मंगलवार का दिन त्रिवेंद्र सिंह
रावत के लिए मंगल नहीं रहा। अपने ही मंत्री और विधायकों की नाराजगी रावत को भारी
पड़ी और उनको उत्तराखंड के सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। त्रिवेंद्र सिंह रावत
सीएम के तौर पर 4 साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए। इसमें भी कुछ दिन
बचे थे। इससे पहले ही उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी।
किसी बीजेपी नेता ने नहीं पूरा किया कार्यकाल
लेकिन ऐसा नहीं है कि
त्रिवेंद्र सिंह रावत ऐसे पहले सीएम रहे, जिन्होनें
उत्तराखंड के सीएम के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। बल्कि उत्तराखंड का
सियासी इतिहास ही कुछ ऐसा रहा है। यहां अब तक बीजेपी का कोई भी नेता सीएम के तौर
पर अपने 5 साल के कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाया। बल्कि अब तक कांग्रेस के एनडी
तिवारी ही ऐसे इकलौते मुख्यमंत्री रहे हैं, जिन्होनें
उत्तराखंड के सीएम के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा किया। आइए आज हम आपको उत्तराखंड
के उतार चढ़ाव वाले सियासी सफर के बारे में बताते हैं…
उत्तराखंड को उत्तर
प्रदेश से अलग करने के लिए दशकों तक आंदोलन चले। जिसमें आखिरकार सफलता साल 2000 में मिलीं। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान 2000 में उत्तराखंड को अलग कर
राज्य का दर्जा मिला। उत्तराखंड को अलग किए जाने के बाद लोग इस राज्य के विकास और
राजनीति को देखने के लिए उत्सुक थे। लेकिन जैसा सोचा वैसा हुआ नहीं।
हर बार उत्तराखंड की जनता
एक सीएम चुनती थीं, लेकिन उन 5 सालों में पार्टियां ही इसमें बदलाव करती रहतीं थीं। 2000 में जब उत्तराखंड अलग राज्य बन गया, तो यहां सबसे पहले अंतरिम सरकार बीजेपी ने बनाई। लेकिन राज्य की नींव
पड़ते ही, यहां पर राजनीतिक अस्थिरता भी शुरू हो गई।
नित्यानंद
स्वामी बने थे पहले सीएम
उत्तराखंड के पहले
मुख्यमंत्री के तौर पर नित्यानंद
स्वामी ने ली। उनके शपथ लेने के बाद से ही बीजेपी में हलचल बढ़ी और गुटबाजी
शुरू होने लगी। जिसके नतीजन 2001 के अक्टूबर में उनको अपने पद से इस्तीफा देना
पड़ा। फिर भगत सिंह कोश्यारी को उत्तराखंड का अगला सीएम बनाया गया। कोश्यारी का
कार्यकाल शांतिपूर्ण तो रहा, लेकिन इसके कुछ महीनों बाद ही उत्तराखंड में विधानसभा के चुनाव होने
थे।
एनडी तिवारी 5 साल रहे सीएम
2002 में उत्तराखंड में विधानसभा के चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी सत्ता हासिल करने में कामयाब नहीं
हो पाई। उत्तराखंड की जनता ने इस दौरान कांग्रेस के हाथों में राज्य की सत्ता
सौंपी। कांग्रेस ने नारायण दत्ता तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया। उनके कार्यकाल के
दौरान भी ऐसा कई बार हुआ जब कांग्रेस में विरोधी सुर उठाए गए, लेकिन बात इस्तीफे तक नहीं आई। एनडी तिवारी ऐसा
इकलौते सीएम रहे, जिन्होनें 5 साल अपना कार्यकाल पूरा किया।
5 साल में बदले 3 बार सीएम
2007 में
अगले विधानसभा के चुनाव हुए, जिस दौरान जनता ने दोबारा से सत्ता में बदलाव किया और एक बार फिर
बीजेपी को चुना। फिर राज्य में बीजेपी की सरकार बनी और फिर वहीं हुआ। इस 5 साल में बीजेपी ने 3 बार सीएम बदल दिए। साफ सुधरी और ईमानदार छवि वाले रिटायर्ड मेजर जनरल भुवन
चंद्र खंडूरी को बीजेपी ने मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन उनकी सख्ती और अनुशासन नेताओं
को पसंद नहीं आई और उनके खिलाफ भी पार्टी में विरोधी सुर उठने लगे। जिसके चलते
उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 2009 में रमेश पोखरियाल निशंक को पार्टी ने सीएम बनाया।
निशंक के कार्यकाल में भ्रष्टाचार
के आरोप लगे। जिसके चलते बीजेपी को अगले चुनावों में अपनी हार दिखने लगी थीं। इसके
चलते चुनाव से एक साल पहले दोबारा से भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बना दिया गया।
बीजेपी का यूं बार बार मुख्यमंत्री में बदलाव करना जनता को पसंद नहीं आया और अगले
चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।
कांग्रेस ने भी
वहीं किया
कांग्रेस ने चुनाव में
जीत हासिल करने के बाद विजय बहुगुणा को सीएम पद सौंपा।
विजय बहुगुणा के कुर्सी संभालने के बाद केदारनाथ में आपदा आई। इस दौरान राहत बचाव
कार्यों समेत व्यवस्थाओं को लेकर उनकी काफी आलोचना हुईं। कांग्रेस
के कई मंत्री और विधायक उनके खिलाफ हो गए थे। जिसके चलते 2014 में विजय बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री
बनाया गया।
कांग्रेस का हरीश रावत को सीएम बनाना पार्टी को काफी भारी
पड़ा। कांग्रेस के ही कई बड़े नेताओं ने ही इसके खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया।
जिसमें विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत और सुबोध उनियाल
जैसे नेताओं शामिल थे। इसके चलते इन्होनें कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का
दामन थाम लिया। इसके कुछ दिन बाद ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। लेकिन
कोर्ट से रावत को राहत मिली और वो 2017 तक सीएम रहे।
फिर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस को बड़ी हार
का सामना उत्तराखंड में करना पड़ा। पार्टी केवल 11 सीटों पर ही
सिमटकर रह गई। राज्य में एक बार फिर से बीजेपी को मौका मिला और त्रिवेंद्र सिंह
रावत मुख्यमंत्री बनाए गए। लेकिन अब वो भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।
त्रिवेंद्र सिंह रावत भी चूके
2022 की शुरुआत में उत्तराखंड में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस वजह से
बीजेपी कोई खतरा नहीं उठाना चाहती थी। इसलिए चुनाव से एक साल पहले त्रिवेंद्र सिंह
रावत को सीएम पद से अपना इस्तीफा देना पड़ा। अब अगले एक साल के लिए उत्तराखंड को
अपना नया सीएम मिलेगा। आज यानी बुधवार को बीजेपी विधायक दल की बैठक है, जिसमें सीएम के नाम पर मुहर लग सकती है। देखना होगा कि अगले एक साल
के लिए किसे राज्य का सीएम पद सौंपा जाता है…?