गुजरात सरकार में जो बदलाव पिछले कुछ दिनों में देखने को मिले हैं, उसने हर किसी को हैरान कर दिया। मुख्यमंत्री बदलने के बाद अब यहां पूरी की पूरी सरकार ही बदल चुकी हैं और वो भी चुनाव से एक साल पहले। पहले विजय रुपाणी के अचानक दिए इस्तीफे ने सभी को चौंकाया। फिर इसके बाद भूपेंद्र पटेल को राज्य का नया सीएम बनाना भी बीजेपी का एक हैरान कर देने वाला कदम था।
पूरी की पूरी गुजरात सरकार बदल गई
अब इसके बाद बीजेपी ने गुजरात में ‘नो रिपीट’ फॉर्मूले को अपनाया और सरकार की पूरी तरह से तस्वीर ही बदलकर रख दी। मंत्रिमंडल में सभी पुराने चेहरों को हटाकर नए मंत्रियों को जगह दी गई। इतना ही नहीं विधानसभा अध्यक्ष तक बदल दिया।
भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व वाली सरकार के मंत्रिमंडल में कुल 24 नेताओं ने आज यानी गुरुवार को मंत्री पद की शपथ ली है। इनमें 10 कैबिनेट और 14 राज्यमंत्री बनाए गए। सात ही गुजरात के विधानसभा अध्यक्ष भी बदले गए। स्पीकर का पद संभालने वाले राजेंद्र त्रिवेदी इस्तीफा देकर भूपेंद्र पटेल सरकार में मंत्री बन गए। वहीं राजेंद्र त्रिवेदी की जगह निमा आचार्य को स्पीकर बनाया गया। ट
प्रयोग से बीजेपी को होगा फायदा?
गुजरात में अगले साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में बीजेपी ने ये जो दांव उससे पार्टी को फायदा होगा या फिर ये चाल उल्टी उन पर ही भारी पड़ जाएगी, इसको लेकर अभी खूब चर्चाएं हो रही हैं।
वैसे गुजरात में बीजेपी कई राजनीतिक प्रयोग करती रहती है, जिसका उसे फायदा भी मिलता हुआ दिखा है। गुजरात नगर निकाय चुनाव के दौरान भी बीजेपी ने ऐसा ही कुछ फॉर्मूला अपनाया था, जिससे पार्टी को लाभ मिला। नगर निकाय के चुनावों में बीजेपी ने कांग्रेस का सफाया कर दिया था।
इसके अलावा बीजेपी ऐसा ही प्रयोग दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भी कर चुकी है। जब पार्टी ने सभी पार्षदों का टिकट काट दिया और नए चेहरों को मैदान में उतारा था। बीजेपी का ये दांव यहां भी सफल रहा था। अब गुजरात 2022 चुनाव में भी बीजेपी यही फॉर्मूला अपनाकर देखने की तैयारी में है। जिसके चलते चुनाव से कुछ एक-सवा साल पहले बीजेपी ने ये बड़ा खेल खेलकर विरोधियों को खत्म करने की कोशिश की।
वैसे बीजेपी ने ये जो दांव गुजरात में चला, उसके जरिए कई समुदाय को लुभाने की कोशिश भी की। पाटीदार समुदाय को मैसेज देने के लिए पार्टी ने गुजरात के सीएम समेत पटेल समुदाय के नेताओं को कैबिनेट में तवज्जो दी। पटेल समुदाय से 6, ओबीसी 4, दो ब्राह्मण, 3 क्षत्रीय, चार आदिवासी, तीन दलित और एक जैन समुदाय से मंत्री को शामिल किया गया।
कहीं भारी तो नहीं पड़ जाएगी नाराजगी?
लेकिन इस बीच ये सवाल भी उठ रहा है कि कहीं बीजेपी का ये दांव उल्टा तो नहीं पड़ जाएगा? दरअसल, पुराने मंत्री लंबे वक्त से सरकार का हिस्सा थे। ऐसा माना जा रहा था कि उनकी नाराजगी आने वाले समय में बीजेपी पर भारी पड़ सकती है। हालांकि गुजरात में ये जो बदलाव किए गए हैं, उसका क्या असर होगा…ये तो अगले साल होने वाले चुनाव में ही पता चलेगा।