देश पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। ये खतरा है बिजली संकट का। देश में कोयले की हो रही भारी कमी के चलते कई जगह अंधेरे में डूबने की संभावनाएं जताई जा रही है। दरअसल, देश के आधे से अधिक पावर प्लांट्स में महज 2 से 4 दिनों का ही कोयला अब बचा हैा। भारत एक ऐसा देश हैं, जहां 70 फीसदी बिजली का उत्पादन कोयले से होता है। ऐसे में देश में कोयले की कमी होने से सीधा बिजली गुल होने का खतरा बना हुआ है।
ऐसे में कई तरह के सवाल आपके मन में आ रहे होंगे कि देश में कोयले की कमी आखिर क्यों और कैसे हो गई? आगे क्या होगा? क्या सच में कई शहरों की बिजली गुल हो जाएगी? और इससे निकलने का समाधान क्या है? आइए इस पर चर्चा कर लेते हैं…
जानिए इस संकट के पीछे की वजह…
सबसे पहले बात इसकी करते हैं कि आखिर देश पर ये इतना बड़ा बिजली संकट आकर आखिर खड़ा कैसे हो गया? दरअसल, ये संकट यूं अचानक ही नहीं आया। कुछ महीनों पहले ही ये संकट शुरू हो गया था। दरअसल, कोरोना की दूसरी वेव के बाद देश की अर्थव्यवस्था में तेजी आई। इसके साथ ही देश में बिजली की मांग भी काफी तेजी से बढ़ने लगीं।
2 महीनों में ही बिजली की खपत काफी ज्यादा बढ़ गई। 2019 के मुकाबले इन महीनों में बिजली की खपत में 17 फीसदी की बढ़ोत्तरी देखने को मिली। वहीं इस दौरान दुनिया में कोयले के दामों में भी तेजी देखने को मिलीं। इसमें 40 प्रतिशत का उछला आया, जिसके चलते भारत का कोयला आयात दो साल में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया।
इन सब चीजों का असर अब हमारे सामने है। भारत कोयला आयात यानी Import करने के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है, क्योंकि यहां खपत ही इतनी ज्यादा है। वहीं कोयला भंडार यानी स्टॉक के मामले में हमारा देश चौथे नंबर पर आता है। अब इसी देश पर कोयले की कमी के चलते एक बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
आम लोगों के साथ इकोनॉमी पर क्या होगा असर?
बिजली संकट का असर आम लोगों के साथ देश की इकोनॉमी और सरकार पर भी हो सकता है। इससे बिजली महंगी होने की संभावना है। पावर सप्लाई करने वाली कंपनियां महंगे दाम पर ही कोयला खरीदना पड़ेगा, जिसकी असर उपभोक्ता पर पड़ सकता है। इसके चलते बिजली के दामों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है।
इसके अलावा कोरोना के लंबे झटके के बाद देश की अर्थव्यवस्था अब धीरे धीरे पटरी पर आ रही है, लेकिन कोयला संकट का असर इकोनॉमी पर भी देखने को मिल सकता है। खासतौर पर ऐसे वक्त में जब सीजन त्योहारों का आ रहा है। इस संकट से प्रोडक्शन, सप्लाई, डिलीवरी समेत वो सबकुछ प्रभावित होने की संभावनाएं है, जो इकोनॉमी के लिए बूस्ट देती हैं।
वहीं इस दौरान सरकार को कोयले का आयात बढ़ाने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है। क्योंकि भारत के व्यापार में आयात डॉलर में होता है, तो इससे विदेशी मुद्रा भंडार में इसकी कमी देखने को मिल सकती है।
अब क्या है उपाय?
कोयला संकट के उपाय को लेकर बात करें, तो तात्कालिक उपाय तो कोयले के आयात का ही दिखता है। इसके साथ ही बिजली की खपत को भी कम करना होगा। इस सबके अलावा देश में कोयले के उत्पादन को भी बढ़ाने की जरूरत है। वहीं इस दौरान वैकल्पिक एनर्जी की तरफ तेजी से रुख करना पड़ेगा। हालांकि ये सब कुछ करना उतना आसान नहीं होने वाला। देखे वाली बात तो ये होगी कि आखिर सरकार देश को इस संकट से निकालने के लिए आगे क्या करती है? और ये भी देखना होगा कि इसका क्या असर आने वाले वक्त में क्या पड़ता है?