दिल्ली की बॉर्डरों पर चल रहे किसान आंदोलन के आज 100 दिन पूरे हो गए हैं। किसानों ने दिल्ली से सटे कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे (KMP Expressway) को 5 घंटे के लिए जाम कर दिया है। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेश चौहान ने आज केएमपी एक्सप्रेसवे जाम करने को लेकर कहा कि सोई सरकार को जगाने का हमारे पास ये ही रास्ता बचा है। इसी बीच देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे होने पर केंद्र सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस ने लगातार कई ट्वीट करते हुए मोदी सरकार को निशाने पर लिया है।
‘गूंगी-बहरी तानाशाही हुकूमत अन्नदाता की…’
कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट करते हुए कहा, ‘अहंकार में चूर हो, क्यों इतने मगरुर हो…सामने किसान है, हथेली पर उसकी जान है…तुम क्या चाहते हो, वो हथकंडों से डर जाएंगे…अन्नदाता हैं, अहंकार तुम्हारा चूर कर जाएंगे।‘ दूसरे ट्वीट में कहा गया है कि ‘किसान आंदोलन के 100 दिन हो चुके हैं और भाजपाई अहंकार के भी। दिल्ली की सीमाओं पर किसानों की शहादत जारी है। मगर हुकूमत का अहंकार ज्यादा भारी है।‘
एक अन्य ट्वीट में कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला है। ट्वीट में कहा गया कि ‘देश का अन्नदाता पिछले 100 दिन से दिल्ली की सरहदों पर संघर्षरत है। लेकिन गूंगी-बहरी तानाशाही हुकूमत अन्नदाता की आवाज को सुनने को तैयार नहीं है। सरकार का यह तानाशाही रवैया याद रखा जायेगा।‘
‘जब तक जरुरी होगी प्रदर्शन करेंगे’
दरअसल, किसानों की चार में से दो मांग- बिजली के दामों में बढ़ोतरी वापसी और पराली जलाने पर जुर्माना खत्म करने- पर जनवरी में सहमति बन गई थी लेकिन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने और एमएसपी की कानूनी गारंटी को लेकर बात अब भी अटकी हुई है। भारतीय किसान यूनियन के नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि जब तक जरूरत होगी वे प्रदर्शन जारी रखने के लिए तैयार हैं। जब तक सरकार हमें सुनती नहीं, हमारी मांगों को पूरा नहीं करती, हम यहां से नहीं हटेंगे।
23 जनवरी को हुई थी अंतिम बातचीत
बता दें, केंद्र सरकार के मंत्री और किसान नेताओं के बीच 11 दौरे की बातचीत हो चुकी है लेकिन अभी तक किसी भी तरह का कोई समाधान निकल कर सामने नहीं आया है। दोनों पक्षों के बीच अंतिम बातचीत 23 जनवरी को हुई थी। उसके बाद से लगभग डेढ़ महीनें का समय निकल गया है लेकिन अभी तक किसी तरह की कोई बातचीत नहीं हुई है।
किसान लगातार इन कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर केंद्र सरकार की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि किसी भी कीमत पर यह कानून वापस नहीं लिए जाएंगे। हालांकि, सरकार ने इनमें संशोधन करने की बात कही है।