देश में संविधान के तहत हर लड़के और लड़की को अपनी मर्जी से शादी करने के अधिकार दिए गए है. इस संविधान के तहत एक लड़का किसी भी जाति और धर्म की लड़की और लड़का भी किसी भी जाति और धर्म की लड़की से शादी कर सकती है. लेकिन अभी भी कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनमें शादी नहीं हो सकती और इसे ‘सपिंड विवाह’ कह सकते हैं लेकिन अब कोर्ट ने इस इसे ‘सपिंड विवाह’ पर रोक लगा दी है.
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जानिए क्या है ‘सपिंड विवाह’
सपिंड विवाह उन दो लोगों के बीच होता है जो खून के रिश्ते होते हैं. हिंदू मैरिज एक्ट में, ऐसे रिश्तों को सपिंड कहा जाता है लेकिन एक्ट की धारा 3(f)(ii) के मुताबिक, ‘अगर दो लोगों में से एक दूसरे का संबंध उनके पूर्वज से हो तो ये रिश्ता सपिंड रिश्ते अंदर आएगा. वहीं हिंदू मैरिज एक्ट के हिसाब से यह शादी करना पाप और कानून दोनों के खिलाफ है.
एक महिला ने दायर की थी याचिका
इस सपिंड विवाह को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में एक महिला की याचिका दायर की थी और ये महिला हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5(v) को असंवैधानिक घोषित करने की लंबे समय से कोशिश कर रही थी. दरअसल, साल 2007 में, उसके पति ने अदालत के सामने यह साबित कर दिया कि उनकी शादी सपिंड विवाह थी और महिला के समुदाय में ऐसी शादियां नहीं होतीं इसलिए उनकी शादी को अमान्य घोषित कर दिया गया था. वहीं महिला ने इस फैसले के खिलाफ पहले फॅमिली कोर्ट और उसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन अक्टूबर 2023 में कोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी. मतलब, अदालत ने ये माना कि सपिंडा विवाह को रोकने वाला हिंदू मैरिज एक्ट का नियम सही है.
वहीं इसके बाद महिला ने दोबारा हाई कोर्ट में इसी कानून को चुनौती दी. इस बार उन्होंने ये कहा कि सपिंड शादियां कई जगह पर होती हैं, चाहे वो समुदाय का रिवाज न भी हो उन्होंने दलील दी कि हिंदू मैरिज एक्ट में सपिंड शादियों को सिर्फ इसलिए रोकना कि वो रिवाज में नहीं, असंवैधानिक है. ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो बराबरी का अधिकार देता है. महिला ने आगे यह भी कहा कि दोनों परिवारों ने उनकी शादी को मंजूरी दी थी, जो साबित करता है कि ये विवाह गलत नहीं है.
हाईकोर्ट ने दिया फैसला
वहीं दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला की दलीलों को स्वीकार नहीं किया. कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने माना कि याचिकाकर्ता ने पक्के सबूत के साथ किसी मान्य रिवाज को साबित नहीं किया, जो कि सपिंड विवाह को सही ठहरा सके. दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि शादी के लिए साथी चुनने का भी कु साथी चुनने का भी कुछ नियम हो सकते हैं. इसलिए, कोर्ट ने माना कि महिला ये साबित करने में कोई ठोस कानूनी आधार नहीं दे पाईं कि सपिंड शादियों को रोकना संविधान के बराबरी के अधिकार के खिलाफ है.
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