Jammu and Kashmir 1931 incident: जम्मू-कश्मीर में इन दिनों 94 साल पुरानी 1931 की घटना को लेकर राजनीतिक बवाल मचा हुआ है। इस ऐतिहासिक घटना को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बीच तीखी बहस छिड़ गई, जिसके चलते भाजपा के 28 विधायकों ने विधानसभा से वाकआउट कर दिया।
क्या है 1931 की घटना? (Jammu and Kashmir 1931 incident)
1931 में जम्मू-कश्मीर डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह के अधीन एक रियासत थी। उस समय, मुस्लिम बहुसंख्यक समुदाय शासन के कठोर कानूनों और सामाजिक अन्याय से त्रस्त था।
इस दौरान एक युवक अब्दुल कादिर ने डोगरा शासन के खिलाफ एक भड़काऊ भाषण दिया, जिसके बाद उसे देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
- 13 जुलाई 1931 को, जब श्रीनगर के सेंट्रल जेल में अब्दुल कादिर की सुनवाई हो रही थी, तब हजारों कश्मीरी उनके समर्थन में जुट गए।
- भीड़ अब्दुल कादिर की रिहाई की मांग कर रही थी, लेकिन जैसे-जैसे नारेबाजी बढ़ी, डोगरा प्रशासन ने सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दे दिया।
- इस गोलीबारी में 22 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई।
- यह घटना कश्मीर के इतिहास में बड़े विद्रोह की चिंगारी साबित हुई और इसके बाद शेख अब्दुल्ला सहित कई नेता उभरकर सामने आए।
इस घटना की याद में हर साल 13 जुलाई को “कश्मीर शहीद दिवस” मनाया जाता था, लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद इस अवकाश को समाप्त कर दिया गया।
विधानसभा में उठा मुद्दा, भाजपा और पीडीपी आमने-सामने
मार्च 2025 में विधानसभा सत्र के दौरान, पीडीपी नेता वहीदुर्रहमान पारा ने 13 जुलाई को दोबारा सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की मांग उठाई।
इस पर भाजपा नेता और विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने आपत्ति जताते हुए कहा कि 1931 के मारे गए लोग शहीद नहीं, बल्कि गद्दार थे। उन्होंने कहा कि यह घटना शहादत नहीं, बल्कि एक विद्रोह था, जिसे महिमामंडित किया जा रहा है।
शर्मा के इस बयान से सदन में हंगामा मच गया।
- पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं ने इस बयान का कड़ा विरोध किया।
- विपक्षी दलों ने इसे कश्मीर के इतिहास और पहचान का अपमान बताया।
- भाजपा विधायक इस मुद्दे पर भारी विरोध के बीच विधानसभा से वॉकआउट कर गए।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर भी गर्म बहस छिड़ गई। पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं ने कहा कि भाजपा कश्मीर के इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश कर रही है। वहीद पारा ने कहा, “13 जुलाई 1931 को कश्मीरियों ने अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी। भाजपा इसे नकारकर इतिहास मिटाने की कोशिश कर रही है।” दूसरी ओर, भाजपा नेता सुनील शर्मा ने अपने बयान का बचाव करते हुए कहा कि यह कोई स्वतंत्रता संग्राम नहीं था, बल्कि विद्रोह था।
कई लोगों ने शर्मा के बयान को असंवेदनशील बताया, जबकि कुछ ने कहा कि इतिहास की अलग-अलग व्याख्याएं हो सकती हैं।
क्या है 13 जुलाई 1931 के शहीद दिवस का भविष्य?
2019 में जब अनुच्छेद 370 निरस्त किया गया, तब केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने 13 जुलाई के सार्वजनिक अवकाश को रद्द कर दिया था। इसके साथ ही शेख अब्दुल्ला की जयंती (5 दिसंबर) पर भी अवकाश रद्द कर दिया गया।
अब एक बार फिर इस अवकाश को बहाल करने की मांग उठी है, लेकिन भाजपा इसका कड़ा विरोध कर रही है।
इसका असर आने वाले विधानसभा चुनावों और कश्मीर की राजनीति पर भी पड़ सकता है।