भारतीय संविधान में कई नियम, कायदे और कानून हैं, जिनमें समय-समय पर सरकारों द्वारा कई बदलाव किये गए है. हाल ही में मोदी सरकार ने IPC और CRPC में कई बदलाव किए. अब देश में CRPC की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) ले चुकी है. नए कानूनों को लेकर सरकार की ओर से तर्क दिए गए कि इससे पहले की तुलना में कम समय में इंसाफ मिलेगा. पेंडिंग मुकदमों का बोझ कम होगा. अंडर ट्रायल कैदियों को राहत मिलेगी. कम गंभीर अपराधों के तहत जेल में बंद कैदियों की रिहाई का रास्ता साफ होगा. अब BNSS के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ अंडर ट्रायल कैदियों की जमानत पक्की की है.
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सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया रास्ता
दरअसल, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद पुराने कैदियों, अंडरट्रायल कैदियों को राहत देते हुए उनकी जमानत का रास्ता साफ कर दिया है. SC ने अंडरट्रायल कैदियों पर भी BNSS की धारा 479 लागू करने का आदेश दिया है. केंद्र सरकार की ओर से स्थिति स्पष्ट करने के बाद जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने अपने फैसले में उनकी जमानत को हरी झंडी दिखा दी है. जिसके बाद पहली बार अपराध करने वाले कैदियों की त्वरित रिहाई का मुद्दा देशभर की सुर्खियों में आ गया है.
ध्यान देने वाली बात है कि भारत के अधिकांश जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी हैं. इनमें अंडरट्रायल कैदियों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता जा रहा है. ये वो लोग हैं जिनकी किसी अपराधिक मामले में गिरफ्तारी हुई लेकिन उनका मामला अभी अदालत में चल रहा है, यानी फैसला नहीं आया है. कई अंडरट्रायल कैदी ऐसे हैं, जो सही समय पर इंसाफ न मिलने की वजह से बिना दोषी साबित हुए लंबे समय से जेलों में बंद हैं.
BNSS की धारा 479 में क्या है?
BNSS की धारा 479 में एक तिहाई सजा भुगत चुके पहली बार के आरोपियों को जमानत देने का प्रावधान है. धारा 479 कहती है कि पहली बार के विचाराधीन कैदी अगर अपनी अधिकतम सजा की एक तिहाई सजा काट लेता है तो कोर्ट उसे बॉन्ड पर रिहा कर सकता है. हालांकि, ये कानून सजा-ए-मौत या उम्रकैद काट रहे अपराधियों पर लागू नहीं होता. बता दें कि भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम एक जुलाई से प्रभावी हुए थे, जिन्होंने ब्रिटिश काल की दंड प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता और ‘इंडियन एविडेंस एक्ट’ की जगह ली है.
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