Delhi CAG report: दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताजा रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट में सामने आया है कि राजधानी की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली गंभीर कुप्रबंधन, वित्तीय लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता से जूझ रही है। सरकार द्वारा किए गए बड़े-बड़े दावों के बावजूद, शहर के अस्पतालों और मोहल्ला क्लीनिकों की हालत बदतर बनी हुई है।
ICU, एंबुलेंस और बुनियादी सुविधाओं का संकट– Delhi CAG report
सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली के 27 सरकारी अस्पतालों में से 14 में आईसीयू की सुविधा नहीं है, जबकि 12 अस्पतालों में एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं, कई अस्पतालों में जरूरी सुविधाओं का भी अभाव है:
– 16 अस्पतालों में ब्लड बैंक की सुविधा नहीं है।
– 8 अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई तक की उचित व्यवस्था नहीं।
– CATS एंबुलेंस बिना जरूरी मेडिकल उपकरणों के चलाई जा रही हैं।
मोहल्ला क्लीनिकों की भी हालत बेहद चिंताजनक पाई गई। 21 क्लीनिकों में शौचालय की सुविधा नहीं थी, 15 में बिजली बैकअप उपलब्ध नहीं था, और 6 में डॉक्टरों के बैठने तक की उचित व्यवस्था नहीं थी।
कोविड फंड का इस्तेमाल अधूरा, जरूरी संसाधनों की भारी कमी
रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए 787.91 करोड़ रुपये में से सिर्फ 582.84 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए। बाकी राशि बिना उपयोग के रह गई, जिसके चलते कोरोना काल में आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं की कमी बनी रही।
वहीं, स्वास्थ्य कर्मचारियों के वेतन और भर्ती के लिए मिले 52 करोड़ में से 30.52 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किए गए। दवाओं, पीपीई किट और मेडिकल सप्लाई के लिए आवंटित 119.85 करोड़ रुपये में से 83.14 करोड़ रुपये खर्च नहीं हुए।
यह दर्शाता है कि महामारी के दौरान भी सरकार ने स्वास्थ्य कर्मियों की नियुक्ति और चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता को गंभीरता से नहीं लिया।
अस्पतालों में बेड और स्टाफ की भारी किल्लत
दिल्ली सरकार ने 2016-17 से 2020-21 के बीच 32,000 नए बेड जोड़ने का वादा किया था, लेकिन महज 1,357 बेड ही जोड़े गए, जो कि कुल लक्ष्य का सिर्फ 4.24% है। इस वजह से कई अस्पतालों में मरीजों को एक ही बेड पर दो-दो लोगों को रखना पड़ा या उन्हें फर्श पर इलाज कराना पड़ा।
स्वास्थ्य सेवाओं में स्टाफ की भी भारी कमी देखी गई:
- 8,194 पद खाली पड़े हैं।
- नर्सिंग स्टाफ की 21% और पैरामेडिकल स्टाफ की 38% की कमी है।
- राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टरों की 50 74% तक की कमी है।
- नर्सिंग स्टाफ की उपलब्धता 73-96% तक कम पाई गई।
अस्पतालों की निर्माण परियोजनाओं में देरी और लागत में बढ़ोतरी
दिल्ली सरकार ने तीन नए अस्पतालों के निर्माण का दावा किया था, लेकिन इन परियोजनाओं में 5 से 6 साल तक की देरी हुई, जिससे लागत भी कई गुना बढ़ गई।
- इंदिरा गांधी अस्पताल: 5 साल की देरी, लागत 9 करोड़ रुपये बढ़ी।
- बुराड़ी अस्पताल: 6 साल की देरी, लागत 26 करोड़ रुपये बढ़ी।
- एमए डेंटल अस्पताल (फेज-2): 3 साल की देरी, लागत 36 करोड़ रुपये बढ़ी।
सर्जरी और मेडिकल उपकरणों की दयनीय स्थिति
सीएजी रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को सर्जरी के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। लोक नायक अस्पताल में बड़ी सर्जरी के लिए 2-3 महीने और बर्न व प्लास्टिक सर्जरी के लिए 6-8 महीने का इंतजार करना पड़ा। चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय (CNBC) में पीडियाट्रिक सर्जरी के लिए 12 महीने तक की वेटिंग रही। कई अस्पतालों में एक्स-रे, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड मशीनें खराब पड़ी रहीं।
अब क्या करेगा प्रशासन?
सीएजी रिपोर्ट के इन चौंकाने वाले खुलासों ने दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत सामने ला दी है। महामारी के दौरान सरकार ने फंड को सही तरीके से उपयोग नहीं किया, जिससे लोगों को इलाज के लिए भारी संकट झेलना पड़ा।