क्या आपने सुना है कि आजादी से पहले हमारे देश में कैसी-कैसी कुप्रथाओं का बोलबाला था। जहां छोटी जाति के लोग, जिन्हें दलित कहा जाता था, उनका शोषण काफी आम था। प्रथाओं के नाम पर उनका दमन किया जाता और कोई इसके खिलाफ आवाज तक नहीं उठा पाता था।
आजादी के बाद संविधान में दलितों को ऊंचा करने के लिए विशेष अधिकार दिए गए। लेकिन फिर भी भारत एक ऐसा देश है जहां आज भी जातिवाद जैसी कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई जारी है। आये दिन आप दलितों के साथ अत्याचार की खबरें आती रहती है। ये लड़ाई कब तक चलेगी, कुछ नहीं कहा जा सकता है। कुप्रथाओं का भंवर कितना गहरा है… इसका एक उदाहरण हम आपको बताने जा रहे है।
एक ऐसी कुप्रथा, जब महिलाओं को अपना तन ढकने के लिए जमींदारों को टैक्स चुकाना पड़ता था। जमींदारों ने ये नियम बनाया था कि दलित महिलाओ को अपना स्तन ढकने का अधिकार नहीं था। जब ये कहा जाता था कि केवल उच्च कुल की महिलाएं ही अपने ऊपरी तन को ढक सकती थी। आज हम आपको एक ऐसी ही कुप्रथा के बारे में बताने जा रहे है। जो समाज पर एक कालिख से कम नहीं थी।
जानें क्या है पूरा मामला?
कुछ समय पहले तक केरल की किताबों में बच्चों को नंगेली की बहादुरी और उसकी लड़ाई की कहानी पढ़ाई जाती थी लेकिन अचानक सरकार ने नंगेली की कहानी को बच्चों को पढ़ाने पर बैन लगा दिया। लेकिन सरकार ने क्यों किया ऐसा? तो चलिए आपको बताते है। ये किस्सा है आज से करीब 150 साल पहले का…केरल में त्रावणकोर के राजा का शासन था।
जातिवाद की कुप्रथा अपने चरम पर थी। किताबों में नंगेली की कहानी कुछ ऐसी थी कि नंगेली ने एक कुप्रथा के खिलाफ अपने स्तनों को काट कर रख दिया था इतना ही नहीं खून की कमी से उसकी मौत हो गई थी। जिसने एक बड़ी क्रांति को जन्म दिया था। ये प्रथा थी दलित महिलाओं को अपने स्तन ढकने के लिए देने वाले टैक्ट की।
आज से करीब 150 साल पहले तक केरल में दलित महिलाओं को अपने तन का ऊपरी हिस्सा ढकने के लिए कर चुकाना पड़ता था। उन्हें केवल निचला हिस्सा ढकने की ही इजाजात थी।
इस प्रथा के पीछे का कारण ये था कि ऐसी महिलाओं को उनके पहनावे से दूर से ही पहचाना जा सकें। इतना ही नहीं… जानकारों की माने तो स्तनो के आकार पर महिलाओं से कर वसूला जाता था। हालांकि ये केवल नीची जाति की महिलाओं के साथ ही नहीं था, ऊंची जाति कि महिलाओं को भी मंदिरों में जाने से पहले अपने ऊपरी तन से कपड़ा हटाना होता था।
कैसे खत्म हुई ये कुप्रथा
ये प्रथा कई दशकों तक चलती रही थी। लेकिन उस समय में दलितों में एड़वा जाति थी, जिन पर भी महिलाओं के स्तनों को ढकने के लिए टैक्स लगाया जाता था, लेकिन इस समुदाय की एक महिला थी नंगेली। नंगेली ने राजा के बनाए इस नियम को मानने से इंकार करते हुए बिना टैक्स दिए ही स्तनो को ढकना शुरू कर दिया था।
जिसके कारण नंगेली के परिवार को काफी यातनाएं झेलनी पड़ी थी। नंगेली पर कर चुकाने का दवाब बनाया जाने लगा..जिसके कारण गुस्से में नंगेली ने एक केले के पत्ते पर अपने दोनो स्तनो को काट कर रख दिया। नंगेली के इस कदम के कारण ज्यादा खून बहने से उसकी मौत हो गई.. उसकी मौत के बाद उसके पति ने भी आत्मदाह कर लिया।
नंगेली की मौत के कारण वहां दलित महिलाओं ने राजा के खिलाफ हल्ला बोल दिया। वो राजा के बनाए इस नियम के खिलाफ आवाद उठाने लगी। इस कारण जुलाई 1859 में आखिरकार राजा को दलित महिलाओं के लिए लागू कुप्रथा को वापिस लेना पड़ा। अब महिलाओं को घर हो या बाहर सभी जगहों पर तन ढकने की इजाजात थी।
नंगेली भले ही चली गई थी लेकिन जाते जाते उसने दशकों से चली आ रही कुप्रथा के खिलाफ एक आग जलाई थी। जो आखिरकार दलितों महिलाओं को उनका हक दिला कर ही मानी।