सुप्रीम कोर्ट में संपत्ति बंटवारे और वसीयत से जुड़े एक मामले की सुनवाई हो रही थी। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट मुस्लिम महिलाओं के विरासत में समानता का दावा करने के अधिकार पर बहस कर रही है। इस दौरान कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या एक मुस्लिम महिला संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 15 (धर्म, जाति, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव न करना) के तहत विरासत में समानता के अधिकार का दावा कर सकती है? जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने संपत्ति और विरासत में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी पर ये अहम सवाल उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के लिए वरिष्ठ वकील वी. गिरी को न्याय मित्र नियुक्त किया है। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 25 जुलाई को होगी।
क्या है मामला?
ये पूरा मामला संपत्ति विवाद से जुड़ा था। हाजी नाम के शख्स ने अपनी वसीयत में संपत्ति को तीन बेटों के बीच बांट दिया था, जबकि चौथे बेटे को बेदखल कर दिया था। हाजी अब इस दुनिया में नहीं हैं। निचली अपीलीय अदालत ने फैसला सुनाया कि हाजी अपनी संपत्ति का केवल एक-तिहाई हिस्सा ही वसीयत कर सकता है। संपत्ति का शेष दो-तिहाई हिस्सा सभी कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच समान रूप से वितरित किया जाना चाहिए था। मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा, जिसने वसीयत को बरकरार रखा। इस तरह से ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछे 3 अहम सवाल
वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 3 सवाल पूछे हैं:
- क्या किसी मुस्लिम महिला को संविधान के तहत उत्तराधिकार में समानता के अधिकार के तहत दावा करने का अधिकार है?
- क्या किसी मुस्लिम शख्स को यह अधिकार है कि उसकी वसीयत के मुताबिक पूरी संपत्ति उसकी इच्छा के मुताबिक बांटे जा सकते हैं?
- क्या किसी मुस्लिम व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा अपने कानूनी उत्तराधिकारियों की मंजूरी के बिना अन्य उत्तराधिकारियों को कानूनी तौर पर दे सकता है?
मुस्लिमों में संपत्ति के बंटवारे का यह है नियम
मुसलमानों के बीच संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) एप्लीकेशन एक्ट 1937 के तहत किया जाता है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद संपत्ति सीधे उसके उत्तराधिकारियों को नहीं मिल सकती है। मृतक के अंतिम संस्कार के बाद यदि कोई कर्ज हो तो उसके निपटारे के बाद ही संपत्ति बांटने का अधिकार दिया जाता है। यदि मृत्यु से पहले वसीयत नहीं लिखी गई है, तो संपत्ति का वितरण कुरान और हदीस में वर्णित नियमों के अनुसार किया जाता है।
इसे ऐसे समझें कि एक मुस्लिम व्यक्ति के पास एक लाख रुपये की संपत्ति है। इसलिए वह वसीयत के जरिए केवल 25 हजार रुपये की संपत्ति ही बांट सकते हैं। शेष 75 हजार रुपये की संपत्ति उनके कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच समान रूप से विभाजित की जाएगी। अब वह चाहे तो अपनी 25 हजार रु. की संपत्ति भी अपने कानूनी उत्तराधिकार को दे सकता है।
बेटे और बेटी के बीच संपत्ति के समान वितरण का कोई प्रावधान नहीं है। यदि एक बेटा और एक बेटी है तो बेटी को एक तिहाई और बेटे को दो तिहाई संपत्ति मिलती है। पत्नी को एक-चौथाई हिस्सा मिलता है और बच्चों के मामले में, यह एक-आठवां हिस्सा होता है।