जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद कल यानि गुरुवार को एक बड़ी बैठक हुई। बैठक पीएम मोदी के नेतृत्व में हुई, जिसमें जम्मू-कश्मीर के भी 14 नेताओं ने हिस्सा लिया। इसमें महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला, फारुक अब्दुल्ला समेत कई बड़े कश्मीरी नेताओं शामिल हुए। जम्मू-कश्मीर के भविष्य के लिहाज से ये बैठक काफी अहम मानी गई। 3 घंटों तक चली इस बैठक में पीएम मोदी ने सभी नेताओं की बात को गौर से सुना। साथ में प्रधानमंत्री ने ये भी कहा कि जम्मू-कश्मीर से ‘दिल्ली और दिल की दूरी’ कम करनी है।
बैठक में जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने को लेकर चर्चा हुई। ये भी साफ हो गया है कि परिसीमन के बाद ही जम्मू-कश्मीर में परिसीमन होगा और फिर ही चुनाव हो पाएंगे। जम्मू-कश्मीर में चुनाव से पहले परिसीमन को बहुत जरूरी बताया जा रहा है और मोदी सरकार के द्वारा इस पर काम भी शुरू हो चुका है। तो ऐसे में आपको बताते हैं कि आखिर ये परिसीमन होता क्या है और इससे क्या कुछ बदलाव जम्मू-कश्मीर में आएंगे…
क्या होता है परिसीमन?
परिसीमन का अर्थ होता है सीमा निर्धारण यानि किसी राज्य की विधानसभा या लोकसभा क्षेत्रों की सीमाओं को तय करना। भारतीय संविधान के आर्टिकल 82 में इसके बारे में बताया गया है। संविधान के मुताबिक सरकार हर 10 साल में जनगणना के बाद परिसीमन आयोग बना सकती है। आयोग आबादी के हिसाब से लोकसभा-विधानसभा की सीटों में बदलाव कर सकता है। आबादी बढ़े, तो सीटें बढ़ाई जा सकते है। इसके अलावा परिसीमन आयोग का एक जरूरी काम ये भी होता है कि वो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी को ध्यान में रखकर ही उनके लिए सीटें रिजर्व करता है। परिसीमन आयोग के फैसले को कोई भी कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकता।
कब-कब जम्मू-कश्मीर में हुआ परिसीमन?
वैसे तो देश के साथ ही जम्मू-कश्मीर की लोकसभा सीटों में भी परिसीमन होता है। हालांकि विधानसभा सीटों के लिए परिसीमन आखिरी बार साल 1995 में हुआ था। तब यहां पर राज्यपाल का शासन था, लेकिन ये परिसीमन 1981 के जनगणना के आंकड़ों आधार पर किया गया था। 1991 में जम्मू-कश्मीर में जनगणना नहीं हुई थीं। वहीं 2001 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं हुआ।
इसके अलावा जम्मू-कश्मीर की एक प्रस्ताव तक पास हो गया था, जिसके मुताबिक यहां 2026 तक परिसीमन पर रोक लगा दी गई थीं। हालांकि अब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का पुनर्गठन के बाद यहां नए नियम लागू हो गए हैं। इसके तहत केंद्र सरकार कभी भी परिसीमन करा सकती है। यही वजह है कि अब 26 सालों के बाद जम्मू-कश्मीर में परिसीमन होगा।
परिसीमन आयोग का हिस्सा कौन-कौन?
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के लिए केंद्र सरकार ने 6 मार्च 2020 को आयोग का गठन किया। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज रंजन प्रकाश देसाई इस आयोग की अध्यक्षता कर रहे हैं। इसके अलावा आयोग में चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव आयुक्त केके शर्मा भी शामिलल हैं। 5 एसोसिएट मेंबर भी आयोग का हिस्सा हैं। इनमें फारूक अब्दुल्ला, मोहम्मद अकबर लोन, हसनैन मसूदी, केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और बीजेपी के नेता जुगल किशोर शर्मा शामिल हैं।
जम्मू-कश्मीर में क्या बदलाव होंगे?
परिसीमन के जरिए जम्मू-कश्मीर में 7 सीटें बढ़ने की संभावना हैं। जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन से पहले यहां पर विधानसभा की कुल 111 सीटें थीं। इसमें से 46 सीटें कश्मीर की, 37 जम्मू की और 4 सीटें लद्दाख की शामिल थीं। इसके अलावा 24 सीटें पीओके के लिए आरक्षित थीं। अब क्योंकि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग कर दिया गया, तो लद्दाख की 4 सीटें भी खत्म हो गई।
ऐसे में अब बची हैं जम्मू-कश्मीर की 107 सीटें। लेकिन इन सीटों के बंटवारे पर बीजेपी समेत कुछ राजनीतिक दलों को आपत्ति हैं। उनका कहना है कि जम्मू की आबादी कश्मीर से ज्यादा है, फिर भी वहां सीटें कम हैं। यही वजह है कि आशंका जताई जा रही है कि परिसीमन के बाद 7 सीटें जम्मू में बढ़ाई जा सकती है। इस तरह जम्मू की सीटें 37 से बढ़कर 44 होने की आशंका है, जबकि कश्मीर की सीटें 46 ही रहेगीं।