Ankita Bhandari CBI inquiry rejected: महिला सशक्तिकरण और न्याय की आवाज बुलंद करने वाले इस दौर में, जब हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं, वहीं उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी के लिए न्याय की राह मुश्किल होती जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने चर्चित अंकिता हत्याकांड की सीबीआई जांच की याचिका को खारिज कर दिया, जिससे न्याय की उम्मीद लगाए संगठनों को बड़ा झटका लगा है।
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न्याय के लिए संघर्ष और अधूरा सच (Ankita Bhandari CBI inquiry rejected)
वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस, जो इस केस में सीबीआई जांच की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे, ने कोर्ट के फैसले के बाद अंकिता के नाम एक बेहद भावुक पत्र लिखा। उन्होंने लिखा, “मुझे माफ करना, अंकिता! मैं दुखी हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने तुम्हारे केस की सीबीआई जांच की याचिका खारिज कर दी और हम अब तक मुख्य अपराधी को पकड़ नहीं पाए।”
उन्होंने पत्र में अंकिता की माँ सोनी देवी के दर्द को भी साझा किया, जिनकी बेटी की हत्या एक वीआईपी द्वारा “विशेष सेवाएं” मांगने से इनकार करने के कारण कर दी गई। गोंजाल्विस ने पुलिस की लापरवाही पर भी सवाल उठाए, जिसमें उन्होंने अंकिता और उसके दोस्त पुष्पदीप के बीच की व्हाट्सएप चैट को चार्जशीट से हटाने, वीआईपी के सहयोगी की पहचान छिपाने और साक्ष्यों को नष्ट करने की घटनाओं पर कड़ी आपत्ति जताई।
पत्रकार पर कार्रवाई, सच्चाई दबाने की कोशिश?
न्याय की इस लड़ाई में सिर्फ़ अंकिता ही नहीं बल्कि इस मामले को उजागर करने वाले पत्रकार भी निशाने पर आ गए हैं। इस केस में आशुतोष नेगी नाम के पत्रकार ने भी न्याय दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन उनकी आवाज़ दबाने के लिए उनके खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर दी गई और उन्हे हिरासत मे ले लिया गया। अंकिता के गांव के ही रहने वाले पत्रकार आशुतोष नेगी को इसलिए गिरफ़्तार कर लिया गया क्योंकि वो लगातार अंकिता भंडारी हत्याकांड के मुद्दे को सरकार के सामने मजबूती से उठा रहे थे। यह घटना दिखाती है कि किस तरह महिला सुरक्षा और न्याय के लिए आवाज़ उठाने वालों को भी सज़ा मिल रही है।
पत्रकार आशुतोष नेगी का गुनाह सिर्फ इतना है कि वो #justiceForAnkitaBhandari के लिए लगातार भाजपा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे..
आखिर कौन था वो VVIP जिसको बचाने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी मशीनरी झोंक रखी है? pic.twitter.com/k0XbGn18XB
— Srinivas BV (@srinivasiyc) March 6, 2024
मुख्य अपराधी का नाम अब भी गुमनाम
18 सितंबर 2022 को उत्तराखंड में गंगा-भोगपुर स्थित वनंतरा रिज़ॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट अंकिता भंडारी की हत्या कर दी गई थी। आरोप है कि मुख्य आरोपी पुलकित आर्य, जो भाजपा नेता का बेटा और रिज़ॉर्ट का मालिक था, ने अंकिता को “वीआईपी” के लिए विशेष सेवा देने का दबाव डाला। जब उसने इनकार किया, तो उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई।
इस केस में पुलकित आर्य, रिज़ॉर्ट के सहायक प्रबंधक अंकित गुप्ता और प्रबंधक सौरभ भास्कर को गिरफ्तार किया गया, लेकिन वीआईपी की पहचान अब भी रहस्य बनी हुई है। गोंजाल्विस का कहना है कि होटल कर्मियों के मोबाइल डेटा और सीसीटीवी फुटेज को जब्त नहीं किया गया, जिससे मुख्य अपराधी को बचाने की कोशिश की गई।
नार्को टेस्ट खारिज, ट्रायल कोर्ट का अजीब फैसला
गोंजाल्विस ने अपने पत्र में इस बात पर भी नाराजगी जताई कि मुख्य आरोपी पुलकित आर्य ने खुद के नार्को विश्लेषण की अनुमति मांगी थी, जिससे वीआईपी की सच्चाई उजागर हो सकती थी। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने इस आवेदन को खारिज कर दिया, जिससे सच सामने आने का एक और मौका गवां दिया गया।
महिला दिवस और न्याय की लड़ाई
महिला दिवस हमें महिलाओं के अधिकारों और उनके प्रति समाज की जिम्मेदारी का स्मरण कराता है। लेकिन अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने की इस लंबी लड़ाई में बार-बार रुकावटें आ रही हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ने अपने पत्र में लिखा, “मुझे खेद है, अंकिता! यह भारत है, जहां आम महिलाओं की ज़िंदगी मायने नहीं रखती और उच्च पदों पर बैठे लोग बार-बार बच निकलते हैं।”
क्या न्याय मिलेगा?
हर साल जब देश महिला दिवस मनाता है तो सवाल उठता है कि क्या अंकिता जैसी बेटियों को न्याय मिलेगा? क्या वीआईपी की पहचान उजागर होगी? क्या सच को छिपाने की इस साजिश को तोड़ा जा सकेगा? ये सवाल न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश की न्याय प्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहे हैं।
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