजयी नहीं होता। बल्कि राष्ट्रपति चुनाव में वही उम्मीदवार विजयी होता है, जिसे वोटरों यानि सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज के आधे से ज्यादा हिस्सा मिलता है। एक और बात बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले प्रत्याशी को कितने वोट मिलने चाहिए। राष्ट्रपति चुनाव में वोटों की गिनती में कोई प्रत्याशी स्पष्ट तौर पर जीत हासिल नहीं करता है तो पहली गिनती में सबसे कम वोट हासिल करने वाले उम्मीदवार को रेस से बाहर कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में उस उम्मीदवार को पहली पसंद चुनने वाले वोटरों की दूसरी पसंद की गिनती होती है और उन्हें दूसरी पसंद के उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर किया जाता है। अगर ऐसा करने पर कोई उम्मीदवार जीत के आंकड़े तक पहुंच जाता है तो ठीक है नहीं तो दूसरे दौर में सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है और एक बार फिर उसी प्रक्रिया को दोहराया जाता है। इस तरह वोटर का सिंगल वोट ही ट्रांसफर होता है।
राष्ट्रपति चुनाव कौन जीतता है
लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तरह राष्ट्रपति चुनाव में सबसे ज्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार विजयी नहीं होता। बल्कि राष्ट्रपति चुनाव में वही उम्मीदवार विजयी होता है, जिसे वोटरों यानि सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज के आधे से ज्यादा हिस्सा मिलता है। एक और बात बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले प्रत्याशी को कितने वोट मिलने चाहिए। राष्ट्रपति चुनाव में वोटों की गिनती में कोई प्रत्याशी स्पष्ट तौर पर जीत हासिल नहीं करता है तो पहली गिनती में सबसे कम वोट हासिल करने वाले उम्मीदवार को रेस से बाहर कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में उस उम्मीदवार को पहली पसंद चुनने वाले वोटरों की दूसरी पसंद की गिनती होती है और उन्हें दूसरी पसंद के उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर किया जाता है। अगर ऐसा करने पर कोई उम्मीदवार जीत के आंकड़े तक पहुंच जाता है तो ठीक है नहीं तो दूसरे दौर में सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है और एक बार फिर उसी प्रक्रिया को दोहराया जाता है। इस तरह वोटर का सिंगल वोट ही ट्रांसफर होता है।
25 जुलाई को ही क्यों लेते हैं राष्ट्रपति शपथ
13 मई 1967 को डॉक्टर जाकिर हुसैन देश के तीसरे राष्ट्रपति बने। डॉक्टर हुसैन अपना राष्ट्रपति कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 3 मई 1969 को उनका निधन हो गया। हुसैन के निधन के बाद उप-राष्ट्रपति वीवी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। इसके बाद होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। वीवी गिरि के इस्तीफे के बाद उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतउल्ला कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद 24 अगस्त 1969 को वीवी गिरि नए राष्ट्रपति बने। गिरि ने अपना कार्यकाल पूरा किया। गिरि के बाद 24 अगस्त 1974 को फखरुद्दीन अली अहमद नए राष्ट्रपति बने। अहमद कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने वाले दूसरे राष्ट्रपति बने। 11 फरवरी 1977 को उनका निधन हो गया। अहमद के निधन के बाद उप-राष्ट्रपति बीडी जत्ती कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। इसके बाद राष्ट्रपति चुनाव हुए और 25 जुलाई 1977 को नीलम संजीव रेड्डी देश के नए राष्ट्रपति बने। तब से लेकर अब तक हर राष्ट्रपति ने अपना कार्यकाल पूरा किया है। इसीलिए हर राष्ट्रपति का पांच साल का कार्यकाल 24 जुलाई को पूरा होता है और ठीक इसी वजह से 25 जुलाई को नए राष्ट्रपति शपथ लेते हैं। तब से अब तक नौ राष्ट्रपति 25 जुलाई को शपथ ले चुके हैं।
राष्ट्रपति को भी पद से हटाया जा सकता है
राष्ट्रपति को उसके पद से महाभियोग के ज़रिये हटाया जा सकता है। इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा में सदस्य को 14 दिन का नोटिस देना होता है। इस पर कम से कम एक चौथाई सदस्यों के दस्तख़त ज़रूरी होते हैं। फिर सदन उस पर विचार करता है। अगर दो-तिहाई सदस्य उसे मान लें तो फिर वो दूसरे सदन में जाएगा। दूसरा सदन उसकी जांच करेगा और उसके बाद दो-तिहाई समर्थन से वो भी पास कर देता है तो फिर राष्ट्रपति को पद से हटा हुआ माना जाएगा।
अबतक बनें भारत के राष्ट्रपति
भारत के सबसे पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे, जिनका कार्यकाल (1884-1963) तक था। राजेंद्र प्रसाद भारत के ऐतिहास के पहले राष्ट्रपति थे, जो लगातार भारत के दो बार राष्ट्रपति (President) बने। उनके बाद भारत की राष्ट्रपति की कुर्सी पर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, वराहगिरी वेंकट गिरी, डॉ. फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, निलम संजीव रेड्डी, ज्ञानी जैल सिंह, आर वेंकटरमन, डॉ. शंकर दयाल शर्मा, के आर नारायनन, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, प्रतिभादेवी सिंह पाटिल और प्रणब मुखर्जी बैठे। बता दें, प्रतिभादेवी सिंह पाटिल भारत की पहली महिला राष्ट्रपति है। इनका कार्यकाल 25 जुलाई, 2007 से 25 जुलाई 2012 तक था।