2640 करोड़ रुपये…ये कितना बड़ा अमाउंट है, ये तो हम सभी जानते हैं। लेकिन आपको शायद ये नहीं मालूम होगा कि बीते कुछ दिनों में इतनी बड़ी राशि बर्बाद हुई है और ये पैसे किसी और के नहीं, हमारे ही थे। उन करोड़ों टैक्सपेयर्स के थे, जो इमानदारी से टैक्स भरते हैं।
हुआ जमकर हंगामा और स्वाहा हुए पैसे
इन पैसों की बर्बादी हुई संसद में। संसद का मॉनसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ा रहा। तमाम मुद्दों को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर रहा और इस दौरान खूब हंगामा हुआ। मॉनसून सत्र के दौरान पेगासस जासूसी और किसान आंदोलन समेत कई मुद्दें छाए रहे। जिनको लेकर संसद में गतिरोध बना रहा और इसके चलते दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही लगातार बाधित होती रही। इस सबकी वजह से देश की जनता के 2640 करोड़ रुपये पानी में चले गए।
सिर्फ इतने घंटे ही हुआ काम
PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार इस बार के मॉनसून सत्र पिछले दो दशकों के मुकाबले सबसे कम काम हुआ। लोकसभा की प्रोडेक्टिविटी 21 प्रतिशत रही, जबकि राज्यसभा की 29 फीसदी।
रिसर्च के अनुसार 19 दिनों तक चलने वाले इस सत्र में लोकसभा में रोजाना 6 घंटों के हिसाब से कुल 114 घंटे काम होना था। लेकिन हंगामे की वजह से कार्यवाही पर लगातार असर पड़ता रहा। जिसके चलते लोकसभा में महज 21 घंटे ही कामकाज हो पाया। वहीं बात अगर राज्यसभा की करें तो उच्च सदन में 112 घंटे काम होना था, जिसमें से हो पाया 29 घंटे के करीब ही कामकाज होना था।
हर मिनट सदन चलाने पर आता है ढाई लाख का खर्च
दोनों सदनों को मिला दें तो कुल 226 घंटों तक काम होना चाहिए था। इनमें से लोकसभा-राज्यसभा में कुल मिलाकर 50 घंटे ही कामकाज हुआ। तमाम अनुमानों के अनुसार सदन की हर मिनट की कार्यवाही चलने के लिए ढाई लाख रुपये का खर्च आता है। इस तरह हंगामे की भेंट चढ़े संसद भवन में देश की जनता के 26.40 अरब बर्बाद हुए।
कौन लेगा इसकी जिम्मेदारी?
एक तरफ तो इसका पूरा ठीकरा सरकार विपक्ष पर फोड़ती हुई नजर आ रही है। सरकार विपक्ष के हंगामे को इसके लिए जिम्मेदार ठहराती हुई नजर आ रही है। वहीं दूसरी ओर विपक्ष सरकार पर चर्चा से भागने का आरोप लगाता रहा। इस बीच संसद में गतिरोध चलता रहा और पूरा सत्र ही एक तरह हंगामे की भेंट चढ़ा।
इस बीच सवाल उठता है कि पैसों की इतनी बर्बादी का जिम्मेदार कौन? कौन इसकी जिम्मेदारी लेगा? कौन देश की जनता को इस बर्बादी का हिसाब देगा? अगर इन पैसों को किसी और काम में लगाया जाता तो कितना काम आता? संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता था। जहां पक्ष-विपक्ष दोनों से ही सार्थक चर्चा और बहस की उम्मीद होती है, लेकिन इस बारे के संसद सत्र में ऐसा कुछ होता नहीं दिखा। इसकी जगह हंगामा, शोर शराबा और बार बार दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित होती हुई ही नजर आई। जिसके आरोप सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर लगाएगा, लेकिन इसमें बर्बादी तो आखिर जनता के पैसों की हुई ना।