घर-घर में पाया जाने वाला घी, सदियों से इंडियन डिशेज में इस्तेमाल किया जा रहा है. घी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है. किसी भी खाने में थोड़ा सा देसी घी का मिश्रण उसके स्वाद को बढ़ाने का काम करता है. लेकिन अब आंध्र प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध मंदिर तिरुपति बालाजी में मिलने वाले लड्डू प्रसाद में घी की जगह जानवरों की चर्बी मिलाने की खबर सामने आई है, जिसके बाद सियासी हड़कंप मच गया है. इससे करोड़ों हिंदुओं की आस्था को चोट पहुंची है और अब इसे लेकर जांच की जा रही है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इसे लेकर रिपोर्ट मांगी है तो वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने पिछली जगन मोहन रेड्डी सरकार पर प्रसाद बनाने में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था.
कैसे हो जाती है घी में मिलावट
प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर में बनाये जाने वाला लड्डू प्रसादम में जानवरों की चर्बी पाई गयी है. जिसके बाद से सभी के मन में ये सवाल उठने लगे हैं कि बाजार में मिल रहा घी कितना शुद्ध है? जी हाँ, बालाजी का प्रसादम बनाने में जानवरों की चर्बी वाला घी इस्तेमाल करने की लैबोरेटरी से पुष्टि हुई है. घी सप्लाई करने वाली एक कंपनी ने ये भी कह दिया है कि उस समय वाईएसआर सरकार उनसे सस्ती कीमत वाला घी खरीद रही थी. तो अब लोगो के मन में ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सस्ती कीमत वाले घी में जानवरों की चर्बी होती है? क्या हम जो घी खा रहे हैं, कहीं उसमें भी तो मिलावट तो नहीं? क्या हम जिस घी का इस्तेमाल कर रहे हैं कहीं इसमें भी सचमुच एनिमल फैट तो नही है?
भारत में घी में मिलावट का एक प्रमुख कारण दूध और वनस्पति वसा के बीच कीमत में बड़ा अंतर है. रिफाइंड पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल अब 120-125 रुपये प्रति किलो की दर से थोक में बिक रहे हैं. ज्यादा महंगे देसी रेपसीड/सरसों और मूंगफली तेल की थोक कीमत 135-150 रुपये प्रति किलो है. जबकि वसा तेल केवल 80-85 रुपये प्रति किलो है. कीमतों में ज्यादा अंतर होने के कारण कई मैन्युफैक्चरर्स लोगों की आंखों में धूल झोंकते हुए जनवरों की चर्बी घी में मिला देते हैं. कीमतें ज्यादा होने का कारण दूध वसा की उपलब्धता भी है. कॉरपोरेटिव डेयरियां हर रोज 600 लाख किलो दूध खरीदती हैं. इनमें से वे 450 लाख किलो दूध बेच देती हैं. बाकी 50 लाख किलो से दही, लस्सी और अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं.
बाजार में कंज्यूमर पैक में बेचे जाने वाले घी का अधिकतम खुदरा मूल्य (12% जीएसटी सहित) 600 रुपये से 750 रुपये प्रति लीटर तक है, जिसमें एक लीटर में केवल 910 ग्राम होता है. इन सब की वजह से टीटीडी (Tirumala Tirupati Devasthanams), जो तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर मंदिर की देखरेख करती है, उसे अपने लड्डुओं और अन्य प्रसादों के लिए असली और हाई क्वॉलिटी वाला घी हासिल करना आसान नहीं होता है. वह सस्ती कीमतों में मिलने वाले घी का इस्तेमाल करते है, जो आसानी से मिल जाता है. बता दे, टीटीडी (TTD) की खुद की सालाना जरूरत 5,000 टन है, जो अपने आप में काफी बड़ी है. लेकिन सस्ती के चक्कर में करोड़ों हिंदुओं की आस्था से खेलना कितना सही है? इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
कहां है वो लैब जिसकी रिपोर्ट पर देश करता है विश्वास
National Dairy Development Board (NDDB) ने अपनी सभी सहकारी और दूध उत्पादन संस्थाओं को ध्यान में रखते हुए CALF लैब की स्थापना 2009 में गुजरात के आणंद में की थी. जहाँ दुनियाभर की डेयरी प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता जांच का काम CALF लैब में होता है. यहां दूध, घी, पनीर, मिठाई, के अलावा फल-सब्जियों और पशु आहार की भी जांच होती है. यहां पर आनुवंशिकी से जुड़े विश्लेषण किए जाते है. वही प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर में बनाया जाने वाला लड्डू प्रसादम में जो जानवरों की चर्बी पाई गयी है, उसका सैंपल टेस्ट भी यही किया गया जिसके बाद से लड्डू विवाद चर्चा का विषय बन गया है. इसके अलवा मिलावट को लेकर जब कोई बड़ा मामला फंसता है, तो अक्सर उसे NDDB CALF लेबोरेटरी में भेजा जाता है. जिसके कड़े मानकों पर टेस्टिंग से आई रिपोर्ट पर पूरा देश भरोसा करता है.