NIA लखनऊ की विशेष अदालत ने बुधवार को 16 दोषियों को सजा सुनाई है। इनमें अवैध धर्मांतरण का मास्टरमाइंड मौलाना उमर गौतम भी शामिल है। वह उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले का रहने वाला है। उमर गौतम के अलावा 11 अन्य दोषियों को उम्रकैद की सजा मिली है। अंदौली में एक हिंदू परिवार को उमर गौतम ने अमीर बनने का लालच दिया था। जिले के लोग उसके घर की ओर आकर्षित हुए और मौलाना के जाल में फंस गए। पिछले दस सालों में मौलाना ने पचास से ज्यादा परिवारों का धर्मांतरण कराया है। लालच ने उन्हें भटकाया, लेकिन उन्हें सुविधाएं नहीं दी गईं। उनके घर भी जबरन छीन लिए गए।
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इन लोगों को हुई आजीवन कारावास की सजा
धर्मांतरण मामले में एनआईए कोर्ट ने उमर गौतम, कलीम सिद्दीकी कौसर आलम, फराज बाबुल्लाह शाह, प्रसाद रामेश्वर कोवरे उर्फ एडम, भूप्रिया बंदन उर्फ अरसलान, मुफ्ती काजमी जहांगीर काजमी, इरफान शेख, सलाउद्दीन जैनुद्दीन शेख, अब्दुल धीरज गोविंद राव जगताप को सजा सुनाई। सरफराज अली जाफरी और अब्दुल्ला उमर को आजीवन कारावास।
हिंदू संगठनों का चौंकाने वाला दावा
यहां के हिंदू संगठनों का दावा है कि अवैध धर्मांतरण के जाल में फंसकर अकेले दोआबा जिले में करीब 7,000 परिवार इस्लाम और ईसाई धर्म अपना चुके हैं। जब लोगों ने विरोध जताया तो पुलिस ने 34 मामले दर्ज किए, हालांकि उनमें से अधिकांश की अभी भी जांच चल रही है। आरोप है कि पंथुवा निवासी श्याम प्रताप सिंह उर्फ उमर गौतम ने न सिर्फ धर्मांतरण के लिए प्रेरित किया, बल्कि इलाके में कई ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक संगठनों ने भी अशिक्षित और गरीब लोगों को पैसे का लालच देकर अवैध धर्मांतरण के लिए प्रेरित किया।
इस्लामिक संगठनों के स्लीपर सेल सक्रिय
2001 में दोआबा में स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के संबंध में खुफिया एजेंसियों ने बड़े पैमाने पर अभियान चलाए थे। तीन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। फिर भी, अदालत ने 2009 में तीनों को बरी कर दिया। मामले की जांच के दौरान जिले में कई इस्लामिक संगठनों के साथ-साथ उनके स्लीपर सेल का भी पता चला। पता चला कि ये संगठन गरीब हिंदू परिवारों का ब्रेनवॉश करते हैं और अपने स्लीपर सेल के जरिए उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए उकसाते हैं। लालौली, हसवा, मोहम्मदपुर गौती और ऐराया के मुस्लिम बहुल इलाकों में कई घटनाओं का खुलासा होने पर हिंदू संगठनों ने अपनी चिंता जताई, लेकिन कुछ नहीं किया गया। ऐसी अफवाहें हैं कि इनमें से कुछ समूह अभी भी दोआबा में सक्रिय हैं, जो लोगों को अवैध रूप से धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं।
2009 में इसाई मिशनरी का हुआ खुलासा
2009 में जब हसवा के टीसी गांव में सामूहिक धर्मांतरण का मामला सामने आया तो उस समय सांसद रहीं साध्वी निरंजन ज्योति और हिंदू संगठनों ने विवाद खड़ा कर दिया। साध्वी का कहना है कि मिशनरी इस्लामी संस्थाओं से भी ज्यादा खतरा हैं। गरीबों को भैंस, बकरी और अन्य सुविधाएं देने से वे फंस जाते हैं और अवैध धर्मांतरण की गतिविधि को अंजाम देते हैं। 2009 में जब पता चला कि बारह परिवारों का सामूहिक धर्मांतरण किया गया है तो उनमें से हर एक को घर भेज दिया गया। इस समुदाय में 2012 में सामूहिक धर्मांतरण को रोकने के प्रयास किए गए थे।
बहरीन और खाड़ी देशों से मिली फंडिंग
वहीं एटीएस ने दावा किया कि इस पूरे रैकिट को चलाने के लिए कुल 1.5 करोड़ रुपये का अवैध फंडिंग बहरीन से हुआ और 3 करोड़ रुपये अन्य खाड़ी देशों से हुआ। कलीम ने उमर और इस्लामिक दावा सेंटर (आईडीसी) में मुफ़्ती काजी को उनके धर्मांतरण प्रयासों में सहायता की। मौलाना कलीम ने वलीउल्लाह नामक एक ट्रस्ट की भी देखरेख की, जो सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रव्यापी गतिविधियाँ संचालित करता है, लेकिन वास्तव में धर्मांतरण योजना के लिए एक मुखौटा के रूप में काम करता है। जून 2021 में, ईडी ने एटीएस मामले के आधार पर मोहम्मद उमर गौतम, मुफ़्ती काजी जहाँगीर कासमी और इस्लामिक दावा सेंटर (आईडीसी) के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत शिकायत दर्ज की।