देश के 4 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव होने जा रहे है, जिसके लिए तारीखों की घोषणा कर दी गई। पश्चिम बंगाल में इसी महीने से 8 चरणों में विधानसभा के चुनाव शुरू होंगे। चुनाव को लेकर बंगाल का सियासी पारा चढ़ा हुआ है। राज्य में TMC और BJP एक दूसरे को कड़ी टक्कर देने की पूरी कोशिश कर रही है।
बंगाल चुनावों के बीच मतुआ समुदाय भी एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है। सभी पार्टियों की नजर इस समुदाय पर टिकी है। क्या है मतुआ समुदाय? क्यों सभी पार्टियां इस समुदाय को साधने की कोशिश में जुट जाती है? बंगाल की राजनीति में इस समुदाय की कितनी और क्या अहमियत है? आइए आज इसके बारे में आपको बताते हैं…
मतुआ समुदाय की अहमियत
मतुआ समुदाय बंगाल में अनुसूचित जनजाति की आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है। इस समुदाय के लोग पूर्वी पाकिस्तान से आते हैं। मतुआ संप्रदाय की शुरुआत अविभाजित बंगाल में 1860 से हुई थीं। जिब हरिचंद ठाकुर ने इसकी स्थापना की थी। राजनीति से इस समुदाय का काफी लंबा संबंध रहा।
बंगाल की 70 विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय का असर माना जाता हैं, नदिया 17 और उत्तर व दक्षिण 24 परगना की 64 सीट इसमें शामिल हैं। इस वजह से वोटबैंक के लिहाज ये समुदाय बंगाल में काफी अहमियत रखता है।
नागरिकता है समुदाय का बड़ा मुद्दा
इस समुदाय का सबसे बड़ा मुद्दा इस समय नागरिकता का है। दरअसल, जब देश का विभाजन हुआ तो मतुआ समुदाय के कई लोग भारत आए। बाद में भी पूर्वी पाकिस्तान से इस समुदाय के लोगों यहां आते रहे। इन लोगों को वोट का अधिकार तो मिला, लेकिन नागरिकता अब तक नहीं मिली। इस वजह से नागरिकता मतुआ समुदाय का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
किस पार्टी से कैसा है नाता?
अब बात करते हैं कि आखिर इस समुदाय का झुकाव किसको ओर दिखता है? पहले तो वामपंथी दलों को मतुआ समुदाय का सपोर्ट मिलता रहा। बाद में ये ममता बनर्जी के करीब आया। 2019 से CAA के मुद्दे को लेकर बीजेपी ने समुदाय को साधना शुरू किया। 2019 में जब लोकसभा के चुनाव हुए थे जब पीएम मोदी ने ठाकुर परिवार की प्रमुख वीणापाणि देवी (बोरो मां) से आशीर्वाद लिया था और उसके बाद ही अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की थीं। वहीं ममता बनर्जी भी बोरे मां के करीब रही हैं। आपको बता दें कि ठाकुर परिवार का मतुआ समुदाय पर काफी प्रभाव है।
यही नहीं बीजेपी ने इस परिवार के ही शांतनु ठाकुर को लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी पार्टी से टिकट भी दिया था और वो जीते भी। वहीं इससे पहले TMC से इस परिवार से लोकसभा सदस्य रहे।
CAA के मुद्दे को लेकर बीजेपी इस समुदाय को साधने की पूरी कोशिश कर रही हैं। लेकिन TMC भी एनआरसी का मुद्दा उठाकर बीजेपी के इस दांव को फेल करने की कोशिश में जुटी हैं। दरअसल, बीजेपी ने CAA के जरिए इस समुदाय के लोगों को नागरिकता का भरोसा दे रही हैं। वहीं TMC एनआरसी के मुद्दे को उठाते हुए ये कह रही है कि अगर ये लागू हो जाता है, तो इन लोगों को बांग्लादेश जाना पड़ेगा। ममता बनर्जी भी बीजेपी के नागरिकता के मुद्दे की काट के लिए मतुआ लोगों को जमीन पर अधिकार देने का अभियान चला रही है।
बंगाल में सभी पार्टियां इस समुदाय को साधने की कोशिश करती रहती हैं। इसके लिए वो मतुआ समुदाय को सौंगाते भी देती रहती हैं। अब जब मतुआ समुदाय का इतना दबदबा है, तो बंगाल चुनावों में इनका सपोर्ट हर पार्टी के लिए काफी अहमियत रखता है।
आपको बता दें कि बंगाल में 27 मार्च से विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होगीं। 8 चरणों में बंगाल के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। पहले चरण के लिए मतदान 27 मार्च को है। वहीं अंतिम चरण की वोटिंग 29 अप्रैल को होगीं। 2 मई को ये तय हो जाएगा कि बंगाल की सत्ता की चाबी किसके हाथों में जाएगी। क्या ममता बनर्जी इस बार भी अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो पाएगी? या फिर बंगाल की जनता इस बार बीजेपी या किसी दूसरी पार्टी को मौका देगी?