लखीमपुर उत्तर प्रदेश में एक ऐसी जगह है जहां आपको सिख पगड़ी पहने हुए दिख जाएंगे। इतना ही नहीं सिखों की बढ़ती आबादी को देखते हुए लखीमपुर को अब मिनी पंजाब भी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के इस मिनी पंजाब का इतिहास काफी पुराना है। कहा जाता है कि आजादी से पहले यहां का इलाका बंजर था और खेती के लिए काफी जमीन थी, जिसके कारण कई सिख यहां आकर बस गए और इसके बाद यूपी का लखीमपुर धीरे-धीरे यूपी का मिनी पंजाब बन गया। हालांकि सिखों के यहां बसने के पीछे कई और कारण बताए जाते हैं, जिनके बारे में आज हम आपको इस लेख में बताएंगे।
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विभाजन के बाद पंजाब से आकर बसे किसान
विभाजन के बाद, सिखों की एक बड़ी आबादी उत्तर प्रदेश में आकर बस गई और तराई क्षेत्र के विभिन्न जिलों में बस गई। तराई क्षेत्र, जिसे ‘मिनी पंजाब’ के नाम से जाना जाता है, नेपाल सीमा पर हिमालय के दक्षिण में एक दलदली क्षेत्र है जो पश्चिम में सहारनपुर से पूर्व में कुशीनगर तक फैला हुआ है और इसमें नलियाल, पीलीभीत, रामपुर, बिजनौर और लखीमपुर खीरी जैसे जिले शामिल हैं। इसके अलावा स्थानीय लोगों का कहना है कि लखीमपुर-खीरी और तराई पट्टी के अन्य जिले कई पीढ़ियों से सिख किसानों का आशियाना हैं।
इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सिखों का यह प्रवासी व्यवहार यहां की भूमि की उर्वरता से प्रेरित था, जो आजादी से पहले बंजर थी।
वहीं सिखों का लखीमपुर-खीरी जिले से आध्यात्मिक जुड़ाव भी है। लखीमपुर-खीरी के कौरियावाला घाट गुरुद्वारा के ग्रंथी बलजीत सिंह बताते हैं कि गुरु नानक 1554 में यहां आए थे और कुष्ठ रोग से पीड़ित कुछ लोगों का इलाज किया था। सिखों की इस स्थान से विशेष आस्था है।
तराई पट्टी में सस्ती थी जमीन
बहराइच के एक सरकारी स्कूल में खेल शिक्षक सरदार सरजीत सिंह ने बताया कि अविभाजित पंजाब के किसानों को लखीमपुर खीरी और तराई बेल्ट के जिलों में ज़मीन उनकी मूल ज़मीन से कहीं ज़्यादा सस्ती लगी, इसलिए उन्होंने पंजाब की अपनी ज़मीन बेचकर यहाँ बड़े प्लॉट खरीदे। पूर्व केंद्रीय मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया ने बताया कि 1940 के दशक में अविभाजित पंजाब से बड़ी संख्या में सिख लखीमपुर खीरी आए। इससे पहले अवध के नवाबों ने लोगों को इस इलाके में बसने के लिए प्रोत्साहित किया था।
लखीमपुर-खीरी में सिखों की आबादी
कहा जाता है की सिख किसानों की पहली बस्ती वर्ष 1952 में बनी थी, जब पंजाब से आए शरणार्थियों को प्रति परिवार 12 एकड़ ज़मीन दी गई थी। हालांकि, उस समय ज़मीन सिर्फ़ उन्हीं लोगों को दी जाती थी जिनके पास अपने मूल स्थान पर पहले से ही कुछ एकड़ ज़मीन थी। 1963 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सिख आबादी में 50 के दशक में 43.58 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी, जो 1951 में 1,97,612 से बढ़कर 1961 में 2,83,737 हो गयी।
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