केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले का विरोध किया जिसमें राज्यों को अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण के भीतर क्रीमी लेयर बनाने की अनुमति दी गई थी। उन्होंने कहा, “ अनुसूचित जाति के अधिकांश लोग, यहां तक कि संपन्न परिवारों से आने वाले और शिक्षा तक पहुंच रखने वाले लोगों को भी अस्पृश्यता का सामना करना पड़ता है। इसलिए, अनुसूचित जाति के भीतर उप-समूहों को अनुमति देना उचित नहीं है।” उन्होंने घोषणा की कि उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) इसके ख़िलाफ़ अपील करेगी। चिराग पासवान ने कहा कि उनकी पार्टी जल्द ही इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने जा रही है।
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SC से करेंगे फैसले की समीक्षा करने की अपील
कंद्रीय मंत्री ने कहा, “हमारी पार्टी सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध करेगी कि वह अपने हाल के फैसले की समीक्षा करे, जिसमें अनुसूचित जाति कोटे के तहत 15 प्रतिशत उप-समूहों को अनुमति दी गई है। एससी कोटे में क्रीमी लेयर को अनुमति नहीं दी जा सकती। एससी कोटे में उप-समूहों को अनुमति देने से सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े वर्ग के उत्थान का उद्देश्य पूरा नहीं होगा, जो छुआछूत की प्रथा का शिकार रहा है।”
चिराग पासवान ने आगे कहा, “मुझे लगता है कि हमें जाति जनगणना करानी चाहिए, लेकिन इसके निष्कर्षों को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए। एकत्र किए गए डेटा का उपयोग सरकार द्वारा नीतियां बनाने के लिए किया जाना चाहिए।”
चिराग पासवान ने कहा कि वह जातीय जनगणना के पक्ष में सिर्फ इसलिए हैं ताकि उस आधार पर सभी की भलाई के लिए नीतियां बनाई जा सकें। इसलिए नहीं कि आरक्षण के भीतर आरक्षण होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसले ने क्या कहा?
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पीठ ने गुरुवार को राज्यों को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व के आधार पर अनुसूचित जातियों (एससी) के भीतर जातियों को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति दे दी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 15 प्रतिशत एससी कोटे का बड़ा हिस्सा पिछड़ों को मिले। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों को आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं।
बता दें, यह फैसला 6:1 के बहुमत से दिया गया है। पीठ में न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्रा शामिल थे।