एक सालों से चला आ रहा किसानों का आंदोलन आखिरकार सफल हुआ। मोदी सरकार को आखिरकार किसानों की मांगों के आगे झुककर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेना ही पड़ा। केंद्र सरकार के लिए गए इस फैसले का असर देश की राजनीति पर पड़ेगा। सरकार ने ये फैसला उस वक्त लिया, जब यूपी, पंजाब जैसे राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं।
कृषि कानूनों और किसान आंदोलन के चलते सबसे ज्यादा सियासी बवंडर पंजाब में ही मचा हुआ था। इसके चलते ही पिछले साल बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल की राहें जुदा हो गई। दोनों पार्टियों के बीच का गठबंधन टूट गया। अब मोदी सरकार के कानूनी वापसी से पंजाब की राजनीति और खासतौर पर यहां होने वाले चुनावों पर क्या असर पड़ेगा, आज इसी पर बात करते हैं…
कानून वापसी के बाद क्या होगा?
विपक्ष के लिए किसानों का आंदोलन एक बहुत बड़ा मुद्दा था। वो इसको लेकर लगातार सरकार पर हमलावर था। कानूनी वापसी के बाद ऐसा कहा जा रहा है कि विपक्ष के पास से ये मुद्दा भी छिन गया, जिस पर वो बीजेपी और मोदी सरकार को घेर रही थीं। पंजाब में बीजेपी को छोड़कर लगभग राजनीतिक पार्टियां चाहे वो सत्ताधारी कांग्रेस हो, शिरोमणि अकाली दल या फिर राज्य में अपने जमीन तलाश आम आदमी पार्टी। ये सभी पार्टियां किसानों के साथ खड़ी थीं।
पंजाब की राजनीति चुनाव के हिसाब से देखें एक तो कांग्रेस का साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह छोड़ चुके हैं, जो पार्टी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। साथ ही साथ पार्टी पंजाब में अभी भी सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और सिद्धू के झगड़े में बीच-बीच में उलझ रही। इसके अलावा अकाली दल को इस बार कड़ी टक्कर देने के लिए आम आदमी पार्टी भी है, लेकिन AAP के पास भी कोई बड़ा चेहरा नहीं होने के चलते पार्टी की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
कैप्टन जाएंगें बीजेपी के साथ?
वहीं पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चुनावों से पहले कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली। उस दौरान ही कैप्टन ने साफ तौर पर कहा था कि अगर बीजेपी किसानों के मुद्दे को सुलझा लेती है, तो वो उनके साथ गठबंधन पर विचार करेंगे। अब पीएम मोदी के कानून वापसी के फैसले के बाच ऐसी संभावनाएं जोरों पर है कि पंजाब में होने वाले चुनावों के लिए बीजेपी और कैप्टन अमरिंदर सिंह साथ आ सकते हैं। इसके अलावा बात अगर अकाली दल और बीजेपी की करें, तो उनके चुनाव में साथ आने की संभावनाएं कम ही लगती है।
पंजाब की 77 सीटों का फैसला करते हैं किसान
पंजाब में विधानसभा की कुल 117 सीटें हैं, जिसमें से 10 शहरी इलाकों की सीटें है, तो वहीं 51 अर्ध शहरी और 26 सीटें ग्रामीण इलाकों की है। ये जो ग्रामीण इलाकों और अर्ध शहरी वाली सीटें है, वहां पर किसानों का वोट एक अहम फैक्टर माना जाता है। जिसका मतलब ये है कि 77 सीटों पर कौन सी पार्टी जीतेगी या हारेगी इसका फैसला किसानों के हाथ में ही होता है। ऐसे में कानूनी वापसी का ये फैसला मोदी सरकार ने लिया, उसका क्या असर पंजाब की राजनीति में पड़ेगा, ये तो आने वाले वक्त में पता चल पाएगा।