अगर हौंसले और इरादे मजबूत हो, तो कोई भी बड़ी से बड़ी मुश्किल उसके आगे टिक नहीं सकती। जिंदगी में चुनौतियां तो कई आती हैं, लेकिन केवल वहीं जीतने में कामयाब होता है, जो इनका ठटकर सामना करना है। ऐसा ही कुछ एक आदिवासी छात्रा एम सांगवी ने भी किया। अपने दूसरे प्रयास में सांगवी ने NEET का एग्जाम क्लियर कर मिसाल पेश कर दी। नीट परीक्षा में उन्होंने 202 अंक हासिल किए हैं।
एक तो गरीबी की मार। ऊपर से पिछले साल ही पिता का साया सिर से उठ जाना। मां की आंखों की रोशनी कम होना। इन सब मुश्किलों का सामना करने के बावजूद भी सांगवी अपने इरादों से जरा भी नहीं डगमगाई और उन्होंने वो कर दिखाया, जो उन्होंने करने की ठान रखी थीं।
12वीं पास करने वाली थीं पहली लड़की
जिस समुदाय से सांगवी हैं, वहां इस परीक्षा में पास होना किसी सपने से कम नहीं। दरअसल, सांगवी मदुकराई के मालासर आदिवासी समुदाय से संबंध रखती हैं। सांगवी कोयम्बत्तूर के पास नानजप्पनुर गांव की रहने वाली हैं। इनके गांव में सिर्फ 40 परिवार ही रहते हैं। सांगवी ने लोगों की प्रेरणा बनने का काम तो पहले ही शुरू कर दिया था। वो अपने गांव की ऐसी पहली लड़की थीं, जिन्होंने 12वीं पास की थी। अब NEET परीक्षा में भी सफलता के झंडे गाड़ने के बाद उन्होंने हर किसी को प्रभावित कर दिया।
हाल ही में अपने पिता की हुई थी मौत
लेकिन सांगवी ने ये जो कुछ भी किया, वो केवल उनकी कठिन मेहनत और संघर्षों का ही नतीजा रहा। क्योंकि उनके लिए ये सबकुछ कर पाना आसान नहीं था। ये सब सांगवी ने तब किया जब उन्होंने हाल ही में अपने पिता को खोया था। पिछले साल उनके पिता खेत में काम करते हुए बीमार पड़ गए और उनकी मौत हो गई। सिर्फ इतना ही नहीं सांगवी की मां को भी सर्जरी के बाद कम दिखाई देता है और वो काम पर नहीं जा सकती। अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए सांगवी डॉक्टर बनना चाहती हैं।
कोरोना महामारी के दौरान कुछ अधिवक्ताओं ने आदिवासी इलाकों में चावल समेत अन्य जरूरी चीजें बांटी थीं। उस दौरान सांगवी के संघर्ष की कहानी काफी सुर्खियों में आई थीं। दरअसल, तब पता चला था कि सांगवी 2 साल पहले भी नीट की परीक्षा में बैठी थीं, लेकिन तब वो इसे पास करने में कामयाब नहीं हुई और फिर अगले साल उन्होंने एग्जाम नहीं दिया था। साथ ही उन्हें सामुदायिक प्रमाण पत्र भी नहीं मिला। उस दौरान अधिवक्ताओं ने सांगवी की मदद की थी।
NEET में हासिल की बड़ी सफलता
आज भी सांगवी अपनी मां के साथ एक ऐसी झोपड़ी में रहा करती थीं, जहां पर बारिश के दौरान पानी इकट्ठा हो जाता है। जिसके चलते वो पूरी रात सो तक नहीं पाते। इन तमाम चुनौतियों को झेलने के बावजूद सांगवी ने हार नहीं मानी और उन्होंने सफलता भी हासिल की। हालांकि सांगवी की परेशानी अभी भी खत्म नहीं हुई। वो MBBS करने के लिए राज्य सरकार से वित्तीय मदद मांग रही हैं।
सांगवी की कहानी उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा है, जो समस्याएं आने पर हार मान जाते हैं। ये कहानी बताती है कि चाहे मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, अगर आपके मेहनत और इरादे मजबूत है, तो उसके सामने सारी समस्याएं छोटी हो ही जाती है।