चेहरे पर मीठी मुस्कान
और आंखों में परमात्मा की चमक रखने वाली प्रजापिता ब्रह्मकुमारी की प्रमुख
राजयोगिनी दादी हृदय मोहिनी इस दुनिया में नहीं रहीं। गुरुवार को मुंबई के एक
अस्पताल में उन्होनें अंतिम सांस लीं। उनकी उम्र 94 साल की थीं। दादी ह्दय मोहिनी
का पिछले 2 हफ्तों से अस्पताल में इलाज चल रहा था।
13 मार्च को होगा
अंतिम संस्कार
दादी हृदय मोहिनी के पार्थिव शरीर को अबू रोड स्थित
आध्यात्मिक संगठन मुख्यालय लेकर आया जाएगा। यहां उनकी पार्थिव देह को अंतिम दर्शन
के लिए रखा जाएगा। वहीं 13 मार्च शनिवार को हृदय मोहिनी का अंतिम संस्कार होगा। उनके निधन पर प्रधानमंत्री मोदी, राहुल गांधी समेत कई दिग्गजों ने दुख भी जताया।
राजयोगिनी दादी ह्दय मोहिनी को दिव्य
दृष्टि का वरदान मिला हुआ था। दादी हृदय मोहिनी परमात्मा मिलन भी कराती रही है।
उनके शरीर के जरिए परमात्मा शिव का मिलन होता रहा है। इनको संदेशी भी कहा जाता है।
कौन थीं राजयोगिनी
दादी हृदय
मोहिनी?
एक जुलाई 1926 को हृदय मोहिनी का जन्म हैदराबाद पाकिस्तान के
सिंध में हुआ। जब वो केवल 9 वर्ष की थीं, तब ही से संस्थान से जुड़ गई थीं। इसके बाद उन्होनें पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। पहले दादी हृदय मोहिनी लखनऊ और दिल्ली
में इस संस्थान से जुड़ी हुई थीं। इसके बाद वो राजस्थान की माउंट आबू
संस्थान से जुड़ गई थीं।
चौथी
कक्षा तक ही पढ़ाई
उनके
बचपन का नाम शोभा था। लेकिन जब वो संस्थान से जुड़ी, तो प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने
इसको नाम गुलजार रख दिया। जब ईश्वरीय अवतरण आरंभ हुआ, तो उनका नाम दादी ह्दय
मोहिनी पड़ गया। जब वो 8 साल की थीं तो उन्होनें ब्रह्मा बाबा द्वारा खोले ओम
निवास बोर्डिंग स्कूल में दाखिला ले लिया। यहां पर उन्होनें चौथी कक्षा तक की
पढ़ाई की। इस दौरान स्कूल में संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका से वो इतना ज्यादा
प्रभावित हुई कि उन्होनें छोटी सी उम्र में ही अपना जीवन उनके जैसे ही बनाने का
फैसला ले लिया।
ऐसा
था उनका व्यक्तित्व
दादी
हृदय मोहिनी की जो सबसे बड़ी खासियत थी वो उनका गंभीर व्यक्तित्व बताया जाता है। बचपन
से ही वो गहन चिंतन की मुद्रा में रहती थीं। 8-9 साल की उम्र में ही उनको दिव्य
लोक की अनुभूति होने लगी। दादी का जीवन सादगी, सरलता और सौम्यता की मिसाल रहा। बचपन
से ही विशेष योग-साधना की वजह से उनका व्यक्तित्व काफी दिव्य हो गया था। जिसके
चलते उनके संपर्क में जो लोग आते थे उनको तपस्या और साधना की अनुभूति होती थी।
जब
दादी हृदय मोहिनी 14 साल की थीं, तो ब्रह्मा बाबा के साथ उन्होनें काफी मुश्किल
योग साधना की। इस दौरान सालों तक खाना पीना छोड़कर वो दिन रात योग साधना में लगी
रहीं। बाबा उनको एक-एक हफ्ते का मौन कराया करते थे। जिसके बाद से ही दादी का ऐसा
स्वभाव बन गया था कि वो जितना काम हो उतना ही बात किया करती थीं। वो आखिरी वक्त तक
मौन में ही रहीं।
1969
में बन गई थीं परमात्मा दूत
18
जनवरी 1969 को जब संस्था के संस्थापक ब्रह्मा बाबा का निधन हुआ तो दादी हृदय
मोहिनी को परमात्मा संदेशवाहक और दूत बनकर लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य
प्रेरणा देने की भूमिका निभाई। 2016 तक उन्होनें संस्थान के मुख्यालय माउंट आबू में
आने व लों लोगों को परमात्मा का संदेश दिया और योग तपस्या को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित
भी किया।
पिछले
साल बनी थीं मुख्य प्रशासिका
जब
पिछले साल 27 मार्च को संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका राजियोगिनी दादी जानकी का
निधन हुआ, तो उसके बाद दादी हृदय मोहिनी को संस्थान की मुख्य
प्रशासिका नियुक्त किया गया। वो लंबे वक्त से अस्वस्थ थीं, लेकिन इसके बाद भी दिन
रात लोगों के कल्याण में लगी रहती थीं।
राजयोगिनी
दादी हृदय मोहिनी को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय बारीपाड़ा से डॉक्टर ऑप लिटरेचर
की उपाधि मिलीं। उनको ये उपाधि उड़ीसा के प्रभु के संदेशवाहक के तौर पर
आध्यात्मिकता का प्रचार प्रसार करने के लिए और समाजसेवा में अपना योगदान देने के
लिए मिली थीं।