बीजेपी सरकार आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों की दुश्मन बन गई है। यह सरकार गरीबों की नहीं, बल्कि उद्योगपतियों की सरकार है। इसे प्रदेश की गरीब जनता पसंद नहीं है। यह आरोप अक्सर विपक्ष द्वारा बीजेपी पर लगाया जाता रहा है। हालांकि, अब दलितों पर अत्याचार के जो आंकड़े सामने आए हैं, इन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे भाजपा राज में दलित समाज सुरक्षित नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार जिन आठ राज्यों में दर्ज किए गए हैं, वे हैं: उत्तर प्रदेश (15,368), राजस्थान (8,952), मध्य प्रदेश (7,733), बिहार (6,509), ओडिशा (2,902), महाराष्ट्र (2,743), आंध्र प्रदेश (2,315) और कर्नाटक (1,977)। इससे पता चलता है कि दलितों पर अत्याचार जारी है, चाहे कोई भी राजनीतिक पार्टी सत्ता में हो। लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाला उत्तर प्रदेश लंबे समय से दलितों पर अत्याचार के मामले में नंबर वन रहा है।
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राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में भाजपा के नेतृत्व में, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल-जनता दल यूनाइटेड गठबंधन के नेतृत्व में, महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन में, और अब ओडिशा और आंध्र प्रदेश में भी भाजपा सत्ता में आ गई है। सामाजिक न्याय के अपने बड़े-बड़े दावों के बावजूद वह इन राज्यों में दलितों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को बीजेपी रोक नहीं पाई।
चुनावों पर भी दिखा असर
हमने दलितों पर अत्याचार संख्याओं की बात की लेकिन अगर आप इस बार के लोकसभा चुनाव पर नज़र डालें तो पाएंगे कि इस लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत न मिलने के पीछे एक कारण दलित सीटों पर उसका खराब प्रदर्शन है। इस चुनाव में दलितों के लिए आरक्षित 84 सीटों में से बीजेपी को सिर्फ़ 30 सीटें ही मिली हैं। जबकि पिछले चुनाव में बीजेपी को 45 सीटें मिली थीं।
देशभर में 10 हजार से ज्यादा मामले दर्ज
साल 2022 में देशभर में एसटी के खिलाफ अपराध के कम से कम 10,064 मामले दर्ज किए गए, जो कि सालाना 14.3% की बढ़ोतरी है। इसके साथ ही राज्य में इस श्रेणी में अपराध अनुपात साल 2021 में 8.4 प्रतिशत से बढ़कर साल 2022 में 9.6 हो गया है। एससी अपराध की बात करें तो सामान्य चोट के 1607 और गंभीर चोट के 52 मामले हैं, जबकि हत्या के 61 मामले सामने आए हैं। यह देश का दुर्भाग्य है कि दलितों के खिलाफ अपराध के मामलों में यह उच्च स्थान पर है।
संवैधानिक संरक्षण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के बावजूद दलितों के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है। दलितों का राजनीतिक नेतृत्व अक्सर अपने समुदाय के खिलाफ अत्याचारों को रोकने में काफी हद तक अप्रभावी होता है। तो सवाल यह है कि संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद दलितों के खिलाफ हिंसा क्यों बढ़ रही है? इसका समाधान क्या है?
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