Delhi Real estate crisis: विज्ञापनों में चमचमाते टावर, हरियाली से भरे पार्क, और बच्चों के लिए प्ले एरिया देखकर लोग सपने संजो लेते हैं। बेहतर जीवन की चाहत में लोग अपनी सारी कमाई रियल एस्टेट कंपनियों को दे देते हैं, लेकिन जब सालों बाद घर की चाबी नहीं मिलती, तो उम्मीदें टूट जाती हैं। कई बार तो लोग न तो घर के मालिक बन पाते हैं, न ही उनकी जमा पूंजी बचती है। आज लाखों होम बायर्स ऐसे हैं, जो अपने सपनों के मलबे में दबे हुए हैं।
भारत की रियल एस्टेट कंपनियों के उदाहरण जैसे आम्रपाली और अंसल ने ग्राहकों के सपनों को चूर-चूर किया। इन कंपनियों की बढ़ती गतिविधियों और आकर्षक विज्ञापनों के बावजूद, इनमें से कई कंपनियां अंत में अपने प्रोजेक्ट्स को पूरा नहीं कर पाईं, और घर खरीदारों को भारी नुकसान हुआ। सवाल यह है कि इन कंपनियों के डूबने के पीछे क्या कारण हैं? क्या रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट (RERA), जो 2016 में होम बायर्स को सुरक्षा देने के लिए आया था, वाकई प्रभावी साबित हुआ है? और सुप्रीम कोर्ट ने इन समस्याओं को सुलझाने में कितनी मदद की है?
आम्रपाली ग्रुप: एक उदाहरण के रूप में – Delhi Real estate crisis
आम्रपाली ग्रुप की शुरुआत 2003 में हुई थी। इस कंपनी ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा में सस्ते और लग्जरी हाउसिंग प्रोजेक्ट्स की बाढ़ ला दी थी। इसके विज्ञापनों में बड़े-बड़े वादे, क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी जैसे ब्रांड एंबेसडर और चमचमाती बिल्डिंग्स की तस्वीरों ने इसे देश की टॉप रियल एस्टेट कंपनियों में शुमार कर दिया। लेकिन 2015 के बाद यह कंपनी संकट में आ गई।
सुप्रीम कोर्ट में यह खुलासा हुआ कि आम्रपाली ने ग्राहकों से मिले पैसे को गलत तरीके से 46 सहायक कंपनियों में डायवर्ट किया। कंपनी पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे, और 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली का रेरा रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया और इसके अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा करने की जिम्मेदारी नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन (NBCC) को सौंप दी।
अंसल ग्रुप का भी नसीब कुछ बेहतर नहीं
अंसल ग्रुप की कहानी भी कुछ कम दर्दनाक नहीं है। 1967 में शुरू हुई यह कंपनी दिल्ली-एनसीआर में रियल एस्टेट की दिग्गज कंपनी थी। अंसल प्लाजा जैसे मॉल और कई रिहायशी प्रोजेक्ट्स के कारण इसने बड़ी पहचान बनाई। लेकिन पिछले एक दशक में कर्ज के बोझ और कानूनी पचड़ों ने इसे मुश्किल में डाल दिया। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अंसल ग्रुप को अपने एक प्रोजेक्ट में देरी के लिए होम बायर्स को मुआवजा देने का आदेश दिया। इसके बाद कंपनी की वित्तीय स्थिति बिगड़ती चली गई और 2022 तक कंपनी का कर्ज 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया।
रियल एस्टेट कंपनियों के डूबने के कारण
- फंड्स का गलत इस्तेमाल: आम्रपाली और जेपी जैसी कंपनियों ने होम बायर्स से लिया पैसा नए प्रोजेक्ट्स शुरू करने या कर्ज चुकाने में खर्च कर दिया, जिससे मूल प्रोजेक्ट्स अधूरे रह गए।
- अत्यधिक कर्ज: अंसल और सुपरटेक जैसी कंपनियां कर्ज के जाल में फंस गईं। ब्याज का बोझ बढ़ने से उनकी वित्तीय हालत खराब हो गई।
- संस्थागत समस्याएं: भारत में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स को शुरू करने के लिए कई मंजूरियां लेनी होती हैं, जो समय लेती हैं, जिससे प्रोजेक्ट्स की लागत बढ़ जाती है।
- बाजार में मंदी: 2016 के बाद नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से प्रॉपर्टी की मांग में कमी आई, जिससे कंपनियों की आय पर असर पड़ा।
- पारदर्शिता की कमी: कई कंपनियां ग्राहकों को अधूरी जानकारी देती हैं, जिससे कानूनी विवाद बढ़ते हैं और प्रोजेक्ट्स रुक जाते हैं।
2024 में रेरा की विफलता पर सवाल
इतना ही नहीं, 2024 में रियल एस्टेट सेक्टर की निगरानी करने के लिए निर्मित रेरा (RERA) ने वह भरोसा खो दिया है, जिसे वह घर खरीदारों को देने का वादा करता था। घर खरीदारों ने अब रेरा की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए उपभोक्ता मंत्रालय से नए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की है।
2016 में अस्तित्व में आए रेरा का उद्देश्य था रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता लाना और होम बायर्स को धोखाधड़ी से बचाना, लेकिन आठ साल बाद यह मामला फिर से वहीं पहुंच गया है, जहां से शुरू हुआ था। उपभोक्ता मंत्रालय पर पहले घर खरीदारों के हितों और अधिकारों की रक्षा का दायित्व था, और अब वह फिर से उसी स्थिति में हैं।
रेरा पर घर खरीदारों की शिकायतें
घर खरीदारों के सबसे बड़े संगठनों में से एक, फोर पीपुल्स कलेक्टिव एफर्ट (एफपीसीई) ने उपभोक्ता मंत्रालय को पत्र लिखकर अपनी शिकायत दर्ज कराई है। उनका कहना है कि रेरा की सात साल की सक्रियता के बावजूद यह अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर सका है। एफपीसीई ने यह भी उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल में रियल एस्टेट से जुड़े एक मामले में यह टिप्पणी की थी कि रेरा अब एक “सेवानिवृत्त अफसरों के लिए पुनर्वास केंद्र” बन गया है, और इससे न केवल रियल एस्टेट सेक्टर, बल्कि उपभोक्ताओं का भरोसा भी टूट गया है।
रेरा से जुड़ी प्रमुख शिकायतें
- भ्रामक विज्ञापन: रेरा के आने के बाद यह उम्मीद जताई गई थी कि भ्रामक विज्ञापनों का सिलसिला खत्म होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। घर खरीदार अब भी विज्ञापनों में दिखाए गए वादों से धोखा खा रहे हैं।
- एकतरफा अनुबंध: बुकिंग से लेकर रजिस्ट्री और भवन-भूखंड के रखरखाव तक, घर खरीदारों को अक्सर अपने अधिकारों की अनदेखी का सामना करना पड़ता है।
- अनुचित व्यापार प्रथाएं: उपभोक्ता मंत्रालय से यह मांग की गई है कि वह धोखाधड़ी से बचाने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे और रेरा को एक नई दिशा में चलने के लिए मजबूर करे।
भारत में रियल एस्टेट संकट के कारण होम बायर्स का भविष्य अंधकारमय हो गया है। रेरा और सुप्रीम कोर्ट ने इस संकट को कम करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन इसे पूरी तरह से खत्म करना एक लंबी प्रक्रिया होगी। रियल एस्टेट कंपनियों के लिए यह समय है कि वे पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन का पालन करें, ताकि होम बायर्स का विश्वास वापस लाया जा सके। 2024 में रेरा की विफलता और उपभोक्ता मंत्रालय से उम्मीदें, रियल एस्टेट सेक्टर में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण बिंदु साबित हो सकती हैं।