Girls Do Not Want To Marry: भारत में शादी को हमेशा से एक अहम सामाजिक कड़ी माना गया है। यहां की संस्कृति में शादी का बहुत बड़ा महत्व है, और अगर किसी लड़की की शादी नहीं होती है, तो उसे अक्सर ताने सुनने पड़ते हैं। लेकिन आजकल के दौर में महिलाओं की सोच में बदलाव आया है। अब बहुत सी महिलाएं शादी के बजाय अपने करियर और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता देने लगी हैं। ‘बैचलर्स’, ‘सोलोगैमी’ और ‘सिंगलहुड’ जैसे शब्द अब ट्रेंड बन चुके हैं और इस पर युवाओं की सोच में तेजी से बदलाव देखा जा रहा है। खासकर लड़कियों में यह सोच बढ़ती जा रही है कि शादी केवल एक सामाजिक दबाव का नाम नहीं है, बल्कि यह एक व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए।
महिलाओं की सोच में बदलाव- Girls Do Not Want To Marry
हाल ही में एक सर्वे के दौरान यह बात सामने आई कि देश की 81% महिलाएं बिना शादी के खुश हैं। यह आंकड़ा कई मायनों में चौंकाने वाला था, क्योंकि पारंपरिक भारत में शादी को एक प्रमुख जीवन लक्ष्य माना जाता है। लेकिन अब महिलाएं इस बंधन को नकारने में समर्थ महसूस कर रही हैं और वे अपने जीवन के इस हिस्से को चुनने में स्वतंत्रता चाहती हैं। इसके अलावा, 39% महिलाओं ने यह माना कि वे शादी के सीजन में अपने माता-पिता से शादी के बारे में दबाव महसूस करती हैं। यह दबाव हर साल उस समय बढ़ता है जब शादियों का सीजन शुरू होता है, और अक्सर माता-पिता बच्चों को शादी करने के लिए मजबूर कर देते हैं, चाहे वे इस कदम के लिए तैयार हों या नहीं।
शादी को लेकर बढ़ती नकारात्मक सोच
माना जाता था कि शादी एक पवित्र बंधन है, जिसमें दो लोग साथ मिलकर अपना जीवन बिताने की कसम खाते थे। लेकिन अब यह धारणा धीरे-धीरे बदल रही है। सर्वे के अनुसार, करीब 33% लोग मानते हैं कि शादी के बाद उन्हें लंबे संबंधों में बंधे रहने के लिए दबाव महसूस होता है। आजकल के लोग यह समझने लगे हैं कि शादी का मतलब सिर्फ एक-दूसरे के साथ रहना नहीं है, बल्कि यह कई बार निजी स्वतंत्रता की कमी और करियर की योजनाओं में रुकावट का कारण बन सकता है। विशेष रूप से महिलाएं शादी से इसलिए कतराती हैं, क्योंकि कई बार उनके परिवार वाले उनसे नौकरी छोड़ने की उम्मीद रखते हैं, जिससे उनका व्यक्तिगत विकास रुक सकता है।
महिलाओं की पसंद और स्वतंत्रता
महिलाओं के लिए यह जरूरी है कि वे अपनी पहचान और करियर पर ध्यान केंद्रित कर सकें, और इसके लिए शादी को एक बाधा के रूप में देखा जाता है। वे चाहती हैं कि वे अपने पैरों पर खड़ी रहें और किसी भी प्रकार की वित्तीय या भावनात्मक निर्भरता से बचें। उनका मानना है कि यदि सही जीवनसाथी नहीं मिलता, तो शादी करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
क्या शादी अब महज एक विकल्प बनकर रह गई है?
एक अन्य सर्वे के मुताबिक, भारत की 81% महिलाएं बिना शादी के अपने जीवन को संतुष्ट महसूस करती हैं। वहीं, 62% महिलाएं मानती हैं कि वे अपनी प्राथमिकताओं और जरूरतों के साथ कोई समझौता नहीं कर सकतीं। इसके अलावा, 83% लड़कियां यह मानती हैं कि जब तक उन्हें एक आदर्श जीवनसाथी नहीं मिलता, तब तक वे शादी नहीं करेंगी। यह सर्वे इस बात की ओर इशारा करता है कि शादी अब महिलाओं के लिए समाज के निर्धारित रास्ते का पालन करने का दबाव नहीं बन गया है।