भारत में हर साल दो लाख लोग साफ़ पानी की कमी के कारण मर रहे हैं। इतना ही नहीं, 2030 तक देश की करीब 60 करोड़ आबादी को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, 21वीं सदी के आधुनिक भारत में, जिसकी चर्चा अक्सर सत्ताधारी नेता करते हैं, यह स्थिति चौंकाने वाली है। ऐसे में देश में विकास और आधुनिकता की बातें खोखली लगती हैं क्योंकि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं जहां आज भी लोगों के पास पीने का पानी नहीं है।
और पढ़ें: आजादी के 77 साल बाद भी राजस्थान के इन गांवों में नहीं पहुंचा है मोबाइल टावर
लोकसभा में उठे सवाल
17 मार्च 2022 को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में जल शक्ति मंत्रालय ने कहा कि 2030 तक भारत की करीब 40 फीसदी आबादी के पास पीने का पानी नहीं होगा। सरकार ने नीति आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सबसे ज्यादा पानी की कमी दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद में हो सकती है।
इन गांवों में स्थिति गंभीर है
सड़क, पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के नाम पर उदयपुर के तिलोई पंचायत के अंबाल, पलछा ग्राम पंचायत के कमार, करेलिया और मरेवा गांवों में व्यवस्था नहीं की गई है। यहां लोग पीने के पानी के लिए पहाड़ों से निकलने वाले झरनों और तालाबों पर निर्भर रहते हैं। यहां एक हैंडपंप तक नहीं लगाया जा सका। ग्रामीणों के मुताबिक यहां नेता सिर्फ चुनाव के वक्त ही नजर आते हैं। भाजपा विधायक प्रताप लाल गमेती, कांग्रेस के पूर्व मंत्री मांगीलाल गरासिया समेत कई नेताओं ने वादे तो खूब किए, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद किसी ने चेहरा तक नहीं दिखाया।
यही स्थिति छत्तीसगढ़ में भी है
मेटातोड़के छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिला मुख्यालय से 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गांव है, इस गांव में लगभग 80 लोगों की आबादी निवास करती है। यह गांव घने जंगलों के बीच स्थित है और पहाड़ों से घिरा हुआ है। यहां तक पहुंचना भी आसान नहीं है। आजादी के 77 साल बाद भी यहां विकास नहीं पहुंच सका है। ग्रामीण पानी के लिए आज भी तरस रहे हैं। गांव में एक हैंडपंप है, लेकिन उसका पानी पीने योग्य नहीं है और गर्मियों में पानी खत्म हो जाता है। ऐसे में महिलाएं सुबह से ही पानी लेने के लिए घर से झरिया के लिए निकल पड़ती हैं।
उत्तर प्रदेश में भी यही हालात
पानी को लेकर उत्तर प्रदेश के पटवाई गांव के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं. पटवाई गांव के लोग आज भी पानी की बूंद-बूंद को मोहताज हैं. गांव में पानी की कमी के कारण वे गांव से एक किलोमीटर दूर कूनो नदी में जगह-जगह गड्ढे खोदते हैं और उसमें से पानी लाकर ग्रामीणों के सूखे कंठों की प्यास बुझाते हैं. आज भी यहां के लोग दूषित पानी पीकर अपना समय गुजार रहे हैं। ग्रामीणों का आधा दिन पानी लाने में ही बीत जाता है।
महाराष्ट्र में पानी की भीषण समस्या
महाराष्ट्र में पानी की समस्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां के बांधों में सिर्फ 35 फीसदी पानी बचा है। कुल 35 गांवों और 113 बाड़ी में गंभीर जल संकट है और आने वाले दिनों में यह आंकड़ा कई गुना बढ़ सकता है। नासिक के बोरधापाड़ा गांव में लोगों को पीने के पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। गांव की महिलाएं 2 किमी पैदल चलकर कुएं से पानी ला रही हैं। रायगढ़ जिले में भी पीने के पानी की भारी कमी है।
वहीं, मुंबई से महज 100 किलोमीटर दूर शाहपुर में हजारों ग्रामीण पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। महाराष्ट्र के चंद्रपुर में लोग पिछले 60 सालों से पानी की कमी से जूझ रहे हैं। ये लोग गड्ढे खोदकर पानी इकट्ठा करने को मजबूर हैं। चंद्रपुर जिले के 958 गांवों में पानी की भारी कमी है। इसके अलावा अकोला के कवठा गांव की 2.5 हजार की आबादी वाले लोगों को नदी के गंदे और दूषित पानी पर गुजारा करना पड़ता है। यह एकमात्र समस्या नहीं है। पानी की समस्या के कारण इस गांव में कोई भी अपनी बेटी की शादी किसी लड़के से नहीं करना चाहता।