बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने एक युवा जोड़े की शादी को रद्द करने का फैसला सुनाया। दरअसल, शादी को इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि पति की ‘रिलेटिव इंपोटेंसी’ के कारण शादी कायम नहीं रह सकती थी और जोड़े की हताशा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। इसे देखते हुए कोर्ट ने पीड़िता की मानसिक स्थिति के लिए शादी रद्द करना सही माना।
‘रिलेटिव इंपोटेंसी’ का मतलब ऐसी नपुंसकता से है जिसमें व्यक्ति किसी विशेष व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने में असमर्थ हो सकता है, लेकिन दूसरे व्यक्तियों के साथ वह यौन संबंध बनाने में सक्षम हो सकता है। यह सामान्य नपुंसकता से भिन्न स्थिति होती है।
मानसिक, भावनात्मक या शारीरिक रूप से नहीं जुड़ सकते
न्यायमूर्ति विभा कंकणवाड़ी और न्यायमूर्ति एसजी चपलगांवकर की खंडपीठ ने 15 अप्रैल के अपने फैसले में यह भी कहा कि यह उन युवाओं की मदद करने का मामला है जो शादी के बाद मानसिक, भावनात्मक या शारीरिक रूप से एक-दूसरे से नहीं जुड़ पाते हैं।
एक 27 वर्षीय व्यक्ति ने इस साल फरवरी में पीठ का दरवाजा खटखटाया था जब एक पारिवारिक अदालत ने उसके द्वारा दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने शादी को रद्द करने की मांग की थी।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सापेक्ष नपुंसकता के कई शारीरिक और मानसिक कारण हो सकते हैं। वर्तमान मामले में यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि पति में अपनी पत्नी के प्रति सापेक्षिक नपुंसकता है। शादी न चल पाने का कारण सीधे तौर पर पति का पत्नी के साथ शारीरिक संबंध न बना पाना है।
पहले अपनी पत्नी पर लगा रहा था आरोप
खंडपीठ ने कहा कि शख्स पहले इस बात को स्वीकार करने से संकोच कर रहा था कि उसे कुछ समस्या है। अदालत ने कहा कि व्यक्ति ने शुरुआत में शारीरिक संबंध नहीं बना पाने के लिए अपनी पत्नी को दोषी ठहराया क्योंकि वह यह स्वीकार करने में झिझक रहा था कि वह उसके साथ यौन संबंध बनाने में असमर्थ था।
दोनों ने मार्च 2023 में शादी की, लेकिन 17 दिन बाद ही अलग हो गए। कपल ने कहा कि उनके बीच कोई शारीरिक संपर्क नहीं था। महिला ने कहा कि पुरुष ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया था। पारिवारिक अदालत में दायर अपनी याचिका में महिला ने कहा कि पुरुष में सापेक्ष नपुंसकता थी। परिणामस्वरूप, वे मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक या शारीरिक रूप से एक-दूसरे से जुड़ने में असमर्थ थे।
इसके बाद पत्नी ने फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की. हालांकि, फैमिली कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया, जिसके बाद अब हाई कोर्ट की बेंच ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। साथ ही शादी को अमान्य घोषित कर रद्द कर दिया गय।
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