दलित प्रोफेसर शैलजा पाइक को प्रतिष्ठित मैकआर्थर फेलोशिप से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह फेलोशिप उनके सामाजिक और ऐतिहासिक शोध के लिए मिली है, जो मुख्य रूप से दलितों और हाशिए के समुदायों के अधिकारों और स्थिति पर केंद्रित है। इस पुरस्कार के तहत उन्हें 800,000 डॉलर की राशि दी गई है, जिसका उपयोग वह बिना किसी शर्त के अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए कर सकती हैं। शैलजा पाइक का यह सम्मान भारत और दुनिया भर के दलित और हाशिए के समुदायों के लिए प्रेरणादायक है और उनके द्वारा किए गए शोध कार्यों को और मान्यता प्रदान करता है।
प्रोफेसर शैलजा पाइक का योगदान
शैलजा पाइक एक इतिहासकार और सामाजिक वैज्ञानिक हैं, जिनके शोध का फोकस दलित महिलाओं, उनके संघर्षों, और भारतीय समाज में उनके योगदान पर रहा है। उन्होंने अपने शोध के माध्यम से दलित महिलाओं की उन कहानियों को सामने लाने का प्रयास किया है, जिन्हें इतिहास में अक्सर नजरअंदाज किया गया है। उनका काम सामाजिक असमानता और जाति व्यवस्था, खास तौर पर भारत में दलित महिलाओं की स्थिति पर केंद्रित है। उन्होंने भारतीय समाज में जाति, वर्ग और लैंगिक भेदभाव जैसे जटिल संरचनात्मक मुद्दों को समझने और उनका समाधान करने के लिए महत्वपूर्ण शोध किया है।
गौरवशाली : दलित प्रोफेसर शैलजा पाइक को मिला $8,00,000 का मैकआर्थर अवार्ड
पुणे के येरवडा की झुग्गी-झोपड़ी से लेकर अमेरिका में प्रोफ़ेसर बनने तक का बेहतरीन सफ़र तय करने वाली शैलजा पाइक अब प्रतिष्ठित ‘मैकआर्थर’ फ़ैलोशिप पाने वाली पहली दलित महिला बन गई हैं.
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— Ambedkarite People’s Voice (@APVNews_) October 6, 2024
कौन है शैलजा पाइक?
शैलजा पाइक एक प्रसिद्ध भारतीय-अमेरिकी इतिहासकार और समाजशास्त्री हैं, जिनका शोध मुख्य रूप से भारत में दलित समुदाय, विशेष रूप से दलित महिलाओं के इतिहास, समाज और संघर्षों पर केंद्रित है। वह डेटन विश्वविद्यालय में इतिहास और अफ्रीकी-अमेरिकी अध्ययन की प्रोफेसर हैं। उनका काम भारतीय समाज के हाशिये पर रहने वाले दलितों की कहानियों को उजागर करना और सामाजिक असमानता, जाति-व्यवस्था और लिंग-आधारित भेदभाव की गहरी समझ प्रदान करना है।
शैलजा पाइक का शैक्षिक और पेशेवर जीवन
शैलजा पाइक ने अपनी शिक्षा और शोध में जाति, लिंग और वर्ग भेदभाव जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित किया है। अपने अध्ययन और शोध के दौरान उन्होंने पाया कि दलित महिलाओं की कहानियों और संघर्षों को इतिहास की मुख्यधारा में अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। उन्होंने इस विषय पर गहन शोध किया और इन मुद्दों को वैश्विक स्तर पर लाने का प्रयास किया।
उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक “Unseen: The Histories of India’s Dalit Women” (अनदेखा: भारत की दलित महिलाओं का इतिहास) है, जिसमें उन्होंने दलित महिलाओं के जीवन, उनकी सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों, और उनके योगदान पर ध्यान केंद्रित किया है। इस पुस्तक में उन्होंने ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित और हाशिये पर खड़ी महिलाओं के संघर्ष और उनकी भूमिका को प्रस्तुत किया है।
क्या है मैकआर्थर फेलोशिप?
मैकआर्थर फेलोशिप संयुक्त राज्य अमेरिका का एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जिसे जीनियस ग्रांट के नाम से भी जाना जाता है। यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जो अपने क्षेत्र में असाधारण रचनात्मक और योगदान देने वाले होते हैं। इस फेलोशिप के तहत दी जाने वाली राशि का उपयोग विजेता अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र रूप से कर सकते हैं। शैलजा पाइक का यह सम्मान न केवल उनके काम की पहचान है, बल्कि दलितों और खासकर दलित महिलाओं के संघर्षों को वैश्विक मंच पर लाने का एक प्रयास भी है।