नए कृषि कानून के विरोध में हो रहे किसान आंदोलन को 6 महीने पूरे हो चुके हैं। कोरोना काल के बीच किसान अपनी मागों पर अड़े हैं और आंदोलन कर रहे हैं। 26 मई को किसानों ने काले दिन के रूप में मनाया। किसान आंदोलन का 6 महीने का सफर काफी उतार चढ़ाव भरा रहा।
दिल्ली पुलिस ने दाखिल की चार्जशीट
26 जनवरी का दिन किसान आंदोलन के लिए सबसे खराब रहा था। देश की राजधानी दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान जो हिंसा हुई, उससे पूरा देश शर्मसार हुआ। लाल किले की प्राचीर पर तिरंगे का अपमान किया गया। 26 जनवरी को लाल किले पर हुई हिंसा को लेकर अब बड़ा खुलासा हुआ है।
‘सोची-समझी साजिश थी हिंसा’
दरअसल, इसको लेकर दिल्ली पुलिस ने एक चार्जशीट दाखिल की है। चार्जशीट में पुलिस की तरफ से ये दावा किया गया कि लाल किले पर जो हिंसा हुई, वो सोची समझी साजिश थीं। पुलिस के मुताबिक प्रदर्शनकारियों का मकसद केवल लाल किले पर किसान संगठन का झंडा लगाने का ही नहीं था, बल्कि वो लाल किले पर कब्जा कर कृषि कानून के लिए नया नया प्रोटेस्ट साइट बनाने की कोशिश थीं।
‘बड़े पैमाने पर हुई थी तैयारी’
चार्जशीट में ये भी बताया गया कि 26 जनवरी को हुई हिंसा की साजिश नवंबर-दिसंबर 2020 में ही रची जा चुकी थी। इसके बारे में बड़े पैमाने पर ट्रैक्टर खरीदे गए थे। पुलिस ने हरियाणा-पंजाब में दिसंबर 2019 और 2020 में खरीदे गए ट्रैक्टरों के आंकड़ों को खंगाला था, तो पता चला कि दिसंबर 2019 के मुकाबले 2020 पंजाब में ट्रैक्टरों की खरीद 95 प्रतिशत बढ़ी।
‘…जिससे सरकार की हो बदनामी’
चार्जशीट में पुलिस ने बताया कि लाल किले में जो भीड़ घुसी थी, उसका मकसद था कि वो अपने नया ठिकाना बनाकर वहां से आंदोलन आगे बढ़ाए। इसके लिए जानबूझकर गणतंत्र दिवस का दिन चुन गया था, जिससे सरकार की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी झेलनी पड़े।
हिंसा मामले में क्राइम ब्रांच ने दीप सिद्धू, इकबाल सिंह समेत 16 लोगों को आरोपी बनाया है। पुलिस के मुताबिक कि 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान बुजुर्गों को आगे रखने की योजना थी।
पुलिस ने कहा कि हिंसा की साजिश को अंजाम देने के लिए पैसे का भी इस्तेमाल किया गया। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आरोपी इकबाल सिंह से पूछताछ में इसका खुलासा हुआ। इसमें पता चला कि सिख फॉर जस्टिस ग्रुप ने लाल किले पर निशान साहिब का झंडा लगाने पर कैश देने का वादा किया था।
6 महीने बाद भी आंदोलन जारी…
गौरतलब है कि किसान आंदोलन बीते महीनों लगातार चर्चाओं में बना हुआ था। नए कृषि कानून को लेकर किसानों ने सरकार के खिलाफ 26 नवंबर को हल्ला बोला था। बड़ी संख्या में किसान दिल्ली के बॉर्डर पर आ गए थे। इसके बाद विवाद सुलझाने के लिए कई दौर की बातचीत भी हुई, लेकिन हल कुछ नहीं निकल पाया। इस बीच किसान लगातार अपना आंदोलन तेज करते गए। फिर 26 जनवरी के दिन ट्रैक्टर रैली निकाली गई, जिसमें दिल्ली में जबरदस्त हिंसा हुई।
26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद से ही सरकार और किसानों के बीच बातचीत बंद है। वहीं देश में कोरोना की दूसरी भयंकर लहर के आने के बाद किसान आंदोलन का असर कम होने लगा। हालांकि कोरोना काल के बीच भी जारी किसान आंदोलन को अब काफी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ रहा है। आंदोलन में भीड़ इकट्ठी करने की वजह से लोग किसान आंदोलन पर सवाल खड़े करते नजर आ रहे हैं।