लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू कर अपना बड़ा दांव खेला है। बीते सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सीएए को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके साथ ही देशभर में CAA लागू हो गया। जहां कुछ राज्यों ने इस कानून का स्वागत किया है, वहीं पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे कई राज्य इस कानून का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे इस कानून को अपने-अपने राज्य में लागू नहीं करेंगे।
CAA लागू ना करने के पीछे दी दलील
गृह मंत्री अमित शाह के इस आश्वासन के बावजूद कि यह विधेयक किसी की नागरिकता नहीं छीनेगा, कुछ राज्य सरकारें इसके कार्यान्वयन का विरोध कर रही हैं। पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु की सरकारों ने CAA कानून को अपने राज्य में लागू करने से साफ इनकार कर दिया। CAA के प्रति विपक्षी दलों का कहना है कि यह कानून समुदाय को बांटने वाला कानून है। यह कानून मुस्लिम विरोधी है।
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CAA के खिलाफ मुख्यमंत्रियों के तीखे बयान
CAA पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि ‘CAA विभाजनकारी है और इसे तमिलनाडु में लागू नहीं किया जाएगा। इससे किसी को फायदा नहीं होगा।’
वहीं केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने कहा कि ‘हमारी सरकार ने बार-बार कहा है कि CAA केरल में लागू नहीं किया जाएगा। ये मुस्लिम अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक मानता है। सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी इस कानून के खिलाफ पूरा केरल एकजुट होगा।’
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि ‘हम बंगाल में किसी भी सूरत में एनआरसी डिटेंशन कैंप बनाने की अनुमति नहीं देंगे और न ही यहां किसी को भी लोगों के अधिकार छीनने की इजाजत देंगे। इसके लिए मैं अपनी जान देने के लिए तैयार हूं।’
क्या राज्य CAA को रद्द कर सकते हैं
इस पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे ने इंडिया टुडे से कहा कि केंद्र जिन मुद्दों पर फैसला ले सकता है, वे पूरी तरह स्पष्ट हैं। राज्यों के पास संघीय सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को रद्द करने का अधिकार नहीं है। संविधान के मुताबिक, CAA का विरोध करने वाले राज्यों के पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है।
क्या कहता है संविधान?
संविधान कहता है कि CAA को राज्य सरकारों को लागू करना ही होगा, क्योंकि इसे संसद से पारित किया गया है और नागरिकता का मामला संघ सूची में आता है। अनुच्छेद 246 में संघ और राज्यों के बीच शक्ति का वर्गीकरण किया गया है।इसमें कानून बनाने की शक्तियों को तीन स्तरों पर विभाजित किया गया है। रक्षा, रेलवे, विदेशी मामले और बैंकिंग जैसे मामले संघ सूची में आते हैं। राज्य सूची में भूमि, शराब, पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, कृषि जैसे मामले शामिल हैं, जबकि समवर्ती सूची में शिक्षा, वन, पर्यावरण संरक्षण, वन्य जीवन संरक्षण जैसे मामले शामिल हैं।
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