आए-दिन नक्सलियों के हिंसात्मक गतिविधियों और जवानों के बीच मुठभेड़ की घटनाओं के बारे में सुनने को मिल ही जाता है। बीते 10 सालों में सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही 3722 नक्सली हमले हुए, जिसमें 489 जवानों जवान शहीद हुए और कुल 656 नक्सली भी मारे गए। यही नहीं इस दौरान 736 आम लोगों की भी जान गई।
वहीं बीते दिनों छत्तीसगढ़ में एक ऐसा नक्सली हमला हुआ, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में देश ने अपने 22 जवानों को खोया। बीजापुर में घात लगाए 200 से 300 नक्सलियों नें ऑपरेशन पर आए जवानों पर हमला किया था, जिसमें जवान शहीद हो गए। इस मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया और नक्सलियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग एक बार फिर से उठने लगी है। आज हम आपको बताते कि आखिर हमारे देश में नक्सलवाद की कैसे और कहां से हुई?…
– नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव नक्सलवाड़ी से हुई। जहां साल 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारु मजूमदार और उनके साथी कानू सान्याल ने सत्ता के खिलाफ़ सशस्त्र आंदोलन छेड़ा था। चारु मजूमदार और कानू सान्याल चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग से काफी प्रभावित थे। उनका मानना था कि भारतीय किसानों और मजदूरों की जो दुर्दशा थी, वो केवल सरकार के गलत नीतियों की वजह से। किसानों और मजदूरों के साथ हो असमानता, न्यायहीनता को केवल सशस्त्र आंदोलन से ही बचाया सकता है।
– साल 1967 में कुछ नक्सलवादियों ने औपचारिक तौर पर कम्युनिस्ट पार्टी से खुद अलग कर लिया और मिलकर अखिल भारतीय समन्वय समिति का गठन किया। जिसके बाद इन विद्रोहियों ने एकजुट होकर सरकार के खिलाफ़ सशस्त्र आंदोलन छेड़ा।
– साल 1968 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ मार्क्सिज्म एंड लेनिनिज्म (CPML) का गठन हुआ था, जिसके मुखिया दीपेन्द्र भट्टाचार्य थे। वो मार्कस और लेनिन के प्रशसंक थे और उन्ही के सिद्धांतो पर काम करते थे।
– साल 1969 में चारु मजूमदार और कानू सान्याल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर पूरे भारत में सरकार के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत कर दी थी। भूमि अधिग्रहण को लेकर पहली आवाज़ नक्सलवाड़ी से ही उठी थी। जिसका तत्कालीन प्रभाव से कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में सत्ता से बाहर होना पड़ा था। जिसके बाद कम्युनिस्ट 1977 में पहली बार बंगाल के सत्ता में आई और ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने।
– सामाजिक उत्थान के लिए शुरु हुए आंदोलन धीरे-धीरे अपना रुख राजनीति के ओर कर लिया। आंदोलन जल्द ही अपने मुद्दों से भटक गया, जब आंदोलन बिहार पहुंचा तब ये केवल जातीय वर्ग की लड़ाई बनकर रह गई थीं। जहां उच्च और मध्यम वर्ग की लड़ाई ने हिसंक रूप अपना लिया।
– साल 1972 में आंदोलन का हिंसक होने के कारण चारु मजूमदार को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसके बाद उनकी मौत दसवें दिन जेल में हो गई। उनके साथी कानू सन्याल ने राजनीति का शिकार होकर 23 मार्च 2010 को आत्महत्या कर ली।
– नक्सलवाद मुख्य रुप से आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड और बिहार में सक्रिय है। आएदिन इन राज्यों से नक्सलियों की हिसंक घटना की खबरें सामने आती ही रहती है।