Ghatshila News: झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला प्रखंड स्थित रामचंद्रपुर सबर बस्ती में एक चौंकाने वाली घटना घटी। यहां के 14 वर्षीय लड़की सोनिया सबर ने अपने पिता जुंआ सबर का अंतिम संस्कार किया। यह घटना इस बात का प्रतीक बन गई कि कैसे पलायन और बेरोजगारी ने गांवों के पारिवारिक और सामाजिक ढांचे को प्रभावित किया है।
पलायन और बेरोजगारी ने बदल दी सामाजिक संरचना- Ghatshila News
रामचंद्रपुर सबर बस्ती में कुल 80 लोग रहते हैं, लेकिन यहां के अधिकांश पुरुष रोजगार की तलाश में तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में पलायन कर गए हैं। इस कारण गांव में अब सिर्फ महिलाएं और छोटी बच्चियां ही रह गई हैं। जुंआ सबर की 45 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई। वह दिनभर काम करते थे, लेकिन रात में अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और उनकी धड़कनें रुक गईं।
जुंआ के बेटे श्यामल सबर, जो तमिलनाडु में बोरिंग की गाड़ी में काम करता है, को इस दुखद घटना की खबर दी गई, लेकिन वह तुरंत गांव लौटने में असमर्थ था। ऐसे में गांव की महिलाओं ने मिलकर अंतिम संस्कार का फैसला लिया। जुंआ की पत्नी गुलापी सबर और अन्य महिलाएं मिलकर अर्थी तैयार करने और कब्र खोदने में जुट गईं।
14 वर्षीय सोनिया ने निभाया बेटा होने का फर्ज
सोनिया सबर, जुंआ की 14 वर्षीय बेटी, ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया। उसने 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी, लेकिन घर की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए उसने स्कूल छोड़ दिया था। अब उसने अपने पिता की अर्थी तैयार की, कब्र खोदी और पूरी श्रद्धा के साथ अंतिम संस्कार किया। यह दृश्य इस बात का प्रतीक था कि कैसे गांव की महिलाएं और छोटी लड़कियां भी मुश्किल परिस्थितियों में परिवार की जिम्मेदारी निभाती हैं।
काम की तलाश में गांव छोड़ने वाले 20 युवक और अधेड़
रामचंद्रपुर सबर बस्ती में 28 परिवारों के 85 लोग रहते हैं, लेकिन यहां के 20 से ज्यादा युवक और अधेड़ तमिलनाडु और केरल में काम की तलाश में गए हैं। इस पलायन ने गांव की सामाजिक और पारिवारिक स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इस कारण अब महिलाएं और बच्चे ही गांव में कामकाजी जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं, और उन्हें हर स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
पलायन और बेरोजगारी का गंभीर असर
रामचंद्रपुर सबर बस्ती की यह घटना दर्शाती है कि कैसे रोजगार की कमी और पलायन ग्रामीण समाज को प्रभावित कर रहे हैं। एक तरफ जहां पुरुषों के लिए घर लौटना अब कठिन हो गया है, वहीं दूसरी ओर महिलाएं और बेटियां परिवार और समाज की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए मजबूर हो रही हैं। इस स्थिति ने यह सवाल भी उठाया है कि कैसे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की कमी से पारिवारिक और सामाजिक ढांचे में बदलाव आ रहा है।