देश के 5 राज्यों में आने वाले समय में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसे लेकर राजनीतिक पार्टियां अपनी तैयारियों में लग गई है। देश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी की ओर से कई तरह के बड़े-बड़े फैसले भी लिए जा रहे हैं। चुनाव से ठीक पहले सरकार की ओर से लिए जा रहे फैसलों को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। देश में संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है।
सरकार की ओऱ से कई तरह के विधेयक भी पास कराए जा रहे हैं। ओबीसी आरक्षण की सूची तय करने के लिए राज्यों को अधिकार देने वाले संविधान संशोधन विधेयक के मुद्दे पर आज राज्यसभा में चर्चा हो रही है। इसी बीच आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु को निशाने पर ले लिया। जिसके बाद से सदन में हंगामा मच गया।
विपक्षी पार्टी ने आरोप लगाया कि बीजेपी हर मामले के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री को ही जिम्मेदार ठहराती है। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आखिर आरक्षण के मुद्दे पर क्या थी पंडित नेहरु की सलाह? राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आरक्षण को लेकर क्या सोचते थे? साथ ही संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की क्या थी राय…आईए जानते हैं..
सदन में हुआ नेहरु के पत्र का जिक्र
आज बुधवार को बिहार से बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने कहा, पंडित जवाहर लाल नेहरु तो नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ थे। नेहरु की ओर से मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र का जिक्र करते हुए उन्होंने यह बात कही। जिसमें नेहरु ने लिखा था कि ‘मैं किसी भी तरह के आरक्षण का विरोध करता हूं। खासतौर पर नौकरियों में। मैं ऐसी किसी भी चीज का कड़ाई से विरोध करता हूं, जो अक्षमता पैदा करे और दूसरे दर्जे के स्टैंडर्ड्स को लाए।‘
विपक्षियों ने उठाए सवाल
नेहरु ने अपने पत्र में कहा था कि ‘मैं भारत को हर मामले में फर्स्ट क्लास देश के तौर पर देखना चाहता हूं। जिस वक्त हम सेकेंड क्लास को प्रोत्साहित करेंगे, उसी वक्त हम हार जाएंगे।’
उन्होंने कहा था कि पिछड़े समूहों को मदद करने का एकमात्र तरीका यही है कि उन्हें शिक्षा के अच्छे अवसर दिए जाएं। लेकिन यदि हम संप्रदाय और जाति के आधार पर आरक्षण की ओर बढ़ते हैं तो फिर हम काबिल लोगों को खो देंगे और सेकेंड रेट और थर्ड रेट को आगे बढ़ा देंगे।
सुशील मोदी की ओर से राज्यसभा में पढ़े गए इस पत्र को लेकर बवाल मच गया है। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि बीजेपी की ओर से हर गलती के लिए नेहरु को ही क्यों जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है।
नेहरु ने कही थी ये बात
बताते चले कि पंडित जवाहर लाल नेहरु ने 26 मई 1949 को असेंबली में भाषण देते हुए कहा था कि यदि हम किसी अल्पसंख्यक वर्ग को आरक्षण देंगे तो उससे समाज में असंतुलन बढ़ेगा। ऐसा आरक्षण देने से भाई-भाई के बीच दरार पैदा हो जाएगी।
गांधी भी नहीं चाहते थे जातिगत आरक्षण
वहीं, आरक्षण को लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक पत्रिका के 12 दिसंबर 1936 के संस्करण में लिखा था कि धर्म के आधार पर दलित समाज को आरक्षण देना अनुचित होगा। आरक्षण का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा था कि सरकारी मदद केवल उन्हीं लोगों को मिलनी चाहिए, जो सामाजिक स्तर पर पिछड़ा हुआ हो।
अंबेडकर की राय थी सबसे अलग
संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडर की भी इस मुद्दे पर राय बिल्कुल अलग थी। उन्होंने स्पष्ट रुप से कहा था कि यदि आरक्षण से किसी वर्ग का विकास हो जाता है तो उसके आगे की पीढ़ी को आरक्षण का लाभ नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा था कि आरक्षण का मतलब वैशाखी नहीं है, जिसके सहारे पूरी जिंदगी काट दी जाए। यह विकसित होने का एक मात्र अधिकार है।