प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के दौरे पर
बांग्लादेश गए हुए हैं। आज उनके दौरे का दूसरा और अंतिम दिन है। कोरोना काल के
शुरू होने के बाद ये पहला ऐसा मौका था, जब प्रधानमंत्री किसी विदेश के दौरे पर गए। ऐसे में
इसको लेकर सोशल मीडिया पर खूब चर्चाएं हो रही है। लेकिन अपने दौरे के पहले दिन
ढाका में पीएम मोदी ने एक ऐसा दावा किया, जिसको लेकर सोशल
मीडिया पर बहस छिड़ गई है।
दरअसल, इस दौरान पीएम ने कहा था कि बांग्लादेश की आजादी के
लिए उन्होनें अपने साथियों के साथ मिलकर आंदोलन किया और इसके लिए वो जेल भी गए थे।
पीएम के मुताबिक उस दौरान उनकी उम्र 20-22 साल की थीं। पीएम द्वारा किया गया यही
दावा सोशल मीडिया पर सुर्खियों में बना हुआ है। जहां एक तरफ विपक्षी पार्टियां
पीएम के इस दावे को लेकर उन्हें घेरती हुई नजर आ रही हैं, तो
दूसरी ओर कई लोग सोशल मीडिया पर पीएम के दिए बयान पर समर्थन में भी उतर आए हैं। ये
पूरा मामला आखिर है क्या, आइए इसके बारे में आपको विस्तार से
बताते हैं…
क्या कहा था प्रधानमंत्री ने…?
सबसे
पहले बात करते हैं कि आखिर पीएम ने कहा क्या था। प्रधानमंत्री बोले थे कि
बांग्लादेश की आजादी के लिए संघर्ष में शामिल होना, मेरे जीवन के पहले आंदोलनों में से एक था। उस दौरान
मेरी उम्र करीब 20 से 22 साल हो गी। मैनें और मेरे साथियों ने बांग्लादेश की आजादी
के लिए सत्याग्रह किया था। तब आजादी के समर्थन में मैनें गिरफ्तारी भी दी थीं और
इस दौरान जेल जाने का अवसर भी मिला।
विपक्षी
पार्टियों ने लिए खूब मजे
प्रधानमंत्री मोदी के इसी बयान को लेकर संग्राम
छिड़ गया है। कांग्रेस नेताओं ने इस बयान को लेकर काफी ट्वीट किए। कांग्रेस नेता
शशि थरूर ने कहा– ‘हमारे प्रधानमंत्री बांग्लादेश
को भारतीय फेक न्यूज का मजा चखा रहे हैं। बचकानी
बात है क्योंकि हर कोई जानता है कि बांग्लादेश को किसने आजाद करवाया।‘
इसको लेकर कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग के राष्ट्रीय
संयोजक सरल पटेल ने कहा कि उन्होंने इस दावे को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय से
जानकारी मांगी है।
इसके अलावा आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी पीएम मोदी पर हमला बोला। AAP सासंसद संजय सिंह ने कहा- ‘बांग्लादेश की आजादी में
भारत सरकार तो बांग्लादेश के साथ थी। युद्ध तो पाकिस्तान से हो रहा था फिर मोदी जी
को जेल भेजा किसने? भारत ने या पाकिस्तान ने?’
पीएम के
बचाव में भी उतरे लोग
वहीं पीएम के इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ
लोग उनके बचाव में भी उतर आए। पॉलिटिकल एनालिस्ट कंचन गुप्ता ने मोदी की 1978 में
लिखी किताब ‘संघर्ष मा गुजरात‘ का कवर
और बैक कवर शेयर किया। जिसमें लेखक के परिचय का देते हुए गुजराती में एक लाइन लिखी
कि ‘बांग्लादेश के सत्याग्रह
के समय तिहाड़ जेल होकर आए।‘ लेकिन नरेंद्र मोदी की जो वेबसाइट है, उस पर इस किताब के रीप्रिंटेड
वर्जन के बैक कवर पर ये बात मौजूद नहीं।
यही नहीं कंचन गुप्ता ने न्यूज एजेंसी AP के
आर्काइव्ज से एक वीडियो शेयर की। इस वीडियो में बांग्लादेश की आजादी के समर्थन
में 25 मई 1971 को
जनसंघ की एक रैली की फुटेज है। उस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के अध्यक्ष थे।
इसके अलावा गुप्ता ने बांग्लादेश सरकार का एक प्रशस्ति पत्र भी साझा किया,
जिसमें बतौर जनसंघ अध्यक्ष वाजपेयी के बांग्लादेश के स्वाधीनता
संग्राम में योगदान की सराहना की गई।
साथ में विपक्ष के सवालों द्वारा पीएम मोदी के
बयानों पर कसे जा रहे तंज को लेकर बीजेपी यूपी के प्रवक्ता शलभमणि त्रिपाठी ने
ट्वीट किया। उन्होनें कहा- ‘अपने कर्मठ जीवन के जरिए कुंठित आत्माओं को रोजगार देते रहने का पीएम
नरेंद्र मोदी का ये अंदाज अनूठा है। वो मुद्दा छेड़ते हैं,फिर कुंठित आत्माएं उन पर टूट पड़ती हैं, उनके जीवन के पन्ने उधेड़ती हैं और आखिर में सच
वही निकलता है, जो मोदीजी ने कहा होता है। बांग्लादे़श पर भी यही हुआ।‘