
बिहार की सियासत पिछले कुछ महीनों से बवाल जारी है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य में एनडीए की सरकार है लेकिन एनडीए गठबंधन के घटक दल एक-दूसरे को निशाने पर लेते दिख रहे हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की ओर से जातीय जनगणना का मुद्दा काफी पहले से ही लगातार उठाया जा रहा है।
राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कई बार सार्वजनिक रुप से इस पर बयान दे चुके हैं। आज बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के आखिरी दिन इस मुद्दे पर जमकर बवाल देखने को मिला। विधानसभा में सत्ताधारी जदयू और बीजेपी के विधायक आपस में ही उलझते देखे गए।
बिहार में जातीय जनगणना का मुद्दा काफी छाया हुआ है। आज शुक्रवार को इस मुद्दे पर विधानसभा के साथ-साथ विधान परिषद में भी जमकर हंगामा देखने को मिला। बीजेपी के एमएलसी संजय पासवान जातीय जनगणना का विरोध कर रहे थे तो वहीं, जदयू के मंत्री श्रवण कुमार को इसका समर्थन करते हुए देखा गया। नीतीश के मंत्री का कहना है कि जातीय जनगणना समय की मांग है। इस सर्वे के बाद सभी वर्गों को उसके अधिकार के हिसाब से हक मिलेंगे।
इस मामले पर प्रदेश की विपक्षी पार्टी आरजेडी और कांग्रेस पार्टी जदयू का समर्थन करती दिखी। आरजेडी नेता रणविजय सिंह और कांग्रेस नेता अजीत शर्मा ने कहा, समाज में समता के लिए जातीय जनगणना की जरुरत है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को खुद ये सर्वे कराना चाहिए। वहीं, आरजेडी एमएलसी सुनील साहू ने जदयू पर जातीय जनगणना नहीं कराए जाने का आरोप लगा दिया। उन्होंने कहा कि जब यह प्रस्ताव सदन में पास हो चुका है तो फिर जदयू अब तक चुप क्यों है?
बताते चले कि पिछले काफी समय से बिहार में जातीय जनगणना की बात चल रही है। जदयू के साथ-साथ आरजेडी की ओर से भी लगातार इसकी मांग उठाई जा रही है। बिहार की एनडीए सरकार द्वारा फरवरी 2019 में ही जाति आधारित जनगणना कराए जाने का प्रस्ताव पास किया गया था। साल 2020 में भी बिहार विधानसभा में इस प्रस्ताव को पास कर केंद्र सरकार के पास भेजा गया था।
बिहार में लंबे समय से जातीय जनगणना कराने की मांग उठ रही है। इस बाबत बिहार विधानसभा से दो बार सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया जा चुका है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद इस बात के पक्ष में हैं। लेकिन केंद्र सरकार की ओर से जातीय जनगणना को हरी झंडी नहीं मिल पा रही है। इस वजह से सूबे की सियासत गरमाई हुई है।
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