केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली के बॉर्डरों पर पिछले 9 महीनें से आंदोलन चल रहा है। किसान अपनी मांगों पर अड़ें हुए हैं। किसानों की ओर से लगातार इन नए कृषि कानूनों को खत्म करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने की मांग की जा रही है। इन दिनों सदन में भी इसे लेकर बवाल मचा हुआ है।
विपक्षी पार्टिय़ों की ओर से लगातार इस मुद्दे पर चर्चा कराए जाने की मांग की जा रही है। वहीं, दूसरी ओर किसान आंदोलन को लेकर बीजेपी का रुख देश की जनता देख रही है। बीजेपी की ओर से किसान आंदोलन को लेकर पहले भी सवाल उठाए जा चुके हैं। बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने किसान आंदोलन पर विवादित टिप्पणी भी की थी।
अब जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे ही किसानों को लेकर बीजेपी का रुख थोड़ा नरम होता दिखाई दे रहा है। इस आर्टिकल में हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि आखिर बीजेपी की ओर से ऐसा कदम क्य़ों उठाया जा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं अगर किसानों ने मुंह फेर लिया तो यूपी की सियासत में बीजेपी की नैया पार नहीं लग पाएगी?
यूपी चुनाव पर पड़ेगा असर
दिल्ली के बॉर्डरों पर नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों में हरियाणा, पंजाब और पश्चिम यूपी के किसान शामिल हैं। किसान नेता राकेश टिकैत आंदोलन के केंद्र बने हुए हैं। किसानों का कहना है कि जब तक केंद्र सरकार उनकी मांगों को पूरा नहीं करती तब तक वह आंदोलन करते रहेंगे। किसान नेताओं की ओर से देश के अन्य राज्यों में किसान महापंचायत भी काफी पहले से ही आयोजित किए जा रहे हैं और बीजेपी के साथ-साथ केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज भी बुलंद हो रही है।
किसान नेताओं ने बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के दौरान बंगाल में महापंचायत का आयोजन किया था और बीजेपी के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। जिसका असर भी देखने को मिला था। राज्य़ में 200 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करने का दावा करने वाली बीजेपी मात्र 77 सीटों पर सिमट गई थी।
अभी भी किसान नेताओं का कहना है कि वह चुनावी राज्यों में जाकर बीजेपी के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगी। अब आने वाले कुछ ही महीनों में यूपी, पंजाब, गुजरात, गोवा और उत्तराखंड में विधानसभा चुवाव होने वाले हैं। यूपी, गुजरात और गोवा में बीजेपी की सराकर है। बीजेपी इन राज्यों में सत्ता में वापसी करने की कोशिशों में लगी हुई है। किसान आंदोलन का खासा असर यूपी की सियासत में देखने को मिल सकता है और बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
लखनऊ में होगी बीजेपी की पंचायत
भारतीय किसान यूनियन के नेता और प्रवक्ता राकेश टिकैत यूपी की राजधानी लखनऊ को दिल्ली बनाने का ऐलान कर चुके हैं। यानि की लखनऊ में भी आने वाले कुछ ही दिनों में किसान आंदोलन देखने को मिल सकता है। किसानों के इस प्लान से बीजेपी को आगामी चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
जिसे लेकर बीजेपी अब किसान पंचायत करने वाली है। 22 से 25 अगस्त तक लखनऊ में ही बीजेपी का किसान पंचायत होने वाला है। खबरों के मुताबिक पंचायत के जरिए बीजेपी किसानों के हित में किए गए सरकार के कामों के बारे में बताएगी और किसानों का गुस्सा ठंडा करने का प्रयास करेगी।
उससे पहले यूपी के जिन विधानसभा क्षेत्रों में गन्ना किसानों की संख्या ज्यादा है, वहां बीजेपी किसान संवाद का आयोजन करने वाली है। जो 16 से 23 अगस्त तक होगा। इस पूरे काम की जिम्मेदारी बीजेपी किसान मोर्चा के अध्यक्ष कामेश्वर सिंह को दी गई है।
क्या वोट बैंक सेंध लगने का सता रहा डर?
इन सभी चीजों को देखते हुए कई तरह के सवाल निकल कर सामने आ रहे हैं। जिसमें कुछ ऐसे सवाल हैं जिसके जवाब शायद कभी न मिले..या बीजेपी इसका जवाब देना सही नहीं समझती!
क्या चुनाव के समय में ही बीजेपी को किसानों की याद आती है?
चुनाव से ठीक पहले किसान पंचायत के क्या हैं मायने?
क्या बीजेपी को है वोट बैंक खोने का डर?
बीजेपी किसान आंदोलन के 9 महीने बाद आखिर बीजेपी क्यों उठा रही ऐसा कदम?